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दलित चेतना के विकास में ओबीसी नायकों की भूमिका
चिौथीराम यादव
हमारे देश में क्जतने भी सांस्कृक्तक आंदोलन हुए , उनमें ओबीसी ना्यकों की भूक्मका बहुत महतवपूर्ण रही है । सामाक्जक परिवर्तन में उनके ्योगदान को नकारना बेमानी होगा । बहुजन समाज के प्रवकता और आधारसतंभ दोनों आमबेडकर रहे हैं । इसके मद्ेनजर अगर आमबेडकर से पहले के ओबीसी ना्यकों पर बात की जाए तो उन्होंने दक्लत आंदोलन के जरिए जो सबसे पहला काम क्क्या वह धाक्म्यक वचि्यसव को तोडऩे का था । चिूंक्क तब समाज में जाक्त , धर्म , संप्रदा्य की श्रेषठता के बोध तले रिाह्मणवादी व्यवसथा का्यम थी , इसक्लए सामाक्जक , आक्थ्यक और धाक्म्यक क्वरमता बहुत बुरी तरह फैली हुई थी । ओबीसी समाज से जो ना्यक क्नकले , उन्होंने इस क्वरमता को तोडऩे के क्लए रिाह्मणवाद और सामंतवाद के क्खलाफ आवाज उठा्यी । चिूंक्क रिाह्मणवादी क्वचिारधारा की पोषक सामंतवादी व्यवसथा होती है , इसक्लए सामाक्जक क्वरमता को खतम करने के क्लए इसके क्खलाफ आवाज उठनी भी जरूरी थी । रिाह्मणवाद वर्ण व्यवसथा का समर्थन करने के साथ-साथ मनुष्य के ऊपर मनुष्य की श्रेषठता का समर्थन करता था और आदमी को आदमी से अलग करता था । इसी कारण धाक्म्यक , सामाक्जक और आक्थ्यक शोषण के क्खलाफ आंदोलन की जरूरत महसूस हुई ।
एक होता है राजनीक्तक आंदोलन और दूसरा होता है सांस्कृक्तक आंदोलन । राजनीक्तक आंदोलन सम्य-सम्य पर लोगों ने क्क्या । साहूजी महाराज ने क्क्या , पेरर्यार ने क्क्या और लोगों ने अपने-अपने सम्य पर आंदोलन चिला्या । आगे चिलकर डॉ . आमबेडकर ने
राजनीक्तक आंदोलन बