ऊपर दमट्टरी , गोबर और पतथर फेंक्ते थे , पर सावित्री बाई ने हिम्मत नहीं हाररी , उनहोंने अपना कारवां बंद नहीं दक्या । उनकरी चिं्ता थरी कि बिना दशषिा के ददल्त समाज का भला नहीं होने वाला ।
ददल्त समाज सदद्यों से अंधविशिास , वर्ण व्यवसथा , गररीबरी और बेकाररी का शिकार है ।
दशषिा के द्ारा हरी इस समाज को आगे बढ़ाया जा सक्ता है । दशषिा हरी सहरी माध्यम है । समाज सुधार के उद्ेश्य से उनहोंने दशषिा को बदलाव का मिशन बना्या । समाज को दशषिा का महत्ि ब्ता्ते हुए दुख का कारण अज्ान को ब्ता्या ।
इसके लिए वह पहले स्वयं दशदषि्त हुई और समाज सुधार करी राह पर निकल पड़ी । बालिका स्कूल करी सफल्ता को देख िकूले दंपद्त ने 15 मई 1948 में पुणे शहर करी ददल्त बस्तरी में ददल्त बच्चों के लिए स्कूल करी सथापना करी । ्यह देश का पहला ददल्त स्कूल बना । शुरू में सगुणाबाई इस स्कूल में पढा्तरी थरी , बाद में सावित्री बाई ने भरी इसरी स्कूल में पढाना शुरू कर दद्या । कुछ सम्य में हरी ज्योद्तराव फुले ने सावित्री बाई के साथ पुणे के आस-पास के गांवों में 18 स्कूल और खोले । उस सम्य दशषिा जग्त में ्यह एक बड़ा क्रांद्तकाररी पररि्तमान था । इस क्रांद्तकाररी का्यमा में सवित्री बाई करी अग्णरी भूमिका रहरी थरी । सावित्री बाई का जनम ्तरीन जनवररी 1831 को महाराष्ट्र के स्तारा जिले ने ना्यागांव निवासरी खंडोजरी नेवसे पाटिल के घर हुआ । 9 वर्ष करी अवसथा में सावित्री बाई का विवाह ज्योद्तराव िकूले के साथ संपन्न हुआ । सावित्री बाई करी दशषिा पद्त के ्यहां शुरु हुई । 1840 में सावित्री बाई ने ज्योद्तराव िकूले के दप्ता करी दूर करी रिश्ते करी विधवा बहन सगुणाबाई के साथ ब्रिटिश मिशनररी नार्मल स्कूल में कषिा ्तरीन में प्रवेश दल्या और अध्यापन का्यमा का प्रदशषिण प्राप्त दक्या । पुणो में ब्राह्मणों के विरोध का मुकाबला कर्ते हुए उनहोंने इन स्कूलों में अध्यापन का्यमा दक्या ।
सावित्री बाई भार्त के इद्तहास में पहलरी ददल्त अध्यापिका बनरी , उस वक्त ्यह अपने में एक क्रांद्तकाररी घटना थरी । सावित्री बाई ने ज्योद्तराव िकूले के साथ दशषिा का्यमा में सभरी जिममेदारर्यां निभाई । जिस स्कूल में दशषिक करी आवश्यक्ता हो्तरी , वहीं जाकर पढाने का काम दक्या । सभरी स्कूलों के व्यवसथापन और संचालन का काम खुद दक्या । उस वक्त महाराष्ट्र के किसरी भरी समाज सुधारक ने अपनरी पत्नरी को समाज सेविका और अध्यापिका बनाने का साहस नहीं दिखा्या । उस वक्त के मौजूदा विपररी्त सामाजिक वा्तावरण में ददल्त परिवार में जन्मी सावित्री बाई का दशषिा प्राप्त करना अध्यापक बनाने और अंग्ेजरी भाषा का ज्ान प्राप्त करना , ्यह सब अपने में अभू्तपूर्व और क्रांद्तकाररी हरी
था । सावित्री बाई महान कवि भरी थरी । उनहोंने अपने काव्यों में भरी ददल्तों के दह्त में दशषिा का मूल मंत् दद्या । उनहोंने ददल्त , शोदष्तों , उपेदषि्तों को अपने बच्चों को दशदषि्त बनाने का आह्ान दक्या । दशषिा के मंत् के माध्यम से सावित्री बाई ने नाररी दशषिा और बदलाव का बड़ा आंदोलन खड़ा दक्या , जिसके कारण देश में आज महिलाएं बड़े-बड़े पदों पर आसरीन हैं और सिर उठाकर जरी रहरी हैं ।
महाराष्ट्र में अकाल के वक्त उनहोंने हजारों लोगों और बच्चों को खाने-परीने और दवा करी सुविधा उपलबध कराई । 1897 में महाराष्ट्र में हैजा करी महामाररी में हजारों लोग मर रहे थे और सैंकड़ों परिवार बर्बाद हो रहे थे । लोग गांव और शहरों को छोड़कर जंगल करी पला्यन कर रहे थे । उस वक्त राह्त का्यमा करी जिममेदाररी सावित्री बाई के सत्यशोधक समाज ने संभालरी हुई थरी और लोगों के खाने-परीने और अन्य सहा्य्ता के लिए सावित्री बाई ने अनेक केंद्रों करी सथापना करी थरी । इसरी दौरान एक बरीमार बालक , जिसे छूने के लिए कोई ्तै्यार नहीं था , उसे सावित्रीबाई ने उठाकर अपने कंधे पर बैठाकर ्यशवं्त के दवाखाने ले गई । इस कारण सावित्री बाई भरी हैजे करी शिकार हो गई और अं्त में बरीमाररी के कारण 10मार्च 1897 को उनका निधन हो ग्या । सावित्री बाई का मानना था कि ददल्तों के लिए मुक्ति का दशषिा हरी एकमात् उपा्य है । दशषिा से हरी मनुष््यति प्राप्त हो्ता है और पशुति समाप्त हो्ता है ।
उनकरी चिं्ता थरी कि बिना दशषिा के ददल्त समाज का भला नहीं होने वाला । ददल्त समाज सदद्यों से अंधविशिास , वर्ण व्यवसथा , गररीबरी और बेकाररी का शिकार है । दशषिा के द्ारा हरी इस समाज को आगे बढ़ाया जा सक्ता है । दशषिा हरी सहरी माध्यम है । समाज सुधार के उद्ेश्य से उनहोंने दशषिा को बदलाव का मिशन बना्या । समाज को दशषिा का महत्ि ब्ता्ते हुए दुख का कारण अज्ान को ब्ता्या । इसके लिए वह पहले स्वयं दशदषि्त हुई और समाज सुधार करी राह पर निकल पड़ी ।
( साभार ) uoacj 2023 25