eMag_Nov2023_Dalit Andolan Patrika | Page 32

eqn ~ nk

दलित महिलाएं और पत्कारिता

सुशीला टाकभौरे

ददल्त विष्यक साहित्य के विष्य में सभरी जान्ते हैं , ददल्तों का , ददल्तों के लिए ददल्तों द्ारा लिखा साहित्य । अब ्यह स्थापित साहित्य के समानान्तर माना जाने वाला सर्वमान्य साहित्य है । ददल्त विष्यक साहित्य करी आधार भूमि डा । भरीमराव आंबेडकर करी विचारधारा है । पिछड़े दबे कुचलों करी स्थिति को ब्ताकर , उनकरी समस्याओं का निदान और उनकरी प्रगद्त पररि्तमान करी दिशा में अग्सर होने का संदेश हरी ददल्त विष्यक साहित्य का उद्ेश्य है । लेखन और प्रकाशन के षिेत् में ददल्त विष्यक साहित्यअपनरी विशेष स्थिति पा रहा है । देश करी सभरी भाषाओं में ददल्त विष्यक साहित्य लिखा जा रहा है । अनुवाद-रूपान्तर के द्ारा अलग अलग भाषा के लोग एक-दूसरे के साहित्य को पढ़कर समझ रहे हैं । पूरे देश में ददल्त विष्यक साहित्यकारों करी व्यथा , समपूणमा ददल्त वर्ग करी व्यथा के रूप में प्रचारर्त - प्रसारर्त हुई है और लगा्तार हो रहरी हैI

साहित्य के विचार प्रचार का सबसे बड़ा माध्यम मरीदड्या है । मरीदड्या का अपना महत्ि है । अभरी ्तक मरीदड्या सिणथों के हाथों में हरी था और अभरी भरी है । ऐसा कहा जा्ता है कि सवर्ण अपनरी विचारधारा अपने ढंग से सशक्त रूप में , तिरर्त रूप में फैला्ते रहे हैं । ्यहरी कारण है कि देश और विदेशों में अभरी भरी ददल्तों करी व्यथा को सहरी मूल्यांकन नहीं मिल पा्या है । ‘ सोने करी दचदड़्या ’ कहलाने वाले अपने हरी देश में , ददल्त सदद्यों से दक्तने कष्ट और अभाव का जरीिन जरी रहे हैं , ्यह सर्वविदद्त है । समाज में अभरी ्तक उनहें न ्तो सम्ता सममान मिला , न हरी भाईचारा मिल सका है । देश को
स्वतंत्रता मिलने के बाद भरी , देश का दलदख्त संविधान लागू होने के बाद भरी देश के ददल्तों करी स्थिति में पररि्तमान नहीं हो सका । इसका मुख्य कारण है मरीदड्या पर सिणषो का एकाधिकार होना । सवर्ण मरीदड्या हमेशा ्यहरी ब्ता्ता रहा - ‘ देश में कहीं कोई भेदभाव नहीं है , सब बराबर हैं और सब मिलजुल कर रह्ते हैंI ’
गांधरीजरी ने अपने ‘ हरिजन ’ पत् के माध्यम से , शुरू से ्यहरी ब्ता्या था कि देश के अछू्त हिनदुओं से अलग नहीं हैं । वे सब प्रेम के साथ मिल जुलकर रह्ते हैं । जबकि स्थिति इसके विपररी्त थरी जिसे डा । आंबेडकर अच्छी ्तरह समझ सके थे । डा । आंबेडकर ने पत्कारर्ता के माध्यम से ‘ हरिजन ’ पत् के समानान्तर अपने समाचार पत्ों का प्रकाशन दक्या और अपनरी बा्त सहरी रूप में देशवादस्यों ्तक पहुंचाई । उनहोंने मूकना्यक , प्रबुद्ध भार्त जन्ता जैसे पत्ों को प्रकादश्त दक्या था । अब बाबासाहब को मानने वाले आंबेडकरवादरी विचारधारा का प्रचार प्रसार करके , उनके विचार और ददल्त शोदष्तों करी स्थिति के सत्य रूप को समाज ्तक पहुंचा रहे हैं । ददल्त स्वयं अपनरी व्यथा को कवि्ता कहानरी लेख नाटक उपन्यास और आतमकथाओं के रूप में लिख रहे हैं और प्रकादश्त कर रहे हैं , ददल्त पदत्काओं के माध्यम से उसे पूरे देशवादस्यों ्तक सभरी भाषा-भादष्यों ्तक पहुंचा्या जा रहा है ।
जो ददल्त मानव सदद्यों ्तक गूंगे बहरों करी ्तरह चुपचाप शोषण अत्याचार सह्ते रहे , वे अब डा । आंबेडकर के संघर्षपूर्ण प्र्यत्नों से अधिकार पाकर अपनरी व्यथा कह रहे हैं । वे पत्कारर्ता के षिेत् में भरी अपनरी दखल दे रहे हैं , मरीदड्या के माध्यम से अपनरी आवाज समाज
्तक पहुंचा रहे हैं । पत्कारर्ता में ददल्तों का प्रवेश विशेष सफल्ता पा रहा है । हिन्दी ददल्त पत्कारर्ता के षिेत् में अनेक छोिरी और बड़री पदत्काएं लगा्तार छप रहरी हैं । अब स्थिति ्यह बन गई है कि सवर्ण पत्कारर्ता द्ारा भरी उनका सिाग्त दक्या जा रहा है । केवल इ्तना हरी नहीं बसलक सवर्ण पदत्काओं के विशेषांक ‘ ददल्त विशेषांक ’ के रूप में प्रकादश्त दक्ये जा रहे हैं , जिनमें पूर्ण रूप में ददल्तों करी रचनाओं को छापा जा रहा है । इन ददल्त विशेषांकों का अपना महत्ि है । ददल्तों द्ारा प्रकादश्त करी जाने वालरी छोिरी-बड़री ददल्त पदत्काओं का भरी अधिक महत्ि है ।
सिणषो द्ारा प्रकादश्त करी जाने वालरी महत्िपूर्ण नाररीिादरी पदत्काओं में - ‘ नाररी संवाद ’, सं । रेनू दरीिान बिहार , ्युद्धर्त आम आदमरी , समपादक रमणिका गुप्ता , दिल्ली है । इन पदत्काओं ने विशेष रूप से महिलाओं और ददल्तों के प्रश्नों को आवाज दरी है , उनकरी समस्याओं को विशलेषण के लिए समाज के समषि रखा है । ऐसरी अनेक पदत्का हैं , जो विशेष रूप से महिलाओं ददल्तों और आदिवादस्यों के साहित्य को छाप रहरी हैं ,
32 uoacj 2023