eMag_Nov2023_Dalit Andolan Patrika | Page 17

के हर स्तर पर प्र्यत्न दक्ये जा रहे हैं और किए जाने चाहिए ।
जाद्त व्यवसथा के विकृ्त हो्ते जा रहे सिरूप के परिणामसिरूप प्राप्त गदहमा्त स्थिति से जैसे वे अब मुक्त हो जाना चाह रहे हैं । उनके लिए करी गई पृथक राजनरीद्त भरी बेमानरी होगरी अगर समभाव से सभरी नागरिकों के विकास का संकलप दृढ हो । ्यह सहरी है कि जाद्त व्यवसथा ने भार्तरी्य जनमानस में उनके लिए जो द्तरसकार्युक्त भावना दनदममा्त कर दरी , उससे जुड़ी भावना को मिटाना इ्तना सरल नहीं था । उनके सं्षथों के परिणामसिरूप प्र्यत्न दर प्र्यत्नों करी श्ृंखला ने ्तरह ्तरह करी सुविधाएँ और आरषिण प्रदान कर भार्तरी्य संविधान के ्तह्त उनहें उपर उठाने का प्र्यत्न करना चाहा , वहीं सिाथगी मनवृद्त्यों ने इस भावना को जिनदा रखकर अपना दह्त साधा ।
वस्तु्तः देश के समपूणमा दक्र्याकलापों पर हािरी विकृ्त राजनरीद्त ने देश करी ्तस्वीर पूररी ्तरह बदलनरी नहीं चाहरी । कथनरी और करनरी में अन्तर सदैव सपष्ि हो्ता रहा । जाद्त्यों के इस समूह ने सामान्य जाद्त्यों के बरीच सिर उठाकर खड़े होने करी इचछा अवश्य पालरी पर वह हिम्मत नहीं पाल सकरी जिसमें प्रद्तद्सनद््ता करी भावना बौद्धिक
दरी गई सुविधाओं का भरी बिना अनुमद्त उपभोग करने में उनहें कठिनाई हुई । किन्तु आज ससथद्त्यां बदल ग्यरी हैं । उनहोंने सिर्फ अपने विकास के लिए मांगे ग्ये समर्थन करी परवाह न कर सबके विकास के नाम पर अपना समर्थन दद्या है । अब वह ने्ताओं के छद्म रूप करी असदल्य्त समझने लगे हैं ।
अदशषिा उनकरी सबसे बड़ी समस्या है जो अधिकांश्तः उनकरी गररीबरी से जुड़ी है ्या ्यों कहें कि परसपर अन्योन्याश्रित है । अभरी भरी समूह रूप में वह मुख्य समाज से दूर ऐसे सथानों में निवास कर्ते हैं , जहां उनकरी सामूहिक पृथक पहचान ्तो हो्तरी है , किन्तु उनकरी समस्याओं को दूर कर उनके बच्चों को विद्याल्य ्तक ले आना बेहद प्र्यत्नशरील्ता करी आवश्यक्ता महसूस कर्ता है । इस प्र्यत्नशरील्ता के अभाव में वह अवश्य हरी उपेदषि्त जरीिन जरी्ते हैं I पर उनके बढ़ते हुए अधिकार बोध के साथ सिसथ प्रद्त्योगातमक भावनाओं को अगर जोड़ दद्या जा्य ्तो वे अपनरी हरीन भावनाओं से निश्चित हरी उबर सक्ते हैं ।
दशषिा के षिेत् करी सभरी वर्जनाओं के समाप्त होने से उनहें भरपूर प्रोतसाहन मिला है । आरषिण और अपनरी बौद्धिक शसक्त्यों का सहारा लेकर
शिक्ा के क्ेत् की सभी वर्जनाओंके समाप्त होने से उन्ें भरपूर प्रोत्ाहन मिला है । आरक्ण और अपनी बौद्द्धक िततिययों का सहारा लेकर वह आगे बढ़ते जा रहे हैं । आंकड़यों के तहत यह बातें नहीं कह सकती क्योंकि यह सारी बातें जाति समूह की शतप्रतिशत सच्ी तस्ीर नहीं भी हो सकती क्योंकि किसी भी जाति समूह में शतप्रतिशत लोग बौद्द्धक क्मता का उपयोग नहीं ही कर पाते हैं । फिर भी उन्होंने अपनी िततिययों को पहचानना आरम्भ किया और सामान्य वर्ग के बहुत बड़े भाग ने उनके साहचर्य और सामीप्य को स्ीकार किया है , सम्ान दिए , उनके हौसलयों को बुलंद किया और वह बड़े-बड़े पदयों पर पदस्ापित भी हुए ।
किनके द्ारा और किस मानसिक्ता के ्तह्त हुआ , ्यह आज हर बौद्धिक मानस जान्ता है । दुहराने करी आवश्यक्ता प्र्तरी्त नहीं हो्तरी । दुहराकर शेष समाज में अपराध भावना सृजन करने करी चेष्टा करना भरी अनुदच्त है । सामाजिक चिन्तन करी वह एक स्थिति थरी जिससे उबरने
विकास किए जाने का प्र्यत्न , ्ततसमबसनथ्त दनभगीक्ता और सिादभमान पादल्त हो सक्ता । वस्तु्तः उनका व्यक्तिति सैकड़ों सालों से दबे हुए और प्र्ताड़ित व्यक्तितिों करी वंशानुग्त परिणद्त रहरी । उनकरी शाररीरिक भंगिमा के साथ मानसिक भंगिमा का भरी जुड़ाि था , परिणाम्तः
वह आगे बढ़ते जा रहे हैं । आंकड़ों के ्तह्त ्यह बा्तें नहीं कह सक्तरी क्योंकि ्यह साररी बा्तें जाद्त समूह करी श्तप्रद्तश्त सच्चरी ्तस्वीर नहीं भरी हो सक्तरी क्योंकि किसरी भरी जाद्त समूह में श्तप्रद्तश्त लोग बौद्धिक षिम्ता का उप्योग नहीं हरी कर पा्ते हैं । फिर भरी उनहोंने अपनरी
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