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ल्वकसित हुई और जाति भी । सभी आर्य एक समान थिरे । सभी वर्णो में आतमीय समबंि थिरे । मनुसमृलत ( 10.64 ) में कहा गया है कि शूद्र ब्राह्मणत्व को प्ापत होता है और ब्राह्मण शूद्रत्व को । लभन्- लभन् ्वर्ण में ्वै्वाहिक समबंि थिरे ।” धर्म सूत्रों में कहा गया है कि शूद्रों को ्वरेद नहीं पढ़ना चाहिए िरेलकन इससरे लभन् ल्वचार भी थिरे । छान्दोगय उपनिषद् में राजा जानश्ुलत शूद्र थिरे । उन्हें रैक्व ऋषि नरे ्वैदिक ज्ान दिया थिा । ऋषि क्वर एलूस शूद्र थिरे । ऋषि थिरे । ऋग्वरेद के दस्वें मणडि में उनके सूकत हैं । भारद्ाज श्ौत्र शूद्र को भी यज् कर्म का अधिकार दरेता है । धर्म सूत्रों में शूद्र को सोमरस पीनरे का अधिकार नहीं दिया गया । इन्द्र नरे अश्विनि को सोम पीनरे का अधिकार नहीं दिया । सुकन्या के ्वृद्ध पति च्यवन को अल्वनी दरे्वों नरे यौ्वन दिया थिा । च्यवन ऋषि नरे इन्द्र को बाधय किया कि अश्विनी दरे्वों को सोमरस दें । यह ्वही च्यवन है जिनके नाम पर आयुर्वेद का च्यवनप्ास
चलता है । शूद्रों को समान अधिकार दरेनरे की अनरेक कथिाएं हैं । िरेलकन बाद की ्वर्ण व्यवस्था के समाज में उतपादन और श्म तप ्वािरे शूद्रों की स्थिति कमजोर होती रही ।
शूद्र शब्द वर्ण सूचक नहीं : बाबा साहब
शूद्र आर्य थिरे । हम सबके पू्व्षज थिरे । डा . आम्बेडकर नरे लिखा है कि पहिरे शूद्र शबद ्वर्ण सूचक नहीं है । यह एक गण या कबीिरे का नाम थिा । भारत पर सिकंदर के आक्मण के समय सोदरि नाम का गण लड़ा थिा । पतंजलि नरे महाभाष्य में शूद्रों का उल्लेख आमीरों के साथि किया है । महाभारत के सभा प्व्ष में शूद्रों के गण संघ का उल्लेख है । ल्वष्रु पुराण , माककेण्डेय पुराण , ब्रह्म पुराण में भी शूद्रों के गण संघ का उल्लेख है ।” शूद्र गुर्वाची है । अब ्वर्ण व्यवस्था काि्वाह्य हो गई िरेलकन उसके अ्वशरेर अभी भी हैं । यज्
आदि कर्मकाणड के समय उन्हें सममान जनक स्थान नहीं मिलता । यह दशा त्रासद है । ्वरे पूजा , यज् उपासना में केन्द्रीय भूमिका नहीं पातरे । जातियां काि्वाह्य हो रही हैं । कुछ समय पू्व्ष उ0प्0 ल्विानसभा के प्मुख सलच्व प्दीप दुबरे के खरेत में खुदाई के समय एक प्ाचीन लश्व मूर्ति मिली । संयोग सरे यह लश्वरात्रि का दिन थिा । दुबरे नरे लश्व उपासना की । यज् कराया और अनुसूचित जाति के एक ्वरिष्ठ को पुरोहित बनाया । उपस्थित जनसमुदाय नरे उनसरे प्साद लिया । उन्हें प्राम किया । मुझरे आशा है कि लोग इससरे प्रेरित होंगरे । दुबरे के इस अनुसूचित जाति के नरेतृत्व ्वािरे कर्मकाणड में कोई निजी हित नहीं थिा ।
शूद्र को ऩीरे की जाति मानना दुर्भाग्यपूर्ण ऋग्वरेद में ब्राह्मण शबद आया है । ब्राह्मणों
के साथि अन्य लोग भी यज् में ससममलित होतरे
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