भार्त के हिनदू व्यापारर्यों पर अनावश्यक करारोपण दक्या और उन पर गल्त ्तररीके से आर्थिक आरोप भरी लगाए ्ताकि हिनदू समुदा्य आर्थिक कठिनाइ्यों के कारण धर्म विमुख हो जाएं , फिर भरी वे भार्त करी धर्माधारर्त आर्थिक सामाजिक समरस्ता को समाप्त नहीं कर पाए । दान-अनुदान , परोपकार , अद्तदथ सेवा , सन्त सेवा , दभषिु सेवा आदि के सामाजिक समरस्ता दर्शन पर आधारर्त परमपराओं के भाव पर किसरी ्तरह करी आंच नहीं आने पाई । लघु-कुिरीर उद्योगों को भाररी क्षति पहुंचाने के बाद भरी भार्तरी्य आर्थिक समरस्ता ने भार्त में उन अरब के विदेशरी कुशासकों को समाज के सामने नग्न करके रख दद्या । इसरी प्रकार ब्रिटिशकाल में विदेशरी वस्तुओं के बहिष्कार और चरखा-खादरी के आविष्कार ने सिदेशरी जागरण के आर्थिक दसद्धां्त के आधार पर भार्त करी सामाजिक समरस्ता को समबल दद्या । वैश्वीकरण के इस दौर में अब भार्त करी आर्थिक समरस्ता को समाप्त दक्या जाना असमभि हरी है । इसरी प्रकार ्यूरोप , अमेरिका और अफ्रीका सदह्त पूरे विशि में पूंजरीिाद एवं लोक्तंत् ्यानरी संविधान के समिश्रित प्रदक्र्या में सामाजिक समरस्ता करी संभावनाएं प्रबल हैं । भार्तरी्य सिदेशरी्य अर्थ चिं्तन के दसद्धां्त द्ारा संसार भर के सभरी देशों में उनकरी अपनरी सिदेशरी्य अर्थ चिं्तन के दसद्धां्त के आलोक में आर्थिक सामाजिक समरस्ता को स्थापित दक्या जा सक्ता है ।
राजनरीद्तक आधार पर सामाजिक समरस्ता करी भार्तरी्य अवधारणा को परिभादष्त कर्ते हुए कहा जा्ता है कि राजनरीद्तक सामाजिक समरस्ता-राष्ट्ररी्य एकरीकरण एवं वासुदेव कुटुमबकम भाव का प्रथम सोपान है । ्यह परिवार , गांव , नगर , और राष्ट्र के संगठनातमक ढांचे में विशि स्तर पर किए जाने वाले संगठनातमक प्र्यासों का दिशा-दनददेश है । इसमें धार्मिक समन्वय , मानसिक एवं जा्तरी्य एक्ता और सांस्कृतिक-सामाजिक एक्ता इत्यादि पाई जा्तरी है ्तथा उन समाजों में वंशवाद , भाषावाद , जाद्तिाद , रंगभेद , निर्धन्ता , धार्मिक पूिामाग्ह , सामप्रदाद्यक्ता आदि असामाजिक भाव नहीं हो्ते
हैं । इसमें समाज दह्त के समषि स्वहित के परित्याग करी भावना परिलदषि्त हो्तरी है । राजनरीद्तक सामाजिक समरस्ता विभिन्न राष्ट्रों करी आं्तरिक सुदृढ्ता को प्रेरणा ्तथा राजनरीद्त के नाम पर मानव समाज को बांटने वालों का कड़ा प्रद्तकार है ।
सांस्कृतिक आधार पर सामाजिक समरस्ता को परिभादष्त दक्या जाना अपने आप में महत्ि का विष्य है , क्योंकि सामाजिक समरस्ता और मानिरी्य संस्कृति का अन्योन्याश्रित समबनध है । सामाजिक समरस्ता एक ्तरफ ्तो मानिरी्य संस्कृति करी उपज है , जबकि दूसररी ्तरफ मानिरी्य संस्कृति करी अमर्ता , वास्तव में सामाजिक समरस्ता एवं उसकरी शाश्वत सार्थक्ता में दनदह्त है । इस आधार पर इसे परिभादष्त