है ।
“ ददल्त ’ शबद से उनहें सम्बोधित करना हर किसरी पर एक विशेष प्रभाव डाल्ता है । अपने इस वर्गनाम से छूटने का प्र्यत्न नहीं कर उसके उप्युक्त द्यनरी्य्ता वह बलात् अपने व्यक्तिति मे समादह्त कर ले्ता है । प्रचछन्न रूप से उनके उद्धार का का्यमाक्रम हम अवश्य चलाएँ िरीक वैसे हरी-जैसे कमजोर सन्तान करी दुर्बल्ता दूर करने का प्र्यत्न परिवार के सदस्य भरपूर कर्ते है , पर उसे सशक्त कहकर उसके मनोबल को बल भरी प्रदान कर्ते हैं । द्यनरी्य्ता से मुक्ति हरी
उनके उतथान करी पहलरी सशक्त सरीढ़ी होनरी चाहिए । मानव होने का गर्व उनके अनदर जाग्रत होना हरी चाहिए । अब हम कािरी आगे निकल आए हैं किन्तु इस मनोवैज्ादनक ्त्थ्य करी अवहेलना कर उनहे बार बार पूर्व स्थिति का एहसास दिलाकर उनके प्रद्त दक्तना न्या्य दक्या , कहना कठिन है I पर संघर्ष करी इस दुदन्या में घृणातमक संघर्ष के लिए उनहें अवश्य विवश कर दद्या । सुख सुविधाएँ मुहैय्या कराने के लिए आर्थिक और पिछड़ेपन का आधार हरी प्यामाप्त होना चाहिए ।
पर उस मानसिक्ता को कोई क्या करे जो इन ्योजनाओं से सम्पूर्णतः लाभान्वित नहीं होना चाह्तरी और जो इन ्योजनाओं करी वास्तविक्ताओं पर उँगलरी उठा्ते हैं ? ्यह वस्तु्तः का्यामान्वयन करी पेचरीदगरी का परिणाम भरी हो सक्ता है । किन्तु ऐसे नकारातमक उदाहरण कम हरी मिल्ते हैं । किन्तु आज करी राजनरीद्त में इस मुद्े को जिनदा रखने के लिए ऐसे दक्ये जाने वाले प्र्यत्नों को भरी अनदेखा नहीं दक्या जा सक्ता । उत्तर प्रदेश के सहारनपुर आनदोलन को वृह्त सिरूप प्रदान करने का श्रेय भरी दलविशेष को अपनरी लोकदप्र्य्ता बनाए रखने के उन प्र्यत्नों को जा्ता है , जहां वे स्थिति करी संवेदनशरील्ता से बेपरवाह हो जा्ते हैं । दबरी भावनाओं को उभार कर उनसे खिलवाड़ करना ्तो संघर्ष को जनम देगा हरी । भार्तरी्य समाज के मन में बैिरी वह द्ेष करी भावना भरी कम जिममेिार नहीं हो्तीं जो उनके विकास पर हिकार्त करी पैनरी दृष्टि डालने से नहीं चूक्तरी ।
देश को इन मुद्ों पर आन्दोलित करने करी व्यथमा्ता का आभास राजनरीद्त को ्तब होगा जब सिादभमान से भररी ्ये जाद्त्याँ हरी उसकरी ललकार को नकार देंगरी । आज करी राजनरीद्त इस ्तरह समाज को आगे बढने देना नहीं चाह्तरी । उनकरी सोच को सदद्यों परीछे ढकेलकर अपनरी ढाल बनाना चाह्तरी हैं । सच पूछिए ्तो ्यह “ ददल्त ” शबद अत्यन्त विवाद का विष्य है । जब्तक ्यह उस वर्ग विशेष के लिए प्र्युक्त हो्ता रहेगा उनके मन में सथा्यरी विरोध करी भावना रहेगरी । ्यह उनहें सदैव अपने प्रद्त हुए अन्या्यों का समरण
दिला्ता रहेगा और समरस्ता स्थापित करनें में बाधक बनेगा । देश सिर्फ हमारा हरी नहीं , अन्तर्राष्ट्ररी्य समाज का एक सदस्य भरी है , जिस पर सबकरी दृष्टि है I इस अन्तर्राष्ट्ररी्य जग्त में हमें हमारे समाजिक चिन्तन का विकदस्त रूप प्रस्तु्त करना होगा ।
अपने आप में हरी भेद भाव के परिचा्यक इस शबद को जाद्त्यों के परिच्य जग्त से हटाना हरी होगा ्तभरी इस शबद को लेकर कोई खेल नहीं कर पाएगा , भद्दी राजनरीद्त नहीं कर पाएगा । उतथान काआधार पिछड़ापन और आर्थिक स्थिति है । हमें इस मनोवैज्ादनक आधार करी अवहेलना नहीं करनरी होगरी । भार्तरी्य जनसंख्या करी बहु्त बड़ी शक्ति उनमें दनदह्त है । समाज का जागरुक मध्यमवर्ग भरी उनहें सामान्य नजरर्ये से देखना चाह्ता है । इ्तने बड़े राष्ट्र में इस भावना का स्वतः सिकू्तमा होना इ्तना सहज ्तो नहीं पर संविधान और जागरुक सरकारों करी प्र्यत्नशरील्ता ने उनहें समुदच्त सथान दिलाने में मदद करी है । क्या इस वर्ग विशेष के उन लोगों को ददल्त कहकर हम अपमादन्त नहीं कर्ते जिनहोंने ऊंचे-ऊंचे पदों करी गरिमा बढा्यरी , आर्थिक रूप से भरी उन्नद्य्त होकर सामान्य सामाजिक ्तबके करी समकक्षता हासिल करी है ! ददल्त कहकर समाज में भेद भाव पैदा करने का अधिकार किसरी को नहीं मिलना चाहिए ।
उनमें क्रमशः सिादभमान करी भावना भरनरी है । जहां ्तक आनुवंशिक सिादभमान करी भावना का प्रश्न है , सम्य बहु्त परिपकि नहीं है , पर अदजमा्त सिादभमान को ठेस नहीं पहुंचनरी चाहिए । उनके लमबे संघर्ष से बना्यरी ग्यरी उनकरी जगह का सममान होना चाहिए , ददल्त और आरदषि्त कहकर अपमान नहीं । हमने ्तो राष्ट्रपद्त जैसे सिषोच्च सांवैधानिक पद परउस समुदा्य के व्यक्ति को प्रद्तसष्ि्त कर उनके ्यथार्थ विकदस्त स्थिति को संकेद्त्त दक्या है । देश के वे प्रथम नागरिक हो सक्ते हैं , देश करी समपूणमा संरचना करी वह रीढ़ हैं , ऐसा संदेश देने करी हमने कोशिश करी है । फिर हम उनहें ददल्त क्यों कहें ? �
uoacj 2023 19