ध्यान दद्या जाना चाहिए । सेक्युलरिजम शबद करी जरुर्त संविधान में बाबा साहब को भरी नहीं महसूस हुई थरी , जबकि उस दौरान देश एक मजहबरी बंटवारे से गुजर रहा था , लेकिन कांग्ेस ने इंदिरा काल में ्यह शबद संविधान में जोड़ दद्या । वैसे ्तो बाबा साहब सबके हैं लेकिन जो लोग बाबा साहब को अपना मान्ते हैं उनहें ्यह
सपष्ि ्तो करना हरी होगा कि बाबा साहब के इन विचारों को लेकर उनका उलिा रुख क्यों है और बाबा साहब के इन सपनों को पूरा करने के सम्य वो विरोध क्यों कर्ते हैं ?
जब केंद्र में भाजपा-नरी्त मोदरी सरकार पूर्ण बहुम्त के साथ आई और बाबा साहब को लेकर कुछ का्यमा शुरू हुए ्तो विपक्षी खेमा ्यह कहने
लगा कि भाजपा और संघ को अचानक बाबा साहब क्यों ्याद आ्ये ! हालांकि ्यह किसम का दुष्प्रचार हरी था । चूंकि भाजपा जब भरी सत्ता में रहरी अथवा न रहरी उसने बाबा साहब को ्याद दक्या । जवाब ्तो उनहें देना चाहिए था जो साठ साल सत्ता में रहकर भरी बाबा साहब को ्याद न किए , वरना बाबा साहब को भार्त रत्न देने से
पहले इंदिरा गांधरी खुद को भार्त रत्न क्यों दे ले्तीं ? और जवाहर लाल नेहरु खुद को खुद से भार्त रत्न क्यों बना ले्ते ?
खैर , विचारधारा के धरा्तल पर अगर बा्त करें ्तो बाबा साहब और संघ के बरीच सिवा्य एक मामूलरी म्तभेद के और कोई म्तभेद नहरी है । बसलक हर बिंदु पर बाबा साहब और राष्ट्ररी्य
स्वयंसेवक संघ के विचार समान हैं । जिनको ्यह लग्ता है कि बाबा साहब को संघ आज ्याद कर रहा है , उनहें नबबे के शुरुआ्तरी दौर का पाञ्जन्य पढना चाहिए , जिसमें बाबा साहब को आवरण पृष्ठ पर प्रकादश्त दक्या ग्या था । संघ और बाबा साहब के बरीच पहला वैचारिक साम्य ्ये है कि संघ भरी अखंड राष्ट्रवाद करी बा्त कर्ता है और बाबा साहब भरी अखंड राष्ट्रवाद करी बा्त कर्ते थे । समान नागरिक संदह्ता लागू करने पर संघ भरी सहम्त है और बाबा साहब भरी सहम्त थे । हिनदू समाज में जाद्त-ग्त भेदभाव हुआ है और इसका उनमूलन होना चाहिए इसको लेकर संघ भरी सहम्त है और बाबा साहब भरी जाद्त से मुक्त अविभादज्त हिनदू समाज करी बा्त कर्ते थे ।
बाबा साहब के भाषणों के आधार पर कहा जा सक्ता है कि बाबा साहब वामपंथ को संसदरी्य लोक्तंत् के विरुद्ध मान्ते थे । संघ प्रमुख मोहन भागि्त ने 16 दिसमबर 2015 को समाजिक समरस्ता पर दिए अपने भाषण में दद््तरी्य सर संघ चालाक गुरु गोलवलकर का जिक्र दक्या । जिसमें उनहोंने ब्ता्या कि 1942 में महाराष्ट्र के एक स्वयंसेवक के परिवार में अं्तरजा्तरी्य विवाह समपन्न हुआ था । इस विवाह करी सूचना जब ्ततकालरीन सरसंघचालक गुरूजरी को मिलरी ्तो वे पत् लिखकर इसकरी सराहना दक्ये और ऐसे उदाहरण लगा्तार प्रस्तु्त करने करी बा्त कहरी । इससे साफ़ जाहिर हो्ता है कि 1942 में भरी संघ का दृष्टिकोण सामाजिक एक्ता को लेकर दृढ था । हालांकि समाजिक भेद और इसको समाप्त करने करी अनिवा्यमा्ता पर 16 दिसमबर 2015 का मोहन भगि्त का दद्या भाषण अवश्य सुना जाना चाहिए , ्यह ्यूट्ूब पर उपलबध भरी है अथवा संघ करी वेबसाईट पर भरी है ।
संघ और बाबा साहब के बरीच वैचारिक साम्य को अगर बाबा साहब के नजरिए से देखने करी कोशिश करें ्तो भरी स्थिति वैसरी हरी नजर आ्तरी है । डॉ आंबेडकर समपूणमा वांग्मय के खंड 5 में लिखा है , ' डॉ अंबेडकर का दृढ म्त था कि मैं हिंदुस्तान से प्रेम कर्ता हूं , मैं जरीऊंगा ्तो
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