उन्होंने महाराषट् में शसरि्यों के क्लए पहला स्कूल खोला , जोक्क भारत में भी मक्हलाओं का पहला स्कूल था । सरिी क्शक्ा की क्दशा में फुले दंपत्ति द्ारा उठाए गए इस कदम का सवणषों ने खासा क्वरोध क्क्या । सवर्ण समाज में सरिी क्शक्ा वक्ज्यत थी , सवर्ण मक्हलाएं तो दक्लतों से भी महादक्लत थीं । वे 100-150 साल पहले तक घर से बाहर
कदम नहीं रख सकती थीं । एक ऐसे समाज में फुले दंपत्ति का सरिी क्शक्ा के क्लए स्कूल की सथापना करना क्न्चि्य ही साहक्सक कदम था । सावित्रीबाई फुले घर से बाहर क्नकलकर पढ़ाने
का काम करने वाली पहली क्शक्षिका थीं । जब वो स्कूल के क्लए क्नकलतीं थी , तो अपने साथ घर से हमेशा एक अक्तरिकत साड़ी लेकर चिलती थीं क्योंक्क उन्हें तंग करने और सरिी क्शक्ा का क्वरोध करने के क्लए उन पर गोबर और पतथर फेंके जाते थे , उन पर भद्ी फब्तियां कसी जाती थीं , मगर क्ि र भी वे पीछ़े नहीं ह्टीं । मगर ताज्ुब की बात ्यह है क्क सवणषों ने फुले दंपत्ति के क्शक्ा खासकर सरिी क्शक्ा के क्ेरि में क्कए गए काम को कभी उस तरह तवज्ो नहीं दी , क्जस तरह राजा राममोहन रा्य को । खास बात तो ्यह है क्क राजा राममोहन रा्य के सम्य तक क्शक्ा का काफी प्रचिार-प्रसार हो चिुका था । सही मा्यनों में देखा जाए तो फुले दंपत्ति के संघर्ष ने महाराषट् में दक्लत आंदोलन की नींव रखने का काम क्क्या ।
दक्षिण भारत में दक्लत मसीहा के बतौर इरोड वेंक्ट ना्यकर रामासामी पेरर्यार को देखा जाना चिाक्हए । पेरर्यार ने रिाह्मणवाद के क्खलाफ वहां एक वृहद् आंदोलन की नींव रखी । उन्होंने दक्षिण भारत में दक्लतों के मंक्दरों में प्रवेश के क्लए आंदोलन क्क्या । ताज्ुब की बात ्यह है क्क जब पेरर्यार ने मंक्दर आंदोलन की शुरुआत की तब दक्लतों का मंक्दर में प्रवेश करना तो दूर , क्जस रासते में मंक्दर बना हो उस रासते से जाना तक वक्ज्यत था । जानवरों से भी बदतर हालत थी दक्लतों की । हालांक्क कुछ कांग्ेस नेताओं के कहने पर ही उन्होंने वाईकम आंदोलन का नेतृतव सवीकार क्क्या , जो मन्दिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर दक्लतों के चिलने की मनाही को ह्टाने के क्लए संघर्षरत् था , मगर बाद में ्युवाओं के क्लए कांग्ेस संचिाक्लत प्रशिक्षण क्शक्वर में रिाह्मण प्रशिक्षकों द्ारा गैर-रिाह्मण छारिों के प्रक्त भेदभाव बरतते देख उनका मन कांग्ेस से उखडऩे लगा । उन्होंंने कांग्ेस नेताओं के समक् दक्लतों के क्लए आरक्ण का प्रसताव भी रखा , क्जसे नामंजूर कर क्द्या ग्या , इसक्लए उन्होंने कांग्ेस छोड़ दी । पेरर्यार के क्खलाफ भी रिाह्मणवादी क्वचिारकों ने एक नए आंदोलन की शुरुआत कर दी । महातमा गांधी ने पेरर्यार क्वरोक्ध्यों को समझा्या क्क उनकी बात मानकर
दक्लतों को मंक्दरों के रासतों पर चिलने की इजाजत दे दी जाए , नहीं तो पेरर्यार दक्लतों के मंक्दर प्रवेश के क्लए भ्यंकर आंदोलन करेंगे । चिूंक्क क्पछड़ा-दक्लत समुदा्य पेरर्यार के साथ था , इसक्लए कांग्ेस की साख खतम हो रही थी और गांधी को कांग्ेस की साख बचिाने की क्चिंता थी । गांधी भी पेरर्यार के साथ नहीं थे ।
इसी तरह कोलहापुर के साहूजी महाराज , जो खुद आज के ओबीसी समुदा्य से आते थे , दक्लतों के असली ना्यक साक्बत हुए । वे कोलहापुर के राजा थे । उन्होंने अपने राज्य में सबसे पहले दक्लतों-क्पछड़ों के क्लए 51 प्रक्तशत आरक्ण देकर हर क्ेरि में समतामूलक समाज की सथापना की शुरुआत की । उन्हें आरक्ण का जनक भी कहा जाता है , क्योंक्क साहूजी महाराज ने ही सबसे पहले भारतवर्ष में दक्लतों-क्पछड़ों को आरक्ण देने की शुरुआत की । वे मक्हलाओं के क्लए क्शक्ा सक्हत कई प्रगक्तशील गक्तक्वक्ध्यों के साथ भी जुड़े थे । उन्होंने गरीबों , क्कसानों , मजदूरों , दबे-कुचिले लोगों को प्रशासन में भागीदारी दी । साहूजी महाराज शासन-प्रशासन , धन , धरती , व्यापार , क्शक्ा , संस्कृक्त व सममान- प्रक्तषठा सभी क्ेरिों में वे आनुपाक्तक भागीदारी के प्रबल समर्थक थे । उनका नारा भी था ‘ क्जसकी क्जतनी संख्या भारी उसकी उतनी क्हससेदारी , क्जनकी क्जतनी क्हससेदारी उसकी उतनी भागीदारी , क्जसकी क्जतनी भागीदारी , उसकी उतनी क्जममेदारी ।’
जहां तक ओबीसी ना्यकों की भारती्य समाज तथा साक्हशत्यक , अकादक्मक अध्य्यनों में वह पहचिान नहीं बन सकी , क्जसके वे हकदार थे , का सवाल है तो , ्यह समझने की जरूरत है क्क ओबीसी का कोई अकादक्मक केंद्र नहीं रहा है । हालांक्क आज के दौर में देखा जाए तो ओबीसी वैचिारिक प्रक्तबद्धता के साथ हर जगह मौजूद हैं । जहां तक साक्हत्य जगत में ओबीसी के हाक्शए पर रहने का सवाल है , तो राजेंद्र ्यादव से पहले क्कसी ने इस पर बात ही नहीं की । हालांक्क मौजूदा सम्य में काफी लोगों ने इस क्दशा में पहल लेनी शुरू कर दी है ।
( साभार ) ebZ 2021 Qd » f ° f AfaQû » f ³ f ´ fdÂfIYf 33