मानव-मानव के मध्य संबंधों व सं्षथों करी व्याख्या के सथान पर मानव-ईशिर के समबनधों करी व्याख्या में अधिक थरी , अस्तु वे अनुकरण के आदर्ष उदाहरण नहीं बन सके ।
आधुनिक भार्तरी्य सामाजिक , आर्थिक व राजनरीद्तक चिं्तन में गांधरी व आंबेडकर हरी ऐसे हुए हैं , जिनके चिं्तन दर्शन में हिनदू सामाजिक व राजनरीद्तक दसद्धां्तों करी व्याख्या व ददल्तोतथान के मार्ग में भिन्न्ता के बावजूद उनका अंद्तम लक््य एक था । दोनों हरी चिं्तक माकसमा के साध्य प्राप्ति हे्तु किसरी भरी साधन को अपनाने करी
रणनरीद्त अथवा ग्रीन के प्रत्येक समस्या के नैद्तक समाधान करी खोज से इ्तर बहुजन दह्ता्य- बहुजन सुखा्य करी मूल भार्तरी्य भावना से प्रेरर्त कममा्योगरी रहे हैं ।
गांधरीजरी करी प्रद्तबद्ध्ता ्ताउम्र सुधार का्यमाक्रमों को निचले स्तर से लागू करने करी रहरी है । उनकरी दृष्टि में अनत्योद्य से सिषोद्य हरी सामाजिक उतथान का श्ेष्ि मार्ग है , ्तथा व्यक्ति के उतथान के लिहाज से धर्म , राजनरीद्त , अर्थनरीद्त व समाज अलग-अलग हिससे न होकर एक हरी समग् के अंश हैं । अ्तः व्यक्ति के नैद्तक ,
अध्यासतमक व मनोवैज्ादनक विकास के जरर्ये समपूणमा सामाजिक विकास प्राप्त दक्या जा सक्ता है । परमपराग्त भार्तरी्य समाज के मूल दार्शनिक आधार के रूप में वर्ण व्यवसथा के महति को स्वीकार्ते हुए उनका ्यह मानना था , कि अपने सना्तन रूप में कर्म पर आधारर्त वर्ण व्यवसथा में वंशानुग्त हस्तषिेपों के चल्ते जाद्त व्यवसथा का उद्य हुआ , जिसने समाज में खंडातमक व संस्तरणातमक विभाजन पैदा दक्या । कालां्तर में ्यहरी व्यवसथा ददल्तों के शोषण व अधिकार हनन का कारण बनरी । अ्तः वे असपृश्य्ता निवारण को सिणथों का क्तमाव्य मान्ते थे ।
उनका कहना था कि हिनदू लोग अशपृश्यों करी सेवा करने पर उन पर उपकार नहीं कर रहे हैं क्योंकि अनत्यज्य भाइ्यों को अशपृश्य बनाने हे्तु सवर्ण हरी जिममेदार हैं । उनहोंने सिणषो के इस दाद्यति निर्धारण के साथ हरी अशपृश्यों द्ारा स्वयं करी आं्तरिक व बाह्य शुद्धि का सुझाव दद्या । आं्तरिक सुधारों से उनका ्तात्पर्य मद्यपान निषेध , सिच्छता व उदच्त जरीिन शैलरी के विकास से था । इस प्रकार गांधरीजरी करी उदारवादद्यों करी ्तरह मानिरी्य दुर्बल्ताओं को स्वीकार्ते हुए ्यह मान्ते थे कि समाज के उतथान का का्यमा व्यक्ति करी अपनरी ्योग्य्ता व पररश्म पर निर्भर कर्ता है । अ्तः सिणथों के हृद्य पररि्तमान व ददल्तों के सिषुद्धि के प्र्यासों से हरी उनहें समान्ता का परिवेश दद्या जा सक्ता है ।
ददल्तोतथान हे्तु गांधरी ने ईशिर के समषि समान्ता के सिद्धान्तों को स्वीकार कर्ते हुए ददल्तों को मंदिर प्रवेश द्ारा मनोवैज्ादनक व धार्मिक सुरषिा प्रदान करने के लिए प्र्तरीकातमक आनदोलनों करी नींव रखरी । वह चाह्ते थे कि ददल्तों के साथ सामाजिक कोढि़्यों करी ्तरह सलूक न हो , वरन उनहें ्यह विशिास दिला्या जाए कि ईशिर के समषि वह किसरी से भिन्न नहीं है । मंदिर प्रवेश से अशपृश्य्ता निवारण सामाजिक समान्ता के लक््य करी प्राप्ति करी उनकरी दरी्माकालरीन रणनरीद्त का साधन है , साध्य नहीं । अ्तः वे टालसिा्य के उन सिद्धान्तों से सहमद्त रख्ते थे कि ‘‘ उस देश का शासन सबसे अचछा है , जहां कम से कम शासन दक्या
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