प्र्योग कर्ता है ्तथा जिसकरी सामान्य संस्कृति है । प्रारंभ से हरी ्ये आदिवासरी प्रकृद्त के निकट रहे थे । ्ये प्रकृद्त प्रेमरी हो्ते हैं ्तथा आज के वैज्ादनक ्युग में भरी प्राकृद्तक जरीिन जरीना पसंद कर्ते हैं ।
ि्तमामान में भार्त में जनजा्तरी्य समूहों करी कुल संख्या 700 से अधिक है , जिनमें प्रमुख्तः कोल , भरील , संथाल , मुंडा , उराँव आदि हैं , जिसमें भरील एक बड़री जनजरीद्त के रूप में उभररी है । भरील मध्य प्रदेश करी दूसररी बड़री जनजाद्त है । ्यह लोग भिलाला ्तथा भरील गरादस्या भरी कहला्ते हैं । मध्य प्रदेश में ्ये मुख्य्तः खरगोन , धार , झबुआ और र्तलाम जिलों में निवास कर्ते हैं । इन जिलों के अद्तरिक्त पूर्व निमाड़ ( खंडवा )
जिले में भरी वे प्यामाप्त संख्या में रह रहे हैं । मालवा और निमाड़ अंचल के विभिन्न नगरों में निर्माण का्यमा में संलग्न मजदूरों के रूप में भरीलों को बड़री संख्या में देखा जा सक्ता है । भरील शबद करी उतपदत्त के संबंध में ्यह माना जा्ता है कि इस शबद करी उतपदत्त मूल्तः उच्चारण संबंधरी भेद के कारण संस्कृत के मूल शबद ' भिद् ' से हुई है । भिद का भावार्थ है-बंधना , भेदना , वेधना ( लक््य को वेधना ) आदि । ऐसा माना जा्ता है कि ऋषि वाल्मीकि स्वयं भरील थे ्तथा उनका मूल नाम वादल्या था । इसरी प्रकार महाभार्त में धनुर्विद्या में प्रिरीण प्रसिद्ध एकलव्य भरी भरील जनजाद्त थे , जिनहोंने गुरु ददषिणा में अपना अंगूठा काटकर दे दद्या था । भरील स्वयं को प्रकृद्त-पुत् कह्ते हैं ।
भरील साहसरी और पराक्रमरी हो्ते हैं ्तथा वे जरीिि के पकके व आतमादभमानरी हो्ते हैं । वनों से उनका भावनातमक जुड़़ाव है । भरील जनजाद्त करी अपनरी अलग वेशभूषा , रहन-सहन , खान-पान , भाषा ्तथा जरीिन शैलरी है । इनकरी अपनरी पृथक संस्कृति है जो लोक से बहु्त हरी गहराई से जुड़री हुई है ।
विशि करी सभरी जाद्त्यों एवं संप्रदा्यों में ्तरीज- त्यौहार मनाने का प्रचलन अनादिकाल से चला आ रहा है , जिनसे उनकरी लोक संस्कृति के दर्शन हो्ते हैं । भरील जनजाद्त हषषोललास से अपने त्यौहार मना्तरी है । उनका सबसे महतिपूर्ण त्यौहार होलरी है । होलरी के दूसरे दिन मना्या जाने वाला इनका पर्व ' गल ' कहला्ता है । अभािग्स्त भरील समुदा्य इस पर्व में विविध मनौद्त्यों को मांग्ता है और ्यदि मनोकामना पूररी हुई ्तो वह गल के खंभे पर झूलकर ्तरीन , पांच ्या सा्त परिक्रमा कर्ता है । इसरी प्रकार होलरी के पश्चात एकादशरी को ' गढ़ ' नामक पर्व का आ्योजन दक्या जा्ता है । भरील चूंकि िरीर्तापूर्वक कार्यों में अधिक रुचि ले्ते हैं । ऐसे में ' गढ़ ' पर्व में भरील ्युवकों के शौ्यमा प्रदर्शन और मनोरंजन का एक आ्योजन हो्ता है । ्यहरी उनकरी संस्कृतिक धरोहर है , जो उनके लोक में व्याप्त है ।
भरीलों का एक और प्रमुख त्यौहार है - ' दिवासा '। इसे जून माह में मना्या जा्ता है । इस दिन सामूहिक रूप से भरील विभिन्न देिरी-देि्ताओं करी पूजा कर्ते हैं , बलि दे्ते हैं और मद्य का ्तपमाण कर्ते हैं । कुछ त्यौहारों को इनहोंने हिंदू समाज से दल्या है , जिनहें ्ये अपनरी सामाजिक मान्य्ताओं के अनुसार मना्ते हैं । जैसे - दशहरा , दरीपावलरी , रामनवमरी आदि । ऐसा लग्ता है कि भरीलों के समस्त त्यौहार इनके आतमदिशिास , श्द्धा और मन करी उमंगों करी देन है । ्यहरी उनकरी सांस्कृतिक धरोहर है । जो उनके लोक में व्याप्त है । भरीलों के जरीिन्यापन का प्रमुख स्रोत कृषि है । प्यामाप्त कृषि भूमि के सिामरी भरील ्यथासंभव खाद्यान्न स्वयं उपजा्ते हैं ्तथा उनहीं से अपना ्तथा अपने परिवार का भरण-पोषण कर्ते हैं ।
भरील जनजाद्त्यों में शराब का व्यसन अत्यधिक है । भरीलों का कोई भरी पर्व , विवाह , जनम-मृत्यु आदि आ्योजन बिना शराब के पूरे
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