eMag_Nov2023_Dalit Andolan Patrika | Page 40

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विषम्ताओं एवं भेदभाव वाले विशि के अन्य समाजों के लिए सामाजिक समरस्ता अद्त आवश्यक है ।
भार्तरी्य समाज करी पूर्वकालिक समरस्ता प्रशंसनरी्य रहरी है । उसकरी अवधारणा वैदिक हिनदू धर्म माने हिनदुति के दस ्ततिों ( धृद्त , षिमा , दम , अस्ते्य , शौच , इन्द्रिय-दनग्ह , धरी , विद्या , सत्य ्तथा अक्रोध ) से अभिप्रेरर्त रहरी । इन ्ततिों के अनुककूलन में सामाजिक समरस्ता के व्यापक प्रभाव का अनुमान एवं अवलोकन करने के बाद हरी वाह्य शसक्त्यों ने भार्त पर आक्रमण कर इन पर प्रत्यषि रूप से प्रहार दक्या और भार्त करी समरस्ता को समाप्त करने में
सफल रहे । आज भरी ्यदि इन ्ततिों को सिसथ एवं सिचछ मनःस्थिति से निरभिमानपूर्वक सुप्रद्तसष्ि्त कर दद्या जा्य ्तो भार्तरी्य समाज में सामाजिक समरस्ता को स्वतः स्थापित होने से कोई रोक नहीं सक्ता है ।
सामाजिक समरस्ता करी पसशचमरी अवधारणा भार्तरी्य चिन्तनधारा करी ्तुलना में बहु्त सामान्य दृष्टिगोचर हो्तरी है । ऐसा इसलिए कि पसशचमरी देशों में सामाजिक विषम्ता और भेदभाव का आधार जाद्त नहीं , बसलक अन्यान्य कारण जैसे रंग भेद , सभ्य्ता भेद , विकास स्तर , पनथ भेद एवं आर्थिक भेदभाव ्या आर्थिक समपन्न्ता और विपन्न्ता है । जहां पर इस प्रकार के भेदभाव हैं ,
वहां के विचारकों का दृष्टिकोण भार्त करी हरी ्तरह इसकरी संसथापना के पषि में है और जहां विषम्ता एवं भेदभाव का दुर्गुण नहीं है , वहां समरस्ता के प्रद्त उदासरीन्ता सिाभाविक है । अलग-अलग अवधारणाओं के कारण हरी सिेदशरी एवं विदेशरी विचारकों द्ारा सामाजिक समरस्ता करी प्रदत्त परिभाषाएं भरी एक जैसरी नहीं हैं ।
भार्तरी्य दृष्टि में सुख-दुख , अचछा-बुरा , लाभ-हानि , ्युद्ध-शान्ति , धर्म-अधर्म , नरीद्त- अनरीद्त , विशि शांद्त-आं्तकवाद करी भांद्त समरस्ता-विषम्ता भरी एक महत्िपूर्ण चिन्तन है । मानव समाज में गद्तशरील्ता एवं निरन्तर्ता के लिए सामाजिक समरस्ता हरी एकमात् विकलप
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