‘ सिवे भवन्ु सुखिनः ,’ सिवे सन्ु निरामयाः पर आधारित भारतीय संस्कृ ति के रोम-रोम में वैश्विक सामाजिक समरसता की सोच रची-बसी है । अगर हम वैश्विक मानव समाज पर निगाह डाले तो पूरे विवि में सामाजिक विषमता का भाव मौजूद है ।
विशेष महत्िपूर्ण हो गई है ।
‘ सिदे भवन्तु सुखिनः ,’ सिदे सन्तु निराम्याः पर आधारर्त भार्तरी्य संस्कृति के रोम-रोम में वैसशिक सामाजिक समरस्ता करी सोच रचरी-बसरी है । अगर हम वैसशिक मानव समाज पर निगाह डाले ्तो पूरे विशि में सामाजिक विषम्ता का भाव मौजूद है । कहरी पर ्यह जाद्तग्त भेदभाव के रूप में , ्तो कहरी रंगभेद के रूप में , ्तो कहरी पर आर्थिक भेदभाव के नाम पर , मानव समाज को जूझना पड़ रहा है । मानव समाज के सकारातमक रूप में बाधा डालने वालरी इन विषम्ताओं का समग् रूप से समाधान करने में सामाजिक समरस्ता दसद्धां्त करी अपनरी एक अहम् भूमिका है और इसरी के माध्यम से वैसशिक मानव समाज का कल्याण हो सक्ता है । इस आधार पर देखा जाए ्तो सामाजिक समरस्ता करी अवधारणा महत्िपूर्ण है और हमें भार्तरी्य
संस्कृति को रेखांदक्त कर्ते हुए वैसशिक सामाजिक विषम्ताओं को खतम करने के लिए आगे आना होगा । ध्यान ्यह भरी रखना होगा कि सामाजिक समरस्ता का भाव जब ्तक प्रत्येक व्यक्ति में नहीं आ जा्ता , ्तब ्तक अनावश्यक निम्न्ता-श्रेष्ठता के अभिमान-सागर में आकणि डूबरी हुई मानव के मनःस्थिति करी जड़्ता समाप्त नहीं हो सकेगरी और सामाजिक विषम्ताओं को समाप्त करने के लिए समाज सुधारकों द्ारा किए जा रहे प्र्यास सकारातमक परिणामदा्यरी नहीं हो सकेंगे ।
सामाजिक समरस्ता करी अवधारणा भौद्तक एवं आध्यासतमक चिन्तन धाराओं का एक महत्िपूर्ण पषि है । ्यह अवधारणा विशिबनधुति एवं वसुधैवकुटुमबकम् से अभिप्रेरर्त है । वैसे ्तो ्यह वैदिक भार्तरी्य समाज के सिदणमाम सिरूप करी ि्तमामान कलपना का प्रद्तदबमब है , जो वैसशिक
रूप से संसार सा सभरी प्रकार के मानव समाज , सभरी काल खंड एवं सिमात् के लिए उप्योगरी है । देखा जा्ये ्तो आज मानव मूल्यों के संरषिण एवं समाज कल्याण के अभिचिन्तन में समरस्ता हरी मुख्य केनद्र बिनदु है । उपनिवेशवादरी , साम्राज्यवादरी , पूंजरीिादरी , ्तानाशाहरी शसक्त्यों करी मनोवृत्ति के लिए समरस्ता एक चुनौ्तरी है । साम्यवादरी , समन्वयवादरी , समान्ता-सम्तावादरी , समाजवादरी क्रासन्त्यों करी सफल्ता के लिए समरस्ता एक शसत् है । सामाजिक समरस्ता , संगठन करी शक्ति है और विषम्ता उसकरी निर्बल्ता । सामाजिक समरस्ता करी अवधारणा प्राचरीन भार्तरी्य परिवारों में " अद्तदथ देवो भवः " के रूप में विद्यमान थरी । गुरुकुलों करी दशष््य- मणडलरी में कोई विषम्ता नहीं थरी । सामाजिक समरस्ता के प्र्तरीक सिामरी विवेकाननद जैसरी हसस्त्यों ने भार्तरी्य सामाजिक समरस्ता के सनदेश को अमेरिका जैसे दूर-दराज के देशों ्तक ‘ अमेरिका के मेरे प्यारे भाइ्यों एवं बहनों ’ के समबोधन से प्रसारर्त दक्या था । भार्तरी्य समाज में कृदत्म विषम्ताओं के कारण पूर्वप्रद्तसष्ि्त सामाजिक समरस्ता का लोप होना दुःखद है । उसकरी पुनसथामापना ्युग करी मांग है , विशेष्तः भार्तरी्य समाज एवं इसरी प्रकार के
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