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जा्ता है ।" ्यहरी कारण था कि उनहोंने राजनरीद्त करी नई व्याख्या मानि्ता के धर्म के रूप में प्रस्तु्त करी ।
गांधरीजरी ने सदैव हरी अनुसूदच्त जाद्त को हिनदू समाज का अभिन्न अंग माना और इसलिए उनहोंने ददल्तों हे्तु पृथक निर्वाचन मंडल करी मांग का पुरजोर विरोध दक्या । ्यद्यपि उनहें संवैधानिक सुरषिा प्रदान करने के दृष्टि से विधाद्यका में 71 के सथान पर 148 सथान देने पर वह सहम्त हो गए थे । उनहोंने सामाजिक विषम्ताओं को ्तो स्वीकारा किन्तु समान्ता लाने का उनका मार्ग अहिंसा सत्याग्ह और हृद्य पररि्तमान द्ारा क्रमिक विकास का मार्ग था , चाहे सफल्ता मिलने में किंदच्त सम्य हरी क्यों न लग जाए वस्तु्तः उनकरी दृष्टि में ददल्तोतथान द्ारा सामाजिक विकास एवं राष्ट्रमुक्ति का संघर्ष एक-दूसरे के पूरक का्यमाक्रम थे जिनहें समानां्तर चलाना आवश्यक था ।
इधर आधुनिक भार्त के संविधान निर्मा्ता और ददल्तोतथान के अग्दू्त के रूप में डॉ . आंबेडकर के लक््य करी मूलभावना गांधरी करी सहगामिनरी थरी , ्यद्यपि दोनों के दृष्टिकोण में प्यामाप्त म्तभेद था । डॉ . आंबेडकर ने न केवल समाज के दबे-कुचले िगथों करी आकांषिाओं व सं्षथों को आजरीिन अपनरी पूररी ऊर्जा व मेधा से मुखरर्त दक्या वरन अपने व्यक्तिति से सवर्ण हिनदुओं हे्तु एक सरीधरी उत्तेजनातमक चुनौ्तरी भरी खड़ी करी । स्वयं अशपृश्य कुलोतपन्न होने के कारण अछू्त वर्ग करी पीड़ा व अपमान उनका अपना था । अ्तः उनहोंने इस शोषण से मुक्ति हे्तु मनोवैज्ादनक व धार्मिक उपा्यों के सथान पर प्रत्यषि संघर्ष एवं आतमसममान के का्यमाक्रमों को अपने आनदोलन में सथान दद्या । उनहोंने मूकना्यक व बदहष्कृ्त भार्त जैसरी पदत्काओं का प्रकाशन कर अछू्तों को संगठि्त दक्या ्तथा विविध दशषिण संसथाओं करी सथापना के द्ारा उनमें बौद्धिक जागृद्त उतपन्न कर उनहें सिमुक्ति हे्तु आधार प्रदान दक्या ।
उनहोंने ददल्तों हे्तु संवैधानिक व नागरिक अधिकारों करी मांग करी । उनका दृढम्त था कि राजनरीद्तक एवं प्रशासनिक भागरीदाररी से ददल्तों
के हृद्य में आतमसममान के भाव पैदा होंगे उनमें आतमदिशिास पैदा होगा जो कि अं्त्तोगतिा उनके समग् सामाजिक विकास का कारण बनेगा । अशपृश्यों करी सामाजिक शैदषिक व राजनरीद्तक उन्नद्त हे्तु ‘‘ आतम सहा्य्ता हरी उत्तम सहा्य्ता है " के बरीजमंत् के साथ उनहोंने संघर्ष का आह्ान दक्या इस क्रम में महाड़ के चोबदार ्तालाब में अछू्तों को जल पिलाने के आनदोलन , नासिक के कालाराम मंदिर में प्रवेश आनदोलन ्तथा महार ि्तन आनदोलन को रखा जा सक्ता है । उनहोंने ददल्तों को सेवा , कृपा व उपकार से उन्नद्त प्राप्त करने के सथान पर सिाबलंबन , आतमसममान व संघर्ष द्ारा समान्ता प्राप्ति का आह्ान दक्या । वह उच्च महतिाकांषिाओं के हिमा्य्तरी थे । ्तद्ुरूप उनकरी रणनरीद्त को सत्ता पिपासा के संदर्भ में न देखा जाकर समाज में समान अधिकार हे्तु अपने सिाभाविक सथान के प्रद्त आग्ह के रूप में देखा जाना चाहिए । मात् विधि के समषि समान्ता के आशिासन से वह सं्तुष्ट नहीं थे ।
