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दलित आंदोलन पलरिका ब्यूरो

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जातीय स्वाभिमान का असर वयसकत की उम्र पर भी पडता है ? कया दलित और शूद्र जाति के मुकाबिरे सवर्णों की उम्र लंबी होती है और ्वरे जयादा जीतरे हैं ? आज के इस आधुनिक युग में भिरे ही इस तरह की बातों को दकियानूसी करार दरे दिया जाए , िरेलकन यह सच है । इस बात का खुलासा हुआ है राष्ट्रीय सतर पर किए गए एक सर्वे में जिसमें जी्वन प्तयाशा के जातिगत आंकड़े काफी चौंकानरे ्वािरे सामनरे आए हैं ।
नैशनल फै ममि़ी हेल्थ सववे में खुलासा
हर सतर पर समता , समानता और बराबरी के इस दौर में यह बात थिोडी अजीब और आ्चय्षजनक लग सकती है कि जातीय स्वाभिमान का असर वयसकत की उम्र पर भी पडता है और दलित ्व शूद्र जाति के मुकाबिरे सवर्णों की उम्र अधिक लंबी होती है और अमूमन तुलनातमक तौर पर ्वरे जयादा जीतरे हैं । आज के इस आधुनिक युग में भिरे ही इस तरह के तथयों को दकियानूसी करार दरे दिया जाए इसकी प्ामाणिकता ्व सतयता को स्वालों के कठघररे में खडा कर दिया जाए िरेलकन दुर्भायपूर्ण बात यह है कि यह सच है । दरअसल , नैशनल फैमिली हरे्थि सर्वे ( NFHS ) के दूसररे और चौथिरे चरण के आंकडों का ल्व्िरेरर इसी ओर इशारा कर रहरे हैं । पॉपुिरेशन एंड ड़े्विपमेंट रिवयू जर्नल में छपरे एक अधययन के अनुसार भारत में स्वर्ण जाति के लोग अनुसूचित जाति

सववे में खुलासा , दलितों से ज्यादा जीते हैं सवर्ण

अनुसूचित जनजाति की उम्र होती है सबसे कम पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की जीवन प्रत्याशा बेहतर

और अनुसूचित जनजातियों के लोगों के मुकाबिरे औसत 4 सरे 6 साल जयादा जीतरे हैं । इसी प्कार अधययन में पाया गया है कि स्वर्ण जातियों और मुसलमानों के बीच औसत उम्र का अंतर ढाई ्वर्ष तक का है । यानी सवर्णों के मुकाबिरे मुसलमान भी 2.5 साल कम ही जीतरे हैं । इस अधययन में सबसरे चौंकानरे ्वाली बात यरे है कि यरे अंतर किसी एक इलाके , ्वकत या आय के सतर तक सीमित नहीं है और इन वर्गों के सत्री- पुरुष दोनों में नजर आता है ।
जातिवार ज़ीवन प्रत्ाशा के चौंकाने वाले आंकडे
पिछिरे दिनों सामनरे आई खबरों के मुताबिक इस अधययन के दौरान 1997-2000 और 2013-16 के बीच किए गए नरेशनल फैमिली हरे्थि सर्वे के आंकडों की जब तुलना की गई तो कई चौंकानरे ्वािरे तथय उभरकर सामनरे आए । इस अधययन के मुताबिक , 1997-2000 के दौरान पुरुषों के मामिरे में जी्वन प्तयाशा अपर
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