eMag_May 2021_Dalit Andolan | Page 43

क्रि्यात्व्यन ठीक से नहीं हो पा्या । केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने भी गरीबी कम करने के क्लए कई ्योजनाएं चिलाई क्कत्तु उसे भी पूर्ण रूप नहीं क्द्या जा सका । साथ ही आक्दवाक्स्यों से जंगलों के वन-उतपाद संबंक्धत उनके परमपरागत अक्धकार पूरी तरह से क्छन क्लए गए । आक्दवासी समाज से क्टकर भारत के क्वकास की कलपना करना अंधेरे में तीर चिलाने जैसा होगा ।
आम तौर पर उनका सवासथ्य बक्ढ़्या होता है पर कम पढ़़े-क्लखे होने के कारण और जागरूकता के आभाव में अकसर आक्दवासी
अपने सवासथ्य पर क्वशेष ध्यान नहीं दे पाते हैं । आक्दवाक्स्यों की एक समस्या सवासथ्य भी है । साथ ही दूर-दराज के क्ेरिों में सवासथ्य सुक्वधा की कमी के कारण उनको काफी असुक्वधा का सामना करना पड़ता है । कभी-कभी तो हालात काफी मुश्कल हो जाते हैं और तब असपताल के अभाव में इनके जीवन-मृत्यु तक बात पहुंचि जाती है । आक्दवासी समाज का क्शक्षित न होना बहुत बड़ी समस्या है । आक्दवासी समाज का क्शक्ा से कम सरोकार होना उनके कई समस्या से जुड़ा हुआ है । ऋणग्सतता , भूक्म हसतांतरण , गरीबी , बेरोजगारी , सवासथ्य आक्द कई समस्या्यें हैं जो क्शक्ा से प्रभाक्वत होती हैं । जनजाती्य समूहों पर औपचिारिक क्शक्ा का प्रभाव बहुत कम पड़ा है । संक्वधान के प्रभावी होने के पश्चात अनुसूक्चित जनजाक्त के लोगों के क्शक्ा सतर में
वृक्द्ध करना केन्द्र तथा राज्य सरकारों का उत्रदाक््यतव हो ग्या है । सरकार के इस पक् के अलावा भी कुछ दूसरे पक् हैं क्जस पर सरकार को सोचिने की बहुत जरूरत है । पूवषोतर के राज्यों को छोड़ कर अभी तक पश्चिम बंगाल के अलावा क्कसी भी अत््य प्रदेश में आक्दवाक्स्यों को उनकी मातृभाषा में प्राथक्मक क्शक्ा नहीं दी जाती है । ऐसे में ्यह समाज कैसे क्वकक्सत होगा क्जसे अपनी मातृभाषा से ही दूर रखा ग्या हो ।
अगर हम अक्वभाक्जत क्बहार की बात करें तब राज्य सरकार ने क्जसमें झारखंड भी शाक्मल
था , बरसों पहले आक्दवाक्स्यों को मातृभाषा में पढ़ाने का कानून बना क्द्या था । राजनीक्तक सवाथ्यवश इस पर आगे का ्य नहीं हो सका और आज झारखंड के अलग होने के बाद भी प्राथक्मक क्शक्ा मातृभाषा में देने का प्रावधान लागू नहीं हुआ है । ऐसी स्थिति में जनजाती्य लोग देश के अत््य लोगों से बहुत पीछ़े रह जाते हैं । हमें इस स्थिति का विश्लेषण करना चिाक्हए । क्शक्ा प्रापत कर लेना ही क्वकास का प्रभावी मापदंड नहीं होना चिाक्हए । गैर आक्दवासी लोगों के बसने के कारण उनकी भाषा भी क्छन रही है क्योंक्क उनकी भाषा समझने वाला अब कोई नहीं है । क्जन लोगों की भाषा क्छन जाती है उनकी संस्कृक्त भी नहीं बचि पाती । उनके नृत्य को अत््य लोगों द्ारा अजीब नजरों से देखे जाते हैं इसक्लए वे भी सीक्मत होते जा रहे हैं । जहां उनका ‘ सरना ’ नहीं
है वहां उन पर नए-नए भगवान थोपे जा रहे हैं । उनकी संस्कृक्त ्या तो हड़पी जा रही है ्या क्म्टाई जा रही है । हर धर्म अपना-अपना भगवान उन्हें थमाने को आतुर है । क्हंदुतववादी लोग उन्हें मूलधारा ्यानी क्हंदुतव की क्वककृक्त्यों और संकीर्णताओं से जोड़ने पर तुले हैं और उनको रोजी-रो्टी के मुद्े से ध्यान ह्टा कर अलगाव की ओर धकेला जा रहा है ।
गुजरात में आक्दवासी जनजीवन के उतथान और उन्न्यन के क्ल्ये मैं लमबे सम्य से प्र्यासरत हूं और क्वशेषतः आक्दवासी जनजीवन को उन्नत बनाने , उन क्ेरिों में क्शक्ा , रोजगार , सवासथ्य , संस्कृक्त-क्वकास की ्योजनाओं लागू करने के प्र्यास क्क्ये जा रहे हैं , इसके क्ल्ये हम लोगों ने सुखी परिवार अक्भ्यान के अन्तर्गत अनेक सतरों पर प्र्यास क्क्ये हैं , क्जनसे सर्वसुक्वध्युकत करीब 12 करोड की लागत से जहां एकलव्य आवासी्य माडल क्वद्याल्य का क्नमा्यण हुआ है , वहीं कत््या क्शक्ा के क्ल्ये रिाह्मी सुन्दरी कत््या छारिावास का कुशलतापूर्वक संचिालन क्क्या जा रहा हैं । इसी आक्दवासी अंचिल में जहां जीवद्या की दृष्टि से गौशाला का संचिाक्लत है तो क्चिक्कतसा और सेवा के क्ल्ये चिल्यमान क्चिक्कतसाल्य भी अपनी उललेखनी्य सेवाएं दे रहा है । अब हम लोग रोजगार की दृष्टि से इसी क्ेरि में व्यापक संभावनाओं को तलाश रहे है । क्शक्ा के साथ- साथ नशामुशकत एवं रूक्ढ़ उन्मूलन की अलख जगा रहे हैं । पढ़ने की रूक्चि जागृत करने के साथ-साथ आक्दवासी जनजीवन के मन में अक्हंसा , नैक्तकता एवं मानवी्य मूल्यों के प्रक्त आसथा जगाना हमारा ध्ये्य है । हर आक्दवासी अपने अन्दर झांके और अपना स्वयं का क्नरीक्ण करे । आज आक्दवासी समाज इसक्लए खतरे में नहीं है क्क सरकारों की उपेक्ाएं बढ़ रही है । ्ये उपेक्ापूर्ण शसथक्त्यां सदैव रही है- कभी कम और कभी ज्यादा । सबसे खतरे वाली बात ्यह है क्क आक्दवासी समाज की अपनी ही संस्कृक्त एवं जीवनशैली के प्रक्त आसथा कम होती जा रही है । ऐसे में प्रधानमंरिी श्री नरेन्द्र मोदी के न्ये भारत की परिकलपना को आक्दवासी समाज बहुत ही आशाभरी नजरों से देख रहा है । �
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