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वर्ग की महिलाओं को पुरूषों की गुलामी का जीवन ही जीना पड़ रहा है । वह भी तक जबकि घर सरे िरेकर बाहर तक काम और मरेहनत — मजदूरी करनरे में पुरूषों सरे कहीं आगरे महिलाएं ही रहती हैं । पितपृसतिा की प्बलता का आलम यह है कि घर के काम में महिलाओं का हाथ बंटाना तो दूर की बात रही , मरेहनत — मजदूरी के काम में भी महिलाओं को ही आगरे रहना पड़ता है िरेलकन अपनी कमाई पर उनका कोई हक नहीं रहता ।
आक्ोशित हो रिरी हैं बेटियां
आज के समय में शिक्षा ग्हण करनरे के बाद सही — गलत का फर्क और अपनरे कर्तवय व अधिकारों की समझ रखनरे वाली दलित समाज
की बरेलटयों में सामाजिक व पारिवारिक ्तर पर होनरे वािरे इस दोयम दजदे के वयवहार और भरेदभाव को िरेकर आकोि ्पषट दिखाई पड़ता है । यरे बरेलटयां अब अपनरे अभिभावकों सरे यह पू्छनरे भी लगी हैं कि आखिर हमाररे द्ारा पकाए और परोसरे गए भोजन को समाज में ्वीकार्यता ्यों नहीं है ? अब तो समय बदल रहा है । आज सरे एक दशक पूर्व यही मजबूर मजदूर दलित बरेलटयां अपनरे पिता सरे पू्छती थीं कि आखिर ्यों समाज के एक बड़े वर्ग के बच्चे पकवान उड़ातरे रहतरे हैं और हमाररे घरों में मुसशकि सरे ही सूखी रोटी भी नसीब हो पाती है । ्यों एक वर्ग की बरेलटयां कॉिरेजों और विशवलवद्ाियों में शिक्षा ग्हण करती हैं और हमें दसवीं सरे पहिरे ही बयाह कर ससुराल भरेज दिया जाता है और अलप आयु में ही मां बननरे के लिए मजबूर होना पड़ता है ।
परंपराएं बन गई हैं महिलाओ ं की बेकडयां
वा्तव में दरेखा जाए तो दलित समाज की महिलाओं की स्थलत बदलनरे एवं आर्थिक स्थलत सुधारनरे के लिए इनहें अपनी सोच बदलनरे की आवशयकता है । यदि आज के समय का आकलन करें तो कु्छ ग्ामीण एवं अधिकांशतया शहरी इलाकों में रहनरे वािरे दलित समाज के गरीब लोग भी अपनी बरेलटयों को ्कूि एवं कॉिरेज भरेजनरे लगरे हैं जिससरे उनकी स्थलत में सुधार आया है । िरेलकन गांव सरे जुड़े हुए शहर में नौकरी परेिरे में लगरे दलित वर्ग के लोग सामाजिक दबाव के कारण पुरानी परंपराओं का पालन करतरे हुए आज भी अपनी बरेलटयों का कच्ी उम्र में ही शादी बयाह कर दरे रहरे हैं ।
शशलषित वर्ग भरी सामाजिक दबाव के समषि विवश
राजधानी दिलिी में एक मैथिली चैनल में काम करनरे वािरे शंभू साह की कहानी पर गौर करें तो यह स्थलत अधिक ्पषटता सरे खुलकर सामनरे आ जाती है । दिलिी में पैदा हुई शंभू की बरेटी शीला नरे अच्छे नंबरों सरे दसवीं की परीक्षा पास की । वह आगरे और पढना व कु्छ बनना चाहती थी , जिसमें शंभू की भी आंतरिक सहमति थी । िरेलकन , शंभू के ऊपर शीला की जलदी शादी करनरे के लिए उसके पिता एवं परिवार व समाज के अनय लोगों द्ारा दबाव डाला जानरे लगा । पारिवारिक व सामाजिक दबाव के कारण शंभू को विवश होकर बिटिया की शादी के लिए तैयार होना पड़ता है । हालांकि शीला की प्लतभा व उसके रूप — गुण को दरेखकर अनय वर्ग के संभ्रांत परिवार सरे भी शंभू के पास रिशता आता है , िरेलकन उस पर समाज व परिवार का दबाव था कि अपनरे इलाके और अपनी जाति — बिरादरी के िड़के सरे ही वह शीला की शादी कराए । वह चाह कर भी कु्छ नहीं कर सके और अपनी बिरादरी के िड़के सरे शादी करनरे के बाद दिलिी का सहूलियतों सरे भरा शहरी जीवन और सुनहररे भविषय की संभावनाओं को ्छोड़कर मिथिलांचल
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 27