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हृदयनारायण दीक्षित

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र्ण ्व जाति व्यवस्था समाज ल्वभाजक थिी और है । जाति व्यवस्था और ्वर्ण व्यवस्था सरे भारत का बड़ा नुकसान हुआ । कुछ लोग ्वर्ण व्यवस्था के जन्म और ल्वकास को दै्वी ल्विान मानतरे हैं और अनरेक ल्वद्ान इसरे सामाजिक ल्वकास का परिणाम मानतरे हैं । डा . आम्बेडकर कहतरे हैं कि चार वर्णों की व्यवस्था के समबंि में दो लभन् मत थिरे । दूसरा मत थिा कि इस व्यवस्था का ल्वकास

वर्ण — जाति व्यवस्ा ने किया बडा नुकसान वैदिक काल में एक समान थे सभ़ी वर्ण — जाति सामाजिक आंदोलन से टूटेग़ी जाति व वर्ण व्वस्ा

मनु के ्वंशजों में हुआ । इस तरह यह प्ाककृलतक है । दै्वी नहीं है । कुछ समाज ल्वज्ानी इसरे रंग भरेद का परिणाम मानतरे थिरे । कई यूरोपीय ल्वद्ान नरे ्वर्ण का अथि्ष रंग करतरे थिरे । ्वरे आयषों को ््वरेत रंग ्वाला और शूद्रों को ्याम ्वर्ण ्वाला मानतरे थिरे । ्वास्तविकता इससरे दूर है । डा . आम्बेडकर नरे तमाम उदाहरण दरेकर बताया है कि आर्य गौर ्वर्ण के थिरे और ्याम ्वर्ण के भी थिरे । उन्होंनरे ऋग्वरेद के ह्वािरे सरे लिखा “ अश्विनी दरे्वों नरे श्याव ्व रूक्ती का ल्व्वाह कराया । श्याव ्याम ्वर्ण का थिा और रूक्ती गोरी । अश्वनी दरे्व नरे
गौर ्वर्ण की ्वंदना की रक्ा की थिी ।” डा . आम्बेडकर का निष्कर्ष है कि “ आयषों में रंगभरेद की भा्वना नहीं थिी ।” आयवो में काई भरेद नहीं थिा ।” आर्य जाति के उपासय श्ीराम ्याम रंग के थिरे और श्ीककृष्र भी । ऋग्वरेद के एक ऋषि दीर्घतमस भी गोररे रंग के नहीं ्याम रंग के थिरे ।
वैदिक काल में एक समान थे सभ़ी ऋग्वरेद में संसार प्ाककृलतक ल्वकास का परिणाम
है । ्वर्ण व्यवस्था सामाजिक ल्वकास के क्म में
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