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्वाला है ?
संचार की समस्ा या इ तिहास का बोझ ?
राहुल गांधी नरे ‘ दलित सतय ’ पर एक लंबा भाषण दिया , िरेलकन उसमें सार का अभा्व थिा । उनकी दो कहानियां कोई ज्वाब नहीं दरेतीं बल्क भ्रम और असपष्टता को दर्शाती हैं । ऊना कथिा का ्वास्तव में कोई मतलब नहीं थिा । उन्होंनरे दिल सरे बात की और इसमें कोई संदरेह नहीं है कि उनका इरादा नरेक है िरेलकन दलितों का मुद्ा के्वि उनके ‘ संरक्क ’ होनरे का नहीं है बल्क उन्हें अपनी बात और अपनरे निर्णय स्वयं रखनरे की अनुमति है । सच कहूं तो , यह अकेिरे राहुल
गांधी नहीं थिरे , बल्क कांग्रेस पाटथी नरे इस मुद्दे को संभालनरे में बहुत ही संरक्षणवादी रुख दिखाया । ्वह जिग्नेश मरे्वानी सरे पूछ सकतरे थिरे कि कांग्रेस कार्यकर्ता कितनी बार ऊना गए हैं । इस तथय के बा्वजूद कि यह मुद्ा एक बडा अंतरराष्ट्रीय समाचार बन गया , िरेलकन राजनीतिक रूप सत्ा परर्वत्षन के लिए यह मुद्ा कारगर नहीं हो सकता । ्वैसरे भी यरे मुद्ा तब राजनतिक तौर पर प्भा्वकारी होगा जब इसमें दूसररे समुदायों की भागीदारी होगी । हां , गुजरात में दलितों को हिंदुत्व मॉडल आलथि्षक रूप सरे निर्भर बना रहा है और इसलिए प्लतरोध कठिन हो गया है । बरेशक ऊना की घटना नरे दलितों को अम्बेडकर और बौद्ध धर्म को समझनरे के
लिए मजबूर किया । उन्होंनरे उन लोगों में सरे कई को भी दरेखा जो ऊना के माधयम सरे ‘ राष्ट्रीय ’ और ‘ अंतर्राष्ट्रीय ’ बन गए िरेलकन फिर कभी ऊना जाकर उतपीलडतों सरे मिलनरे की जहमत नहीं उठाई । इस तरह का ल्व््वासघात दलितों को मायूस कर दरेता है और ्वरे स्वाल करतरे हैं ।
दलितों के मुद्े सकारात्मक हैं , नकारात्मक नहीं
मुझरे यकीन नहीं है कि कया राहुल गांधी और कांग्रेस पाटथी यह समझतरे हैं कि दलितों का मुद्ा न के्वि ब्राह्मर्वाद के प्लत गुससा दिखा रहा है बल्क सत्ा में भागीदारी भी है । यह अम्बेडकर्वाद के बाररे में भी है और इस तथय
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