बड़े सहज भाव से व्यक्त हो्ते हैं । परिण्य के परिप्रेक््य में भगोरर्या हाट भरील आदिवासरी संस्कृति करी विदशष्ि्ता है । आदिवासरी बहुल मध्य प्रदेश में भरीलों के अद्तरिक्त अन्य किसरी भरी जनजाद्त में साप्ताहिक हाट-बाजार का वैवाहिक महति नहीं है । लोक संस्कृति को जरीिं्त बनाने वाले भरीलों में विवाह संसकार का विशेष महति है । भरीलों में विवाह से संबंदध्त दो प्रथाएं उललेखनरी्य हैं - प्रथम ्तो वधू मूल्य करी प्रथा है । वधू मुल्य वह राशि एवं वस्तुएं हैं जो कि वर पषि के द्ारा वधू के अभिभावकों को दरी जा्तरी है । इस रूप में ्यह शेष समाज में प्रचदल्त दहेज प्रथा से विपररी्त है । दद््तरी्य - सेवा-विवाह के रूप में घर जमाई प्रथा है ।
वास्तव में भरील मध्य प्रदेश हरी नहीं वरन भार्त करी एक बड़री जनजाद्त है , जिनकरी अपनरी पृथक संस्कृति है । उस संस्कृति को साक्षात भोग्ते हुए , उसमें जरी्ते हुए , पारसपरिक दन्यंत्ण के
माध्यम से अपनरी संस्कृति को वे संरदषि्त रख्ता है ्तथा परीढरी दर परीढरी उसका सफल्तापूर्वक संचार कर्ता है । वस्तु्तः ्यहरी वे ्तति हैं जिनके कारण भरील जनजाद्त अपनरी सांस्कृतिक धरोहर को अनेकानेक संघा्तों के बावजूद अषिुणण रखे हुए है । किं्तु खेद करी बा्त है कि ग्त कुछ सालों में इन आदिवादस्यों के वैभव व विक्रम को जल , जंगल , जमरीन के धर्म को , राग और रंगों को , रूप और रास को न जाने किसकरी नजर लग गई है । फिर भरी ्यह महान जाद्त बड़री प्रसन्न , उदार और अलमस्त सहृद्य रहरी है । उनके ्तन पर गोदनों करी सुंदर्ता , पक्षी , जानवर व पेड़ों में देव आसथा , पिथों व मेलों का लोक रंग , उनके कंठों में गरी्त का अमृ्त और पैरों में नृत्य का सममोहन रचा हुआ है ।
भरील जनजाद्त लोक समाज का एक अहम् हिससा है । इनकरी अपनरी कुछ मान्य्ताएं , ररीद्त- रिवाज , बोलरी , परंपरा ्तथा जरीिन-शैलरी है जिनके
द्ारा इनकरी संस्कृति दनदममा्त हो्तरी है । चूँकि भरील जनजाद्त में दशषिा का स्तर न्यून्तम है ्तथा बाह्य जरीिन से संपर्क भरी सरीदम्त है । इसरीदलए उनके सृजन में निरीन्ता ्तथा पररि्तमान अधिक दिखाई नहीं पड़्ता है । वह सिर्फ अपनरी जमरीन , अपने साधनों , अपना मस्तिष्क और अपनरी परंपराओं से जुड़ा हुआ है । इनके पास अपनरी लोककथा , गलप , गरी्तों , मिथ , किंवदंद्त्यों , मुहावरों व कहाि्तों का विषद भंडार है । जिससे इनकरी लोक परंपरा सदैव अग्गामरी रहरी है । ऐसे में आज आवश्यक्ता इस बा्त करी है कि इनकरी संस्कृति को जरीिं्त बना्या जाए ्तथा इनकरी संस्कृति को संरदषि्त रखा जाए । जिससे ि्तमामान संचार क्रांद्त के ्युग में ्तथा भविष््य में भरी इनके अनुभवों , इनकरी संसकृद्त्यों से लाभांवि्त हुआ जा सके । साथ हरी इन प्रकृद्त पुत्ों के पारंपरिक विशिासों , ररीद्त-रिवाजों को संरषिण भरी मिल सके ।
( साभार )
uoacj 2023 37