कर्ते हुए कहा जा सक्ता है कि मानिरी्य जरीिन-पद्धद्त से समबद्ध प्रा्यः सभरी विष्यों में सामाजिक समरस्ता एक अपेषिा है । इस सनदभमा में भार्तरी्य संस्कृति के स्तुत्य एवं प्रशंसनरी्य प्रेरक प्रसंग , ्यथा- सदहष्णु्ता , समन्वयवादद्ता , प्रकृद्तजन्य मानिरी्य दृष्टिकोण , ्युक्तिसंग्त दार्शनिक्ता ्तथा सन्तुदल्त जरीिनच्यामाएं आदि सांस्कृतिक सामाजिक समरस्ता करी हरी प्रद्तछा्या हैं , जो संसार के प्रत्येक भाग में निवास करने वाले मानव समाज को व्यवस्थित , द्या और करुणा पर आधारर्त आं्तरिक भाव ्तथा मिलकर जरीिन जरीने के दसद्धां्त का दनददेश हैं ।
सामाजिक समरस्ता का भार्तरी्य वैचारिकरी पर आधारर्त संकलपना का मानिरी्य सिद्धान्त मानव-मानव में किसरी वर्ग अथवा श्ेणरी विभाजन के विरुद्ध है । ्यह सिद्धान्त जाद्त , धर्म , रंग , समप्रदा्य , व्यवसा्य ्या आर्थिक भेदभाव आदि किसरी भरी आधार पर मानव समाज का विभाजन नहीं चाह्ता । मानिरी्य आधार पर सभरी को द्या , करुणा , वातसल्य , समान्ता , सि्तनत््ता और न्या्य करी व्यवसथा हरी सामाजिक समरस्ता के मानिरी्य सिद्धान्त करी प्रद्तष्िा है । इसके लिए विशि भर में सभरी मनुष््यों को एक साथ पूजा- अर्चना करने का अधिकार है । भार्त में कुमभ आदि के अवसरों पर नदरी-्तरीथथों का समान रूप से उप्योग करी परंपरा सामाजिक समरस्ता का एक महतिपूर्ण उदहारण है । इसरी प्रकार विशि में पिषोतसिों में सामूहिक भागरीदाररी , प्ररीद्तभोजों में किसरी प्रकार के भेदभाव रदह्त , पूजा-पाठ के सिैसचछक प्रावधान , धर्मगुरुओं एवं पूजासथलों के ( मंदिर , मससजद , गुरुद्ारा , चर्च , बौद्ध विहार आदि ) धर्माचार्यों ्तथा पुजारर्यों द्ारा सबके साथ एक समान व्यवहार और अन्तरजा्तरी्य समबनधों करी स्वीकृद्त ने समरस्ता दर्शन के मानिरी्य सिद्धान्त को प्यामाप्त बल दद्या है । इसको कुछ लोग श्ेणरीदिहरीन सिद्धान्त और कल्याणकाररी सामाजिक सिद्धान्त भरी कह्ते हैं ।
सामाजिक समरस्ता के मर्म को समझ्ते हुए भाजपा और राष्ट्ररी्य स्वयं सेवक संघ लगा्तार पिछले कई सालों से समरस्ता का भाव देशवादश्यों में जगाने के लिए प्र्यास कर रहे हैं और इन प्र्यासों में कुछ हद ्तक सफल्ता भरी मिलरी है । पर ्यह सफल्ता अभरी उपलसबध नहीं बन पाई है और न हरी इस सफल्ता का असर पूरे हिनदू समाज में देखने को मिल रहा है । ्यहरी कारण है कि भार्त के समाज में जाद्तिाद और धर्म करी खाई बरक़रार है । इसलिए ्यह जरुररी हो जा्ता है कि समाज के सभरी वर्ग सामाजिक समरस्ता के लिए मिलकर प्र्यास करे । सं्युक्त और मिलजुल प्र्यासों से हरी भार्त में उस सामाजिक समरस्ता को स्थापित दक्या जा सक्ता है , जिसके बल पर भार्त को पुनः विशि गुरु बना्या जा सकेगा । �
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