eMag_Nov2023_Dalit Andolan Patrika | Page 46

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हिंदुस्तान के लिए और मरूंगा ्तो हिंदुस्तान के लिए । मेरे शररीर का प्रत्येक कण और मेरे जरीिन का प्रत्येक षिण हिंदुस्तान के काम आए , इसलिए मेरा जनम हुआ है I ’ बाबा साहब करी जरीिनरी लिखने वाले सरी . बरी खैरमोड़े ने बाबा साहब के शबदों को उदृ्त कर्ते हुए लिखा है कि ‘ मुझमें और सावरकर में इस प्रश्न पर न केवल सहमद्त है बसलक सह्योग भरी है कि हिंदू समाज को एकजुट और संगठि्त दक्या जा्ये और हिंदुओं को अन्य मजहबों के आक्रमणों से आतमरषिा के लिए ्तै्यार दक्या जाए ।
राजभाषा संस्कृत को बनाने को लेकर भरी उनका म्त सपष्ि था । 10 दस्तंबर 1949 को डॉ बरी . िरी . केसकर और नजरीरूद्दीन अहमद के साथ मिलकर बाबा साहब ने संस्कृत को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा था , लेकिन वह पारर्त न हो सका । संस्कृत को लेकर राष्ट्ररी्य स्वयं सेवक संघ का विचार भरी कुछ ऐसा हरी है जैसा बाबा साहब का था । धर्म के मामले में भरी संघ और बाबा साहब के बरीच वैचारिक साम्य दरीख्ता है । संघ भरी धर्म को मान्ता है और बाबा साहब भरी
धर्म को मान्ते हैं । संघ भरी भार्तरी्य एवं आ्याद्त्त मजहबों का िगगीकरण कर्ता है और बाबा साहब भरी इसलाम और इसाई्य्त को विदेशरी मजहब मान्ते हैं । वह धर्म के बिना जरीिन का अस्तिति नहीं मान्ते थे लेकिन धर्म भरी उनको भार्तरी्य संस्कृति के अनुककूल स्वीका्यमा था । इसरी वजह से उनहोंने ईसाई्यों और इसलाम के मौलदब्यों का आग्ह ठुकरा कर बौद्ध धर्म अपना्या क्योंकि बौद्ध भार्त करी संस्कृति से निकला एक धर्म है । मुससलम लरीग पर संविधान सभा के प्रथम अधिवेशन में 17 दिसंबर 1946 का वक्तव्य उनके प्रखर राष्ट्रवादरी व्यक्तिति का दर्शन करा्ता है । उनहोंने कहा था , ‘ आज मुससलम लरीग ने भार्त का विभाजन करने के लिए आंदोलन छेड़ा है , दंगे फसाद शुरू किए हैं , लेकिन भविष््य में एक दिन इसरी लरीग के का्यमाक्तामा और ने्ता अखंड भार्त के हिमा्य्तरी बनेंगे , ्यह मेररी श्द्धा हैI ’
हिनदू समाज करी बुराइ्यों पर चोट कर्ते हुए भरी बाबा साहब भार्तरी्य्ता करी मूल अवधारणा और अपने हिनदू दह्तों को नहीं भूल्ते हैं । महार मांग ि्तनदार सममेलन , सिन्नर ( नासिक ) में
16 अगस्त , 1941 को बोल्ते हुए बाबा साहब कह्ते हैं , ' मैं इन ्तमाम िषथों में हिंदू समाज और इसकरी अनेक बुराइ्यों पर ्तरीखे एवं कटु हमले कर्ता रहा हूं , लेकिन मैं आपको आशिस्त कर सक्ता हूं कि अगर मेररी निष्ठा का उप्योग बदहष्कृ्त िगथों को कुचल्ते के लिए दक्या जा्ता है ्तो मैं अंग्ेजों के खिलाफ हिंदुओं पर किए हमले करी ्तुलना में सौ गुना ्तरीखा , ्तरीव्र एवं प्राणांद्तक हमला करूंगा I ’
संघ और बाबा साहब के बरीच अनगिन्त साम्य होने के प्रमाण मौजूद हैं । अगर दोनों के बरीच विरोध करी बा्त करें ्तो संघ और बाबा साहब के बरीच सिर्फ एक जगह म्तभेद दिख्ता है । संघ का मानना है कि हिनदू एक्ता को बढ़ावा देकर हरी जाद्त-व्यवसथा से मुक्ति पाई जा सक्तरी है जबकि बाबा साहब ने इस का्यमा के लिए धर्म-पररि्तमान का रास्ता असख्त्यार दक्या । ्यहरी वो एकमात् बिंदु है जहां संघ और बाबा साहब के रास्ते अलग हैं , वरना हर बिंदु पर संघ और बाबा साहब के विचार एक जैसे हैं और एक लक््य को लिए हुए हैं । �
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