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थिरे । यज् आयवो का प्मुख अनुष्ठान थिा । सभी ब्राह्मण यज् ल्वज्ान के जानकार नहीं थिरे । ऋग्वरेद में एक मंत्र ( 8.58.1 ) में प्श्न है कि “ इस यज् में नियुकत हुआ है उसका यज् समबंिी ज्ान कैसा थिा ?” ऋग्वरेद में यज् कर्म में योगय ब्राह्मण नियुकत किए जातरे थिरे । यही यज् कर्म में नियुकत ब्राह्मण की योगयता जरूरी है । यज् के प्ोटोकाल में ब्राह्मण होता के नीचरे बैठता थिा । ऋग्वरेद के समाज में कल्व ऋषि सबसरे जयादा सममालनत हैं । ऋषि कल्व हैं । ब्राह्मण मंत्र रचना नहीं करतरे थिरे । ्वरे मंत्रों का प्योग करतरे थिरे । मंत्र पढ़तरे थिरे । ऋग्वरेद में ब्राह्मण शबद का अथि्ष मंत्र या सतुलत भी है । एक ऋषि कहतरे हैं कि दरे्व इन्द्र तरेररे लिए मैं नए ब्राह्मण रचता हूं । ब्राह्मण का अथि्ष कल्वता भी है । ्वर्ण धीररे-धीररे जाति बनरे । िरेलकन ब्राह्मण ्वर्ण ही रहरे । इस ्वग्ष में जातियां नहीं हैं । इसी तरह क्लत्रय और ्वै्य ्वग्ष में जाति नहीं है । शूद्र ्वग्ष में काम और व्यवसाय आदि के कारण
सैकड़ों जातियों का ल्वकास हुआ । फिर किसी दुर्भागयपूर्ण काल में शूद्र ्वग्ष की जातियां नीचरे कही जानरे लगीं । ब्राह्मण , क्लत्रय और ्वै्य शूद्र को निम्न कहनरे लगरे । इससरे राष्ट्रीय क्लत हुई । अब भी हो रही है ।
राजऩीति से संभव नहीं जाति वर्ण तोडना
सरकार बनानरे और अपनी अपनी पार्टियों के लिए अभियान चलानरे का राजनैतिक काम आसान है िरेलकन सामाजिक परर्वत्षन का कार्य कठिन है । अनुसूचित जातियों के बीच हमनरे 15 ्वर्ष काम किया है । यह काम सामाजिक परर्वत्षन का है । मरेररे ल्वरुद्ध ऊंची जातियों के कुछ लोगों नरे तमाम अभियान चलाए । मरेरी निंदा हुई । भारतीय समाज जड़ नहीं है । इसरे प्यत्पू्व्षक गतिशील बनाया जा सकता है । अधिकांश पू्व्षजों नरे इसरे गतिशील बनाया है । मैंनरे जाति ल्वरोधी
अभियान चलाकर सीमित क्षेत्र में सफलता भी पाई है । समाज्वादी डा . राममनोहर लोहिया नरे जाति तोड़ो अभियान चलाया । उनके बाद के समाज्वादियों नरे जाति आधारित गोलबंदी की राह पकड़ी । जातियों की संखया के आधार पर राजनीति चली । भारतीय कमयुलनष्टों सरे अपरेक्ा थिी कि ्वरे ्वग्ष संघर्ष के अपनरे सिद्धांत के लिए अमीर और गरीब वर्गो के गठन के लिए काम करेंगरे । िरेलकन उन्होंनरे भारतीय संस्कृति की निंदा की । अ्पसंखयक मुससिम ्वग्ष की आस्था स्वीकार की । ्वामपंथि के सिद्धांत में मजहबी अलगा्व्वादी अससमता का कोई स्थान नहीं है िरेलकन उन्होंनरे इसका पोषण किया । परिणाम सामनरे हैं । कमयुलनसट असफल होतरे रहरे । अब ्वरे इतिहास की सामग्ी हैं । जाति ्वर्ण की अससमता का खातमा राजनीति के द्ारा संभ्व नहीं है । राजनीति जाति ्वर्ण सरे लाभ उठाती है । सामाजिक आन्दोलन ही उपाय हैं ।
डा . आम्ेडकर की ‘ हू वेयर शूद्राज ’ पढें
भारत के सभी लन्वासी आर्य हैं । ऋग्वरेद आयवो की ही रचना है और समूचा ्वैदिक साहितय भी । आर्य नसि नहीं थिरे । शूद्र भी आर्य थिरे । आर्य समाज के अल्वभाजय अंग थिरे । शूद्र कोई अलग नसि नहीं थिरे । डा . आम्बेडकर नरे ‘ हू ्वरेयर शूद्राज ’ पुसतक लिखी थिी । यह 1946 में प्काशित हुई थिी । प्श्न है कि कया शूद्र अनार्य थिरे ? डा . आम्बेडकर नरे लिखा है “ शूद्र आर्य थिरे । क्लत्रय थिरे । क्लत्रय में शूद्र महत्वपूर्ण ्वग्ष के थिरे । प्ाचीन आर्य समुदाय के कुछ सबसरे प्लसद्ध शसकतशाली राजा शूद्र थिरे ।” शूद्र या अनुसूचित जाति के भाई बंधु हमाररे अंग हैं । ्वरे हमाररे पू्व्षज अग्ज थिरे और हैं िरेलकन उन्हें सामाजिक दृष्टि में अब भी पर्यापत सममान नहीं मिलता । शूद्र शबद भीतर हृदय में कांट़े की तरह चुभता है । दुनिया अंतररक् नाप रही है । भारत भी चन्द्र और मंगल ग्ह तक पहुंच गया है । हम सब ल्व््व का अंग हैं । भारत परर्वार के भी अंग हैं । हम सब सभी वर्गो को अपनाएं । इसी अपनरेपन में भारत की ऋद्धि सिद्धि समृद्धि की गारंटी है ।
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