साधन संवैधानिक व नागरिक अधिकार है ।
गांधरी व आंबेडकर के मध्य ददल्तोतथान करी रणनरीद्त के मध्य म्तभेदों करी विवेचना से पूर्व ्यह जान लेना आवश्यक है कि 1917-1947 का कालखणड वह सम्य था जबकि स्वतंत्रता आंदोलन न केवल ्तरीव्र गद्त से चल रहा था , वरन सांप्रदाद्यक समस्या उसके मार्ग करी रूकावट बन रहरी थरी । अ्तः गांधरी के दृष्टिकोण में ददल्तोतथान स्वतंत्रता संग्ाम के समानां्तर एक का्यमाक्रम था । ददल्तोतथान के समर्थक होने के बावजूद गांधरी पहले हिंदू सामाजिक एकरीकरण के माध्यम से साम्राज्यवाद का अं्त चाह्ते थे । उनकरी दृष्टि में ददल्तों करी समस्या एक घरेलू समस्या थरी । आंबेडकर भरी साम्राज्यवाद के धुर विरोधरी थे किं्तु उनहें आशंका थरी कि ्यदि सिराज प्राप्ति से पूर्व हरी ददल्तों को उनके अधिकार नहीं मिले ्तो सिराज पशचात् भरी बहुसंख्यक हिंदुओं के हजारों िषथों के उतपरीड़न से उनहें मुक्ति नहीं मिलेगरी , अ्तः वह सिराज्य प्राप्ति के पूर्व हरी ददल्तों हे्तु पूर्ण संवैधानिक सुरषिा चाह्ते थे ।
्यहां एक और ्त्थ्य उललेखनरी्य है कि 1921-30 ्तक हिंदू सामाजिक व्यवसथा में पूर्ण पररि्तमान चाहने वाले आंबेडकर ने प्रथम व दद््तरी्य गोलमेज सममेलन में ददल्तों हे्तु पृथक निर्वाचन मंडल करी मांग क्यों रखरी ? इस प्रश्न का उत्तर 1916 के लखनऊ पैकि 1919 के मालदेदमंटो सुधार व 1926 करी नेहरू रिपोर्ट में अलपसंख्यक िगथों हे्तु विशेष सुविधाओं को स्वीकार दक्ये जाने ्तथा उनके का्यमाक्रमों के प्रद्त राजनरीद्तक इचछाषक्ति करी उदासरीन्ता के संदर्भ में ्तलाषा जा सक्ता है । शुद्ध वैदिक वर्ण व्यवसथा में म्तैक्य होने के बावजूद जहां गांधरीजरी जाद्त व्यवसथा को वर्ण व्यवसथा करी विकृ्त
व्याख्या से उतपन्न संसथा मान्ते थे और जाद्त व्यवसथा को वर्ण व्यवसथा के उनमूलन के सथान पर उसका पुनः िणथों में विल्यन स्वीकार कर्ते थे , वहीं बाबा साहब करी दृष्टि में जाद्त व्यवसथा ब्राह्मणों करी च्तुर ्युक्ति से उतपन्न संसथा है , अ्तः जाद्त के समूल नाश में हरी सामाजिक समान्ता का बरीज छिपा है । गांधरी जाद्त को एक सिाभाविक जबकि आंबेडकर मानिरीकृ्त संसथा मान्ते थे । गांधरी व आंबेडकर दोनों हरी ऋगिैदिक कालरीन हिंदू धर्म ग्ंथों करी महत्ता स्वीकार्ते है । गांधरी करी दृष्टि में ्ये अनुकरण के पूर्ण आदर्श हैं , किं्तु आंबेडकर का म्त है कि उत्तरवैदिक काल करी समृद्त्यों , पुराणों , ब्राह्मणों व संदह्ताओं में शूद्रों हे्तु अपमानजनक शबद जोड़े गए । ्यहरी कारण था कि आंबेडकर को गांधरीजरी द्ारा अशपृश्यों को हरिजन पुकारे जाने का विरोध था । उनके अनुशासन के अनुसार ्यह शबद ददषिण भार्त में देवदादस्यों से उतपन्न अवैध सं्तानों हे्तु प्र्युक्त हो्ता था , जबकि गांधरी को इस शबद से बेहद लगाव रहा ्तथा वे इसका उदगम ्तुलसरीकृ्त रामा्यण व वैष्णव धर्म से मान्ते रहे हैं ।
