eMag_Nov2023_Dalit Andolan Patrika | Page 36

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नहीं हो्ते हैं । विवाह में ्तो शराब अनिवा्यमा है । बरीमाररी पर देिरी-देि्ताओं को ्तपमाण करने के लिए , जादू-टोने के प्रभाव से मुक्ति हे्तु आतमाओं करी सं्तुष्टि के लिए देव-बड़वा ( देवों करी सामूहिक पूजा ) के अवसर पर शराब का प्र्योग दक्या जा्ता है । शराब के अद्तरिक्त नशे के लिए भरील ्ताड़री भरी परी्ते हैं । भरील धूम्रपान के भरी शौकरीन हो्ते हैं । भरील जनजरीिन में धूम्रपान का महतिपूर्ण सथान है । अद्तदथ को बरीड़री पिलाना इनके समाज में आद्त्थ्य का सूचक है ।
भरील जनजाद्त करी वेशभूषा अत्यं्त साधारण है , इनमें दिखावा नाम-मात् का भरी नहीं हो्ता । भरील पुरुषों करी दैनंदिन वेशभूषा मात् एक लंगोिरी है ्तथा सिर पर फेंटा बांधने का प्रचलन भरी है । निर्धन भरील वस्तु्तः फेंटा न बांध कर एक मरीिर लंबा और एक फुट चौड़ा कपड़े का टुकड़ा लेकर सिर पर लपेट ले्ते हैं । उनकरी इस वेशभूषा का प्रत्यषि संबंध आर्थिक स्थिति ्तथा बाह्य संपर्क से
है । भरील पुरुषों करी अपेषिा भरील महिलाएं िसत्ों के प्रद्त सजग हो्तरी हैं । भरील महिलाओं करी वेशभूषा में सामान्य्तः लुगड़ा , ओढ़नरी , चोलरी ्तथा लँहगा सम्मिलित हो्ता है । भरील जनजाद्त सामान्य्तः विपन्न्ता के कारण िसत्ों पर अधिक व्य्य नहीं कर पा्ते , किं्तु साज-सज्ा में ्ये वनों से प्राप्त होने वाले िकूलों-पदत्त्यों को श्ृंगार साधन बना्ते हैं । विशेष अवसरों पर ्यह चांदरी के आभूषणों को धारण कर्ते हैं ।
भरील जनजाद्त करी लोक संस्कृति में दचत्ांकन करी परंपरा अत्यं्त महतिपूर्ण है । भरील सत्री-पुरुष शररीर को अलंकृ्त करने के लिए आभूषणों के अद्तरिक्त गुदना का भरी प्र्योग कर्ते हैं । गुदना कद्तप्य जनजाद्त्यों में जा्तरी्य प्र्तरीक भरी हो्ता है । उदाहरणसिरूप भरील महिलाओं के द्ारा आंखों के सिरों पर दो आड़री लकरीरें गुदवाना भरील होने का प्र्तरीक है । इ्तना हरी नहीं ्यदि किसरी सत्री के शररीर पर गुदना न गुदा हो ्तो उस सत्री के हाथ
का पानरी ्तक परीना िदजमा्त हो्ता है । वास्तव में गुदना गुदवाने करी प्रेरणा आदिवादस्यों को आदिमानवों द्ारा उत्कीर्ण गुहा-चित्ों से मिलरी है । अ्तः आदिवासरी समाज में माथे से लेकर पैर करी उँगदल्यों ्तक अनेक प्रकार का दचत्ांकन गुदना के अं्तगमा्त दक्या जा्ता रहा है , किं्तु आज इस समाज करी लोक परंपरा समाप्ति करी कगार पर आ खड़री हुई है ।
प्रकृद्त के साथ अं्तदक्फ्या कर्ते हुए हरी मानव ने कंठ और वाद्य संगरी्त का विकास दक्या है , जिसमें भरील जनजाद्त का विशेष महति है । ढोल ्या मांदल और बाँसुररी करी धुन पर भरील इ्तना मधुर गा्ते हैं कि मन मुगध हो उि्ता है । भरीलों के वाद्य ्यंत्ों में थालरी भरी शामिल है । नगाड़े का छोटा प्रारूप भरी वे गले में लटकाकर हाट मेलों में गा्ते-बजा्ते हुए देखे जा्ते हैं । अ्तः भरील जनजाद्त के सांस्कृतिक धरोहरों में गरी्त-संगरी्त सिषोपरि है । इसके गा्यन द्ारा शासबदक दचत्ण
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