अ्तः उनहोंने ददल्तों हे्तु पृथक निर्वाचन मंडल करी मांग ्ततकालरीन शासन के समषि रखरी । वह चाह्ते थे कि ददल्तों के दह्तों को ध्यान में रख्ते हुए उनका प्रद्तदनदधति उनहीं के हाथों में , उनकरी जनसंख्या के अनुपा्त में हो । बदहष्कृ्त दह्तकारिणरी सभा के प्रद्तदनदध के रूप में उनहोंने 1928 में सा्यमन कमरीशन के समषि ददल्तों का हिंदुओं से पृथक समुदा्य मानने करी सिफारिश करी और कहा कि हिंदुओं ने कभरी भरी ददल्तों को अपना सामाजिक बंधु नहीं माना , अ्तः विधानसभा में सरीिों का आरषिण बढाकर उनहें उदच्त प्रद्तदनदधति नहीं दद्या जा सक्ता । इस हे्तु स्वयं ददल्तों के हाथ में राजनरीद्तक शक्ति का होना आवश्यक है , ्ताकि उनहें संरषिण मिले ्तथा भविष््य में पषिपा्त का ख्तरा न रहे , ददल्तों को मौलिक अधिकार मिले ्तथा वे अपने मौलिक अधिकारों का स्वतंत्रता पूर्वक उप्योग कर सकें ।
भार्त के राजनरीद्तक इद्तहास में ्यह प्रथम अवसर था जबकि ददल्तों करी समस्याओं करी इ्तनरी वैज्ादनक व्याख्या व सुधार हे्तु सिरीक
सुझाव दद्ये गए । ्यद्यपि आंबेडकर करी ्यहरी मांगें कालां्तर में दद््तरी्य गोलमेज सममेलन करी असफल्ता का कारण भरी बनरी । इस सममेलन करी असफल्ता व आंबेडकर के लगा्तार बढ़ते दबाव के चल्ते 17 अगस्त 1932 को रैमसे मैकडोनालड द्ारा कम्यूनल अवार्ड करी घोषणा करी गई जिसे भार्त करी सामप्रदाद्यक एक्ता हे्तु एक बड़ा ख्तरा मान्ते हुए , विरोधसिरूप गांधरी आमरण अनशन पर बैठे । अं्त्तः गांधरी करी प्राण रषिा हे्तु ऐद्तहासिक पूना-पैकि द्ारा गांधरी व आंबेडकर में समझौ्ता हुआ ्तथा पृथक निर्वाचन मंडल के सथान पर विधानसभा में सरीिों हे्तु आरषिण बढा दद्या ग्या । इस प्रकार सिणथों के हृद्य पररि्तमान अथवा ददल्तों के सिाभाविक पररि्तमान करी प्र्तरीषिा दक्ये बगैर अपनरी स्वतंत् का्यमापद्धद्त द्ारा आंबेडकर जरीिनप्यमान्त ददल्तों के उद्धार हे्तु सदक्र्य रहे ।
आमूल पररि्तमानवादरी विचारक के रूप में उनहोंने मंदिर प्रवेश जैसे प्र्तरीकातमक आनदोलनों का विरोध दक्या । उनकरी दृष्टि में पेट पूजा , देवपूजा से महतिपूर्ण प्रश्न था । अ्तः वे देवसथानों में अछू्तों के प्रवेश के सथान पर सामाजिक सथानों ्यथा ्तालाबों , कुओं , पाठशालाओं अथवा अस्पतालों में उनकरी उपस्थिति दर्ज कराना चाह्ते थे । साथ हरी उनहें ्यह भरी भ्य था कि मंदिर प्रवेश जैसे प्र्तरीकातमक आनदोलन कहीं अशपृश्यों को हिंदू आदशथों के अनुकरण का अभ्यस्त न बना दें , अन्यथा भविष््य में उनके राजनरीद्तक अधिकार को इस आधार पर खारिज दक्या जा सक्ता है कि ददल्त व हिंदू अभिन्न है । इस प्रकार हम पा्ते हैं कि जहां गांधरी करी दृष्टि में अछू्तोद्ार धार्मिक , मनोवैज्ादनक व नैद्तक ्तररीकों से संभव है , वहीं आंबेडकर के म्त में इसका एकमात्
22 uoacj 2023