अशपृश्य वर्ग करी उतपदत्त के कारणों पर दोनों कममा्योदग्यों के विचार समान थे । वे स्वीकार्ते हैं कि इद्तहास में विविध कलखंडों के क्रमिक विकास के दौरान इन िगथों को भौद्तक संसाधनों से वंदच्त व पृथक दक्या ग्या जो कि कालां्तर में उनके पूर्ण अलगाव का कारण बना किं्तु ददल्तोतथान के प्र्यासों के संदर्भ में दोनों के दृष्टिकोणों में सपष्ि म्तभेद था । गांधरी का हर म्त सिणथों के हृद्य पररि्तमान व ददल्तों के शुद्धि आनदोलनों के पषि में था , जबकि आंबेडकर अशपृश्य्ता का बरीज हिंदू धर्म ग्ंथों में मान्ते हुए
्यह चाह्ते थे कि जाद्त व्यवसथा का पूर्ण उनमूलन हो । गांधरी ने धर्म को राजनरीद्त से संबद्ध कर राजनरीद्त करी निरीन व्याख्या नैद्तक आधार व मानव सेवा के रूप में करी जबकि आंबेडकर धर्म को राजनरीद्त से पृथक जरीिन साधना का दन्तां्त निजरी अंग मान्ते थे उनहोंने राजनरीद्त को सामाजिक न्या्य करी धारणा से संबद्ध दक्या ।
गांधरी व आंबेडकर के ददल्तोतथान दर्शन करी विवेचना कर्ते पर हम पा्ते हैं कि गांधरी का दृष्टिकोण परमपरा व आधुनिक्ता के मध्य दोलन कर्ता हुआ मनोवैज्ादनक , नैद्तक धार्मिक , अध्यासतमक व समग् विकास का था जबकि आंबेडकर का दृष्टिकोण भौद्तक , आधुनिक , ्यथार्थवादरी व मुक्तिवादरी था । लक््य करी एकरूप्ता के बावजू्त दृष्टिकोणों करी भिन्न्ता को दोनों विचारकों के जनम व पालन पोषण करी परिससथद्त्यों के संदर्भ में बेह्तर समझा जा सक्ता है । स्वयं अछू्त होने के कारण आंबेडकर के मन में अपने कटु अनुभवों के कारण हिंदू समाज के प्रद्त सिभाविक विद्रेश था । अपनरी दशषिा के दौरान वे पसशचमरी विशि के ्तरीन अग्णरी देशों अमेरिका , ब्रिटेन व जर्मनरी के उदार्ता के समपक्फ में आए । इस सं्योग से जिस मुक्तिवादरी रसा्यन का निर्माण हुआ उसने स्वतंत्रता , समान्ता व बंधुति करी नींव पर व्यक्ति मात् करी प्रविष्ठा व अस्मिता का महल खड़ा दक्या । गांधरी का जनम काठि्यावाड़ी वैष्णव परिवार में हुआ ्तथा उनकरी मानसिक गढन में उनकरी माँ का विशेष ्योगदान रहा । इसके अद्तरिक्त गांधरी पर रससकन थोरो व टालसिा्य का गहरा प्रभाव रहा । अ्तः वे अं्तःप्रेरणा , अं्तः शुद्धि व सत्याग्ह के आधार पर सामाजिक पररि्तमान का मार्ग प्रशस्त करना चाह्ते थे ।
गांधरी और आंबेडकर के ददल्तोतथान संबंधरी विचारों करी विवेचना से जाहिर है कि केवल किसरी एक का अनुकरण ददल्तोतथान के समग् विकास का मार्ग प्रशस्त नहीं कर सक्ता । ि्तमामान परिप्रेक््य में आवश्यक्ता है कि दोनों विचारकों के दसद्धां्तों को समानां्तर रख कर समेदक्त दृष्टिकोण से अपना्या जा्ये ्ताकि अनत्योद्य से सिषोद्य का मार्ग प्रशस्त हो सके । �
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