में जन्म नहीं क्ल्या है । ्यही आधार गौतम बुद्ध के संदर्भ में भी इसतेमाल क्क्या जाना चिाक्हए । गौतम बुद्ध ने राजघराने में जन्म क्ल्या और दक्लत जाक्त से उनका दूर-दूर तक नाता नहीं था । लेक्कन अपने त्याग और दक्लतवादी क्चिंतन के आधार पर वे दक्लतों के मसीहा बने । गौतम बुद्ध ने सभी पीक्ड़तों को अपने दामन में पनाह दी और उनके क्वहारों में अत््य जाक्त्यों के गरीबों को भी बराबरी का दज़ा्य क्मला । इसके अक्तरिकत इन्हीं क्वहारों में राजा , सामंत और व्यापारी लोग
जाक्त के आधार के संदर्भ में उन दक्लतों का सवाल भी उठा्या जा सकता है जो धर्मान्तरण करके अत््य धमषों में जा चिुके हैं । उन धमषों में क्हंदू धर्म के क्वपरीत वहां उन्हें सैद्धांक्तक तौर पर जाक्त के आधार पर छुआछात ्या भेदभाव नहीं झेलना पड़ा है । जाती्य उतपीड़न से मुशकत के दक्लतों ने अनेक मार्ग खोजे हैं क्जनमें दूसरे धमषों में धर्मातरण भी एक प्रचिक्लत तरीका रहा है । बुद्ध धर्म के साम्यवादी सवरूप ने पहले पहल दक्लतों को अपनी ओर आकक्र्यत क्क्या
न तो वहां मनुवादी वर्ण व्यवसथा है न जाक्त के आधार पर दक्लत उतपीड़न ।
इसके अक्तरिकत ्यहां एक सवाल और जरूरी लगता है भले ही उसकी संभावनाएं कम हों । इस बात से इंकार नहीं क्क्या जा सकता क्क हर प्रकार का साक्हत्य कर्म अपने बुक्न्यादी रूप में शोषण क्वरोधी और व्यापक अथषों में सत्ा क्वरोधी होता है । वह समाज में व्यापत बुराइ्यों की आलोचिना करता है और सुखद ~ मानवी्य पररशसथक्त्यों वाले समाज के क्नमा्यण के क्लए
भी आते रहे । दक्लतों के जीवन की क्वसंगक्त्यों पर व्यापक क्चिंतन और सृजन करने वाले महान साक्हत्यकार मुंशी प्रेमचिंद को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चिाक्हए क्करंतु उनके प्रक्त दक्लत क्वचिारकों का नज़रर्या काफी तंग है ।
और हजारों दक्लत बौद्ध बने । इसी प्रकार जैन , इसलाम , ईसाई , क्सख व आ ्य समाज आक्द धमषों में दक्लत धर्मातरण करके जाते रहे हैं । ऐसे लोग क्जस साक्हत्य का सृजन करेंगे उसे क्कस आधार पर दक्लत क्वर्यक साक्हत्य माना जाएगा क्योंक्क
लोगों में जागृक्त और चिेतना का प्रसार करता है । इसे क्वपरीत समाज में जन क्वरोधी ्या प्रगक्तशील मूल्य क्वरोधी और सत्ापक्ी साक्हत्य भी खूब रचिा जाता है । मान लीक्जए कोई दक्लत क्वर्यक साक्हत्यकार सत्ा के समर्थन और दक्लतों के
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