eMag_May 2021_Dalit Andolan | Page 34

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नई चेतना पैदा कर रहे हैं दलित विषयक साहित्य आन्ोिन

मुकेश मानस

धुक्नक दक्लत क्वर्यक साक्हत्य आंदोलन ज्योक्तबा फुले , सावित्री बाई फुले और डा . अमबेडकर द्ारा चिलाए गए सशकत सामाक्जक आंदोलन के परिणामसवरूप उभरा है । ज्योक्तबा फुले और सावित्री बाई फुले ने पहले पहल दक्लतों की खासतौर से दक्लत शसरि्यों की क्शक्ा का आंदोलन चिला्या । उन्होंने दक्लतों के उतथान और सामाक्जक सममान के क्लए स्वयं पर अनेकानेक अत्याचिार सहकर भी जागृक्त की एक लहर पैदा की । डा . आंबेडकर ने उनके द्ारा तै्यार जमीन पर व्यापक दक्लत चिेतना के बीज बो्ये और परिणामसवरूप , उनके जीवन काल में ही सशकत सामाक्जक-राजनीक्तक और सांस्कृक्तक दक्लत आंदोलन अशसततव में आ्या । इस आंदोलन की जबरदसत अक्भव्यशकत के रूप में भारती्य साक्हत्य के दृश्य प्टल पर दक्लत क्वर्यक साक्हत्य उपशसथत हुआ और सतह पर क्दखाई पड़ने लगा । जलद ही इसका प्रभाव क्हंदी भाषा पर भी पड़ा । आज वर्तमान क्हंदी साक्हत्य में दक्लत क्वर्यक लेखन के उभार और उसके क्नरंतर क्वकास से इंकार नहीं क्क्या जा सकता है । दक्लत क्वर्यक साक्हत्य के इस जबरदसत उभार ने भारती्य भाषाओं के साक्हत्यकारों और आलोचिकों में एक हलचिल पैदा कर दी है क्जससे उनका ध्यान इस ओर आकक्र्यत हुआ है । क्कत्तु इसके साथ ही ्यह भी सचि है क्क स्वयं दक्लत क्वर्यक साक्हत्य आंदोलन और दक्लत रचिनाकारों को वैचिारिक सतर पर अनेक अन्तरक्नक्हत

अत्तक्व्यरोधों का सामना भी करना पड़ रहा है ।
क्कसी साक्हत्यकार को दक्लत क्वर्यक साक्हत्यकार होने के क्लए ्यह अक्नवा ्य है क्क वह दक्लत जाक्त में पैदा हुआ हो । क्कत्तु अभी भी ्यह मसला काफी बहस की गुंजाईश रखता है क्क आक्खर दक्लत कौन है ? दक्लत क्वर्यक साक्हत्य की मुख्यधारा के क्चिंतकों का मानना है क्क दक्लत क्वर्यक साक्हत्यकार वही है जो जाक्त से दक्लत है । वे दक्लत क्वर्यक साक्हत्य को व्यापक अथषों में न देखकर दक्लत जाक्त के संदर्भ में ही देखते हैं क्कत्तु वहां भी दक्लत शबद की व्याख्या को लेकर असपष्टता है । वे दक्लतों में उभर रहे अक्भजाती्य व शोषक वर्ग के उभार को दरक्कनार ही करते आ रहे हैं । क्कत्तु दक्लत क्वर्यक साक्हत्य के क्चिंतकों की दूसरी धारा दक्लत शबद के व्यापक अर्थ लगाती है । उनका मानना है क्क क्कसी भी जाक्त ्या धर्म से संबंध रखने वाला व्यशकत अगर सामाक्जक और आक्थ्यक रूप से शोक्रत है तो उसे भी दक्लतों की एक श्रेणी के रूप में ही रेखांक्कत क्क्या जाना चिाक्हए । आज दक्लतों में , खासतौर से कसबों , नगरों और महानगरों में एक ऐसा वर्ग पैदा हो ग्या है , क्जसने गुणातमक रूप से अचछी सामाक्जक और आक्थ्यक पररशसथक्त्यों में जन्म लेने के कारण जाती्य उतपीड़न को क्बलकुल नहीं झेला है । इस प्रकार का दक्लत अत््य अमीर तबकों की तरह न क्सि्फ दक्लतों का दु्मन साक्बत हो रहा है अक्पतु स्वयं दक्लतों में ही शोषकों की एक श्रेणी को संभव बना रहा है ।
अगर इस अक्भजाती्य और शोषक दक्लत
को दक्लत क्वर्यक साक्हत्य का प्रणेता माना जा सकता है तो क्कसी अत््य जाक्त में पैदा हुआ दक्लतवादी जनवादी लेखक को क्यों नहीं ? क्या उसे दक्लतों का समर्थक केवल इसक्लए नहीं माना जाना चिाक्हए क्योंक्क उसने दक्लत जाक्त
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