eMag_Oct 2021-DA | 页面 15

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रखरेगा ।
पूररी ट्ेकनंग के बाद िरी बन रहे हैं दलित पुजाररी
दलित पुजारियों को तैयार करनरे वािरे इस अभियान के संचालन के लिए विहिप में दो विभाग काम करतरे हैं । अर्चक पुरोहित विभाग और सामाजिक समरसता विभाग मिलकर इस पूररे अभियान को चला रहरे हैं । धर्म-कर्म में रुचि रखनरे वािरे दलितों को पूररे विधि-विधान सरे पूजन-अर्चन करनरे की पद्धति सिखाई जाती है । अर्यक पुरोहित विभाग के पास पुजारियों की सूची रहती है । कितनरे लोगों को पुजारी की ट्ेलनंग कब और कैसरे दरेनी है , विभाग ही तय करता है । ट्ेलनंग के लिए कम सरे कम दो तीन माह का समय चाहिए । इस दौरान पुजारी की ट्ेलनंग िरे रहरे वयस्त को कई तरह के धार्मिक अनुषठानों सरे गुजरना पड़ता है । पूजा की विधि और मंदिर सरे जुड़े दूसररे कामकाज सिखाए जातरे हैं । बारीकि
सरे सं्कारों की विधि बताई जाती है । कई प्लतसषठत धार्मिक सं्थानों का दौरा कराया जाता है । प्मुख धार्मिक गुरुओं सरे मुलाकात कराई जाती है । यरे ट्ेलनंग शिविर जिला , प्ांत और राषट्वयापी ्तर पर लगातार चलतरे रहतरे हैं । पुजारी के लिए काबिल लोगों का चयन करना ,
यह खुद में ही एक चुनौतीपूर्ण प्लकया होती है । ऐसरे लोगों को साक्षातकार के लवलभन् ्तरों सरे गुजरना पड़ता है । ट्ेलनंग के दौरान भाषा सबसरे जयादा अहम होती है । यदि कोई आवरेदक उतिर भारत का है , तो उसरे कोई लद्कत नहीं आती । वहीं यदि वह दक्षिण भारत या पूवणोतिर के राजयों सरे है , तो भाषाई बाधा सामनरे आती है । ऐसरे में ट्ेलनंग की अवधि भी उसी हिसाब सरे बढा दी जाती है । फिर उनहें सर्टिफिकेट भी मिलता है । पूरी ट्ेलनंग के बाद ही दलितों को पुजारी के तौर पर नियु्त किया जाता है और इस मामिरे में जिस योगयता की अनिवार्यता और आवशयकता होती है उसकी पूरी सैद्धांतिक व वयावहारिक ट्ेलनंग इन पुजारियों को दी गई होती है । प्लिक्षण के बाद दक्षिण भारत के दलित पुजारियों को आंध्र प्दरेि स्थत तिरुपति बालाजी मंदिर की ओर सरे प्माणपत् मिलता है । यह प्माणपत् धार्मिक कायषों के संचालन की दीक्षा सफलतापूर्वक हासिल करनरे के बाद उनहें मिलता
है ।
अस्ृश्यता के खिलाफ लगातार संघर्षरत विहिप
वर्ष 1964 में ्थापना के पांच वर्ष बाद सरे ही विहिप दरेि सरे अस्पृशयता दूर करनरे की दिशा
में काम कर रहा है । कर्नाटक के उडुपी में वर्ष 1969 में हुए धर्म संसद में अस्पृशयता दूर करनरे का संकलप लिया गया था । उस दौरान संतों नरे दरेि को ‘ न हिनदू पतितो भवरेत ’ का संदरेि दिया था जिसका मतलब था कि सभी हिंदू भाई-भाई हैं , कोई दलित नहीं है । दलितों को मुखयधारा में लानरे की कोशिशों के तौर पर 1994 में काशी में हुई धर्म संसद का निमंत्ण डोम राजा को दरेनरे विहिप के पदाधिकारी और संत गए थरे । उनहोंनरे डोम राजा के घर प्साद भी ग्हण किया था । विहिप के आमंत्ण पर धर्म संसद में पहुंचरे डोम राजा को बीच का आसन दरेकर मालयापदाण कर ्वागत किया गया था । नवंबर 1989 को राम मंदिर का शिलानयास भी विहिप नरे दलित कामरेशवर चौपाल के हाथों कराकर उस समय सामाजिक समरसता का बड़ा संदरेि दिया था और राम मंदिर निर्माण के लिए बनरे ट््ट में भी कामरेशवर चौपाल को जगह दी गई है ।
सामाजिक समरसता को मजबूतरी देंगे दलित पुजाररी
दरेि में पांच हजार दलितों को पुजारी बनवानरे में विहिप सफल हो चुका है और विहिप की कोशिशों सरे जयादातर पुजारी सरकारी दरेखररेख में संचालित मंदिरों के पैनल में भी शामिल हुए हैं । विशव हिंदू परिषद के राषट्ीय प्व्ता विनोद बंसल नरे बताया कि दक्षिण भारत में इस अभियान को बड़ी सफलता मिली है । यहां के राजयों में दलित पुजारियों की संखया जयादा है । सिर्फ तमिलनाडु में ही ढाई हजार दलित पुजारी विहिप की कोशिशों सरे तैयार हुए हैं । आंध्र प्दरेि के मंदिरों में भी दलित पुजारियों की अच्छी-खासी संखया है । बंसल के मुताबिक पूररे दरेि में पांच हजार सरे अधिक दलित पुजारियों को तैयार करना विहिप की बड़ी सफलता है । यह अभियान अनथक और अनवरत पूररे उतसाह के साथ लगातार जारी है और सामाजिक समरसता की भावना को मजबूती दरेनरे के लिए विहिप ‘ हिंदू लमत् परिवार योजना ’ और ‘ एक मंदिर , एक कुआं , एक शमिान - तभी बनरेगा भारत महान ’ की योजना पर भी लगातार काम कर रहा है । �
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 15