रखने का उपरिम भी नहीं कर रहे हैं । हमारे कई धमा्यक्धकारीगण जाक्त क्वभाजन के सवालों को संबोक्धत ही नहीं करते , बशलक आज भी जाती्य श्रेषठता भाव के साथ ही खड़़े हैं । वे ईसाई बन रहे क्नध्यन समाज की वापसी के क्लए प्र्यास करने भी नहीं जाते । वे पालघर नहीं गए , झारखंड नहीं गए , राजसथान नहीं गए । ्यक्द बाबासाहब
से सीख लेकर सामाक्जक एकता के रासते बनाए जाते तो समाज अब तक बहुत आगे आ ग्या होता । हालांक्क सीक्मत प्र्यास हो रहे हैं और उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती । हैदराबाद के रंगनाथ सवामी मंक्दर के पुजारी एक दक्लत भकत को वेदमंरिों के बीचि अपने करंधे पर बैठाकर गर्भगृह में ले जाते हैं । इसी तरह प्टना के हनुमानजी मंक्दर में दक्लत पुजारी हैं , लेक्कन
सामाक्जक एकता का मार्ग लंबा है । इस मार्ग को सुगम बनाना है तो हमें बाबासाहब का समरण ही नहीं करना होगा , उनके क्दखाए-बताए रासते पर चिलना भी होगा । ्यही उन्हें सच्ी श्रद्धांजक्ल होगी । उन्हें श्रद्धांजक्ल अक्प्यत करते हुए ्यह अवश्य ध्यान रखना होगा क्क बाबासाहब ने क्हंदू-समाज में व्यापत भेदभाव से क्ुबध होकर
मतांतरण अवश्य क्क्या , परंतु सनातन परंपरा के और भारती्य मूल के बौद्ध धर्म को अपना्या , क्योंक्क वह समस्याओं का समाधान भारती्य दृष्टिकोण से करना चिाहते थे । सं्योग से आज इसी दृष्टिकोण से प्रेरित राषट्वादी अक्भ्यान देश के मानस को एक करने का काम कर रहा है , अत््यथा कुछ सम्य पहले तक देश के कई क्हससों में जाक्त-परिवारवादी सत्ा और जाती्य क्वभाजन
का भ्यावह परिदृश्य था ।
क्िलहाल राषट्वाद के माहौल ने एक सीमा तक ही सही , जाती्य शशकत प्रदर्शन स्थगित करा क्द्या है । जाती्य श्रेषठता के अक्भमाक्न्यों को अपना नकली अहंकार त्याग इस राषट्वादी काल को अवसर के रूप में देखना चिाक्हए । इसका रासता बाबासाहब आंबेडकर ने बता्या है । जाक्तवादी सोचि का समापन और सामाक्जक एकीकरण का अक्भ्यान एक महान राषट्रीय का्य्य होगा । हम वैक्दक क्संधु-सरसवती संस्कृक्त और सनातन धर्म के मार्ग से आए हैं । न कोई जन्म से शूद्र है , न कोई जन्म से रिाह्मण । ्ये कर्मणा दाक््यतव हैं , जो दूक्रत होकर जन्म आधारित हो गए थे । ्यह सुखद है क्क आज सवतंरिता के ्योद्धाओं में रेजांगला के ्योद्धा , खेमकरन के शहीद , गलवन के वीर हम सबके नए हीरो हैं । क्या शबरी माता के बेर खाते राम में कोई जाती्य अक्भमान था ? नहीं । तो क्िर हम जाक्त व्यवसथा के आग्ही क्यों बने हुए हैं ? जाक्त्यों का सम्य पूर्ण हुआ । वे अपने क्वभेदों सक्हत क्तरोक्हत हो जाएं । आज कालाराम मंक्दर के पुजारी सुधीरदास को ग्लानि होती है क्क उनके बाबा रामदास को आंबेडकर जी को मंक्दर प्रवेश से नहीं रोकना चिाक्हए था । सम्य बदल रहा है और साथ ही सामाक्जक आजादी का प्रकाश हमें आलोक्कत करने लगा है । हमारी पीढ़ी अपने दाक््यतवों को क्नभाए । एक सशकत राषट् के भक्वष्य में हमारी साझा भागीदारी आक्हसता- आक्हसता इक्तहास की गलक्त्यों को भुला देगी ।
( साभार ) ebZ 2021 Qd » f ° f AfaQû » f ³ f ´ fdÂfIYf 41