eMag_Nov2023_Dalit Andolan Patrika | Page 41

है । स्वतंत्रता , समान्ता और सामाजिक न्या्य करी पृष्ठभूमि में सुख-समृद्धि करी आकांषिा-पूद्तमा निश्चित रूप से स्ेदहल सदहष्णु्ता के मूल्यपरक
‘ सामाजिक समरस्ता ’ पर हरी आद्धृ्त है । इसरीदलए दुष्कर एवं दुर्गम परिससथद्त्यों में भरी सामाजिक समरस्ता के लिए प्र्यास किए गए थे और आज भरी उसे परमावश्यक समझकर एक आवाहन का सिरूप प्रदान दक्या जा रहा है । अ्तएव कहा जा सक्ता है , कि सामाजिक समरस्ता पूर्णरूपेण भार्तरी्य चिन्तन है क्योंकि प्राचरीन भार्तरी्य सामाजिक व्यवसथा में धर्म ्यानरी वैदिक सना्तन हिनदू धर्म का ्तात्पर्य " धारण करने " से है । सामाजिक दन्यम-कानून को धारण करने से एक व्यवस्थित समाज का स्वयमेव संचालन समभि हो्ता है , ऐसे में धर्म स्वयं सामाजिक समरस्ता का प्यामा्य है ।
सामाजिक समरस्ता का भार्तरी्य दृष्टिकोण धर्म करी अवधारणा से परिपूर्ण एवं सामाजिक दन्यमों एवं कानून के धारण करने से है । सामाजिक दन्यम-कानून को धारण करना धर्म है , क्योंकि इससे एक व्यवस्थित समाज का स्वयमेव संचालन समभि हो्ता है । ऐसे में धर्म स्वयं सामाजिक समरस्ता का प्यामा्य है । धर्म के दस लषिण ( धृद्त , षिमा , दम , अस्ते्य , शौच , इन्द्रिय-दनग्ह , आध्यातम ज्ान , विद्या , सत्य ्तथा अक्रोध ) को ्यदि क्रमशः विश्लेषित करके देखें ्तो ्यह सपष्ि हो जा्ता है , कि सामाजिक समरस्ता करी भार्तरी्य व्याख्या ( परिभाषा अथवा अर्थबोध ) धर्म के इनहीं दस लषिणों से समबसनध्त है । उदाहरणार्थ धृद्त ्यानरी धै्यमा को ्यदि
सामाजिक समरसता दर्शन की अवधारणा एक भेदभावमुति समाज की पनममात्ी है । सामाजिक विषमता , ककृ पत्म भेदभावपूर्ण जातीयता , रंगभेद अथवा प्रजाति भेद और आर्थिक भेदभाव पर आधारित दूषित मानसिकता एवं अनैतिकतायुति व्यवहार की समाप्ति हेतु संसार में सामाजिक समरसता दर्शन की अवधारणा एक अचूक औषधि है ।
सर्वानुककूल एवं सिमादह्ता्य बना्या जा्य ्तो अधर्म का अस्तितिबोध होगा हरी नहीं और सामाजिक समरस्ता से समपूणमा मानव समाज सराबोर रहेगा
हरी । ऐसे हरी अन्य लषिणों को सिमादप्र्य एवं सर्वलाभदा्यक सिरूप में स्वीकार दक्या जाए ्तो समाज में विषम्ता का नाम नहीं रहेगा और सामाजिक समरस्ता करी सथापना स्वयं स्थापित हो जाएगरी । अन्य शबदों में कह सक्ते हैं कि सामाजिक समरस्ता का अर्थ अथवा उसकरी परिभाषा हिनदू धर्म के दस लषिणों को आतमसात् किए हुए है । हिनदूपरक सामाजिक समरस्ता से सामाजिक , धार्मिक , आर्थिक , राजनरीद्तक और सांस्कृतिक समरस्ता प्राप्त करी जा सक्तरी है ।
सामाजिक दृष्टिकोण में सामाजिक समरस्ता मानिरी्य मूल्यों पर आधारर्त सामाजिक संगठन के सनदभमा में सानुककूल एवं सार्थक परिणाम है । सामाजिक सुख-शान्ति करी पृष्ठभूमि में सामाजिक समरस्ता एक समाजशासत्ारी्य विष्य है । ्यह आधुनिक समाजशासत् अथवा समाजविज्ान का एक न्या्यिादरी एवं संवैधानिक शासत् का समग् ्तथा शासत्री्य चिन्तन है । ्यह दो ्या दो से अधिक लोगों को एक-दूसरे के सन्निकट लाने और आपस में समन्वित कर देने करी प्राकृद्तक एवं सिाभाविक प्रदक्र्या है । संसार के सभरी प्रकार के मानव समाज करी सुदृढ्ता के लिए ्यह एक प्रशंसनरी्य आग्ह एवं आवश्यक पहल है । सामाजिक समरस्ता करी अनुशंसा के अनुमोदक भरी अब ्यह मानने लगे हैं कि सामाजिक समबनधों को शाश्वत एवं सुमधुर बनाए रखने के लिए सामाजिक समरस्ता शासत् एक कुंजरी है । विशि भर में प्राप्त प्रत्येक विषम , प्रदूदष्त एवं रूदढग्स्त मानव समाज को सिमादप्र्य बनाने और निरीन परिधान में सुसंगठि्त करने के लिए सामाजिक समरस्ता करी अवधारणा एक अपिरहा्यमा धै्यमा , सानतिना और विशिास है । सामाजिक समरस्ता दर्शन अपने आप में सामाजिक संगठन का कारक और कारण , दोनों है ।
सामाजिक समरस्ता दर्शन करी अवधारणा एक भेदभावमुक्त समाज करी निर्मात्री है । सामाजिक विषम्ता , कृदत्म भेदभावपूर्ण जा्तरी्य्ता , रंगभेद अथवा प्रजाद्त भेद और आर्थिक भेदभाव पर आधारर्त दूदष्त मानसिक्ता एवं अनैद्तक्ता्युक्त व्यवहार करी समाप्ति हे्तु संसार में सामाजिक समरस्ता दर्शन करी
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