दलित उत्ान में डा . आंबेडकर का योगदान
एस . सिंह
साहब भरीमराव आंबेडकर इद्तहास के पन्नों में दर्ज वह नाम बाबा
हैं , जिनहोंने देश के कमजोर ्तबके करी बा्त को पुरजोर ्तररीके से रखा । अपने पूरे जरीिन के दौरान , उनहोंने ददल्तों और पिछड़ों करी लड़ाई लड़ी । उनहें भार्तरी्य संविधान के दप्ता के रूप में भरी जाना जा्ता है । 1990 में उनहें मरणोपरां्त भार्त के सिषोच्च नागरिक सममान ‘ भार्त रत्न ’ से सम्मानित दक्या ग्याI देश के लिए बाबा साहब के ्योगदानों को इसरी से समझा जा सक्ता है कि आज के दौर में भरी सभरी राजनरीद्तक दल उनके दसद्धां्तों करी बा्तें कर्ते न्र आ जा्ते हैं । ‘ बाबा साहब ’ के जरीिन के कुछ और महतिपूर्ण पहलुओं पर अगर निगाह डाले ्तो प्ता चल्ता है कि दक्तनरी कठिनाई्यों
को झेल्ते हुए बाद बाबा साहब ने पूररी जिंदगरी काम दक्या था ।
बचपन सरे झरेलया ‘ भरेदभयाव कया दंश ’
बाबा साहब जब सरकाररी स्कूल में भर्ती हुए ्तो उनहें सभरी लड़कों से दूर रखा जा्ता था , अध्यापक भरी उनकरी अभ्यास-पुस्तिका ्तक नहीं छू्ते थे । वे संस्कृत पढ़ना चाह्ते थे , किन्तु संस्कृत के अध्यापक ने उनहें पढाना स्वीकार नहीं दक्या । विवश होकर उनहें फारसरी करी दशषिा हासिल करना पड़ी । विद्याल्य में उनहें दिन भर प्यासा रहना पड़्ता था , क्योंकि उनहें पानरी के ब्तमानों को हाथ लगाने करी अनुमद्त नहीं थरी । जाहिर ्तौर पर भार्त में जाद्तग्त भेदभाव को वह बचपन में हरी महसूस कर चुके थे । बाबा साहब महज
9 साल के थे जब रामबाई नाम करी कन्या से उनकरी शादरी कर दरी गई थरी । इसके बाद वह अपने दप्ता के साथ मुमबई चले गए थे , जहां उनहोंने आगे करी पढाई करी और फिर उच्च दशषिा के लिए सकॉलरशिप से विदेश चले गए ।
समयाचयार पत्र बनरे ‘ भरेदभयाव करे खिलयार हथिययार ’
इंगलैंड से उच्च दशषिा लेकर लौटने के बाद जब बाबा साहब भार्त लौटे ्तो समाज में छुआछु्त और जाद्तिाद चरम पर था । इससे प्रभावि्त होकर उनहोंने इसके खिलाफ अपनरी आवाज ्तेज कर दरी । उनहोंने लोगों को इसके प्रद्त जागरुक करना शुरु दक्या और इसरी कड़ी में 1920 में , बंबई से साप्ताहिक मूकना्यक के प्रकाशन करी शुरुआ्त करी । साथ हरी ‘ बदहष्कृ्त भार्त ’, ‘ मूक ना्यक ’,
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