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डॉ . सयुरेनद्र झा
मिथिलांचल में दलित महिलाओ ंकी दयनरीय स्थिति ,
सरे तो हमाररे दरेि में अधिकतर oS
दलित स्त्यां काफी जद्ोजहद के
साथ अपना जीवन वयतीत करती है िरेलकन यदि हम एक लविरेष अंचल मिथिलांचल की बात करें तो यहां के हालात कु्छ अलग हैं । पूररे मधय , उतिर व पूवटी बिहार सरे िरेकर नरेपाल की तराई के समूचरे इलाके में फैिरे मिथिलांचल की दलित महिलाएं जहां सवणषों द्ारा ्छुआ्छटूत जैसी कुरीतियों की शिकार होती रही हैं वहीं अपनरे परिवार के अंदर भी पुरुषों की गुलामी की जंजीरों सरे बंधकर सिसक रही इन महिलाओं के लिए अब तक मुक्त का मार्ग नहीं निकल पाना वाकई बहुत बड़ी विड़ंबना ही कही जाएगी । जबकि दलित समाज की महिलाएं किसी भी मामिरे में पुरूषों सरे कमतर नहीं हैं । यरे महिलाएं जहां अपनरे पुरुषों के साथ मिलकर मरेहनत मजदूरी करनरे में आगरे रही हैं वहीं घर गपृह्थी एवं बाल — बच्ों के लालन — पालन व भरण — पोषण की जिम्मेदारियां भी अपनरे कंधों पर उठा कर ही चलती रही हैं । इसके बावजूद परिवार सरे िरेकर समाज तक में इनके साथ दोयम दजदे का ही नहीं बसलक कई मायनों में अमानवीय सलूक होना और इनहें जीवन भर हीन भावनाओं
जिम्ेदार कौन ? सामजिक हरी नहीं बल्कि पारिवारिक स्तर पर भरी हो रहा है शोषण आक्रोशित बेटियों को आं दोलित करने की जरूरत
सरे ग्लसत रह कर जीनरे के लिए मजबूर किया जाना चिंताजनकर भी है और विचारणीय भी ।
सामाजिक — पारिवारिक स्र पर गैर — बराबररी
बीतरे वषषों में काफी सामाजिक परिवर्तन हुए हैं । शहरों में जहां जाति एवं वणषों में अस्पृशयता की सोच में कमी आई है , वहीं ग्ामीण क्षरेत्ों में भी अब ्छटूआ्छटूत की भावनाओं में शिथिलता दरेखी जा रही है । परंतु दलित महिलाओं की सामाजिक स्थलत जस की तस बनी हुई है और महिलाओं के मामिरे में ना तो समाज की सोच में कोई तबदीिी आई है और ना ही पारिवारिक ्तर पर उनहें बराबरी का हक हासिल हो पाया है । सामाजिक ्तर पर दलित समाज की महिलाओं के साथ होनरे वािरे वयवहार की बात करें तो फसल उगानरे , उसरे तैयार करनरे , गरेहूं पीसनरे सरे िरेकर चावल बीननरे तक का काम करनरे की दलित समाज की महिलाओं को कथित प्बुद्ध वर्ग की ्वीकार्यता अवशय हासिल है िरेलकन खाना पकानरे या परोसनरे का काम दलित महिलाएं करें यह आज भी समाज की अगुवाई करनरे का खम ठोंकनरे वािरे वर्ग को ्वीकार्य नहीं है । पारिवारिक ्तर पर भी दलित
26 दलित आं दोलन पत्रिका vDVwcj 2021