eMag_Nov2023_Dalit Andolan Patrika | Page 33

उनहें जोड़ रहरी है और उनका समाज के साथ सरीधा संवाद बना रहरी हैंI
मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश , बिहार , दिल्ली से प्रकादश्त होने वालरी अनेक ददल्त विष्यक पदत्काएं हैं । कुछ पदत्काओं ने अपनरी विशेष पहचान बनाई है । किसरी भरी पदत्का को अचछे वैचारिक मुद्ों करी जरूर्त हो्तरी है । समसामद्यक और जिलन्त प्रश्नों को उठाना सम्य करी मांग है । आवश्यक मुद्ों और जिलन्त प्रश्नों पर लिखरी रचनाओं को महत्ि देकर प्रकादश्त करना प्रगद्तिादरी विचारधारा का प्र्तरीक है । इसके साथ उन पदत्काओं को महत्िपूर्ण माना जा्ता है , जिनमें ससत््यों और अलपसंख्यकों को सथान प्राप्त होI
‘ ददल्त विमर्श ’ और ‘ सत्री विमर्श ’ अब सरीदम्त षिेत् का विष्य नहीं है । अब इन विष्यों पर विशिस्तर पर चर्चा हो रहरी है । ददल्त विष्यक पदत्का इसमें बराबर करी हिससेदाररी निभा रहरी हैं । इस दृष्टि से ‘ अपेषिा ’ पदत्का ने विशेष मुकाम हासिल दक्या है । इस पदत्का ने ददल्त लेखिकाओं को भरी जोड़ा है । लेकिन ्यह भरी सत्य है कि ददल्त लेखिकाएँ अधिक संख्या में
आगे नहीं आ सकीं । अभरी भरी उनकरी संख्या कम है । ‘ लेखन में ददल्त महिलाएँ ’ किस मुकाम ्तक पहुंचरी है , इसे पदत्काओं में प्रकादश्त उनके लेखन से समझा जा सक्ता हैI
सवाल ्यह है कि हिन्दी में ददल्त लेखिकाओं करी संख्या कम क्यों है ? इसका पहला और मुख्य कारण ्यह है कि हमाररी महिलाएं लेखन के षिेत् में परीछे हैं । दूसरा कारण ्यह है कि उनहें प्रेरणा और प्रोतसाहन नहीं मिल पा्ता है । ्तरीसरा कारण है सह्योग करी कमरी । ्यदि उनहें सह्योग के साथ प्रेरणा और प्रोतसाहन दद्या जा्ये , ्तो हमाररी लेखिकाएं अधिक संख्या में आगे आएंगरी । ्यदि घर परिवार से उनहें सह्योग और प्रेरणा प्रोतसाहन नहीं मिल पा्ता है , ्तो ऐसरी साहित्यिक सामाजिक संसथाएं बनाई जाएं , जो ददल्त ससत््यों को लेखन और प्रकाशन के षिेत् में आने आगे के लिए प्रोत्साहित करें । ऐसा होने पर , ्यह विशिास के साथ कहा जा सक्ता है कि ददल्त महिलाएं पुरूषों करी अपेषिा अधिक संख्या में आगे आएंगरी और लेखन-प्रकाशन के षिेत् में अपना करीद्तमामान स्थापित करेंगरीI
ददल्त लेखिकाओं करी संख्या आज भले हरी
कम है , लेकिन उनके लेखन का आधार विरोध , आक्रोश और विद्रोह है । वे सदद्यों से चलरी आ रहरी हिनदूिादरी नाररी शोषण करी परमपराओं को ्तोड़ने करी बा्ते कह रहरी हैं । ददल्त लेखिकाएँ अपनरी अस्मिता , और अस्तिति करी बा्त अपने लेखन के माध्यम से कर रहरी हैं । वे जाद्तभेद के कारण होने वाले अन्या्य अत्याचार के विरोध करी बा्त भरी कह रहरी हैं । वे नाररी शोषण , ददल्त शोषण के विरूद्ध अपने विचार रख्ते हुए , ददल्त मानस में मनोबल का निर्माण करने का काम कर रहरी हैंI
ददल्त विष्यक लेखन मात् लेखन नहीं , बसलक ददल्त आनदोलन का साधन है । इस साधन का उप्योग ददल्त लेखिकाएं भरी समाज व्यवसथा में पररि्तमान के लिए कर रहरी हैं । ददल्त महिलाओं के अपने संगठन हैं । सम्य-सम्य पर महिलाओं के सममेलन सेमिनार शिविर और विचार गोसष्ि्यां हो्तरी हैं , जिनमें ददल्त महिलाओं करी ि्तमामान स्थिति और भविष््य करी प्रगद्त पर चर्चा करके सुझाव और प्रस्ताव रखे जा्ते हैं । महिला संगठनों के ऐसे का्यमाक्रमों से जुड़कर , ददल्त लेखिकाएं ददल्त आनदोलन का उद्ेश्य और अपने लेखन का लक््य समझ रहरी हैं । इस ्तरह उनका लेखन उद्ेश्यनिष्ठ बन ग्या हैI
ददल्त लेखिका और का्यमाक्तामा महिला संगठि्त होकर अपने उद्ेश्य करी ओर लगा्तार बढ़ रहरी हैं । वे अपने साथ अधिक से अधिक महिलाओं को जोड़ रहरी हैं । ददल्त महिलाओं के लेखन और प्रकाशन में वृद्धि हो रहरी है । भाषान्तर के द्ारा भरी अलग भाषा भाषरी लेखिकाओं का परिच्य बढ़ रहा है । लेखन प्रकाशन के साथ प्रचार माध्यमों से जुड़ना ददल्त लेखिकाओं के लिए आवश्यक है । इसलिए ्यह जरूररी है कि ददल्त लेखिका पदत्काओं से जुड़कर , लेखन प्रकाशन का प्रचार प्रसार करें । महिलाओं करी अपनरी पदत्का हों , जिनके माध्यम से वे अपनरी समस्याओं और सवालों को राष्ट्ररी्य स्तर पर और अन्तर्राष्ट्ररी्य स्तर पर उठा्यें । ्तभरी उनका लेखन और ‘ महिला जागृद्त आनदोलन ’ पूणमा्ता के साथ सफल्ता पा सकेगाI
( साभार ) uoacj 2023 33