lekt
अवधारणा एक अचूक औषधि है । ्यह एक ऐसरी सामाजिक दशा है , जिसमें भेदभावरदह्त मानव समाज एक साथ आचार-व्यवहार कर्ता हुआ जरीिन्यापन कर्ता है और उसमें किसरी भरी प्रकार करी आपस में दरीिार नहीं हो्तरी है । मानव समाज के सभरी िगथों करी आपस में एक्ता एवं समबद्ध्ता को स्थापित करके उनको सुख-शान्ति प्रदान करने में सहा्यक होने के कारण सामाजिक समरस्ता करी अवधारणा में किसरी भरी प्रकार करी विषम्ता के लषिण नहीं पाए जा्ते हैं । मानव समाज के सं्युक्त परिवार , जो आज आर्थिक भेद पर आधारर्त स्तररीकरण के कारण दूदष्त हुआ , उसे सुधारकर पुनजगीदि्त करने हे्तु सामाजिक समरस्ता सुख-समृद्धि , शान्ति एवं कल्याण करी एक परिणद्त है ।
धार्मिक आधार पर सामाजिक समरस्ता को धर्मादद्र्त कर्ते हुए भार्तरी्य समाजशाससत््यों ने कहा है कि पुरुषार्थ का प्रथम साधन ‘ धर्म ’ समाज से अलग नहीं है , इसलिए ‘ धार्मिक मानव
समाज ’ कहा जाए अथवा ‘ सामाजिक धर्म ’ कहा जाए , सामाजिक समरस्ता दोनों हरी सनदभामाें से जुड़री हुई है । संसार में सामाजिक समरस्ता धर्म को सर्वग्ाह्य बनाने करी मरीिरी टिदक्या है । धर्म के सभरी दसों लषिण सामाजिक समरस्ता से अभिपूर्ण होने पर हरी म्यामादद्त हो्ते हैं । आश्म- धर्म करी ररीढ सामाजिक समरस्ता है । ्यह लोगों को धर्माेनमुख बनाए रखने करी एक सषिम प्रेरणा है ।
सामाजिक समरस्ता का अदभप्रा्य आध्यासतमक दर्शन से भरी जुड़ा हुआ है । ्यह मूल्यवान दार्शनिक शासत् करी कड़री है । भार्तरी्य दर्शन पर आधारर्त सामाजिक समरस्ता एक सामान्य प्राकृद्तक प्रदक्र्या है । ्यह मन , आदर्श , सहृद्य्ता से समबसनध्त भावनातमक अभिव्यक्ति अथवा प्रदक्र्या है , जिसे संसार में अि्तारवाद का कारण भरी माना जा्ता है । दार्शनिक चिन्तन के परिप्रेक््य में ्यह सपष्ि रूप से कहा ग्या है कि सामाजिक दन्यमों एवं मानदणडों के प्राकृद्तक
सिरूप को बनाए रखने ्तथा मानव समाज में समरस्ता को सुदृढ़ करने के उद्ेश्य से हरी सम्य-सम्य पर भार्तरी्य एवं अन्यान्य समाजों में ईशिररी्य ्ततिों को धारण करने वाले साधकों का जनम हुआ है , और उनके प्रद्तपादद्त दन्यम भरी सार्वभौमिक हो्ते हुए समरस्तापूर्ण रहे हैं । भार्तरी्य दर्शन इसरी को उद्घोषित कर्ते हुए कह्ता है कि लोगों के व्यवहार ्यदि आपस में समरस्तापूर्ण रहे ्तो भाईचारा एवं बनधुति का भाव उतपन्न होगा ।
आर्थिक आधार पर भरी भार्त में सामाजिक समरस्ता को परिभादष्त दक्या ग्या है । विशि में 15 िरी सदरी ्तक प्रथम अर्थव्यवसथा के रूप में पहचान रखने वालरी भार्तरी्य अर्थव्यवसथा को वाह्य शसक्त्यों ने लूटकर खोखला कर डाला और अर्थव्यवसथा के विविध आ्यामों में पललदि्त-पुसष्प्त एवं िदल्त भार्त करी आर्थिक समरस्ता को जड़ से उखाड़ फेंकने का भरसक प्र्यास दक्या । मध्यकालरीन दास्ताकाल के मध्य
42 uoacj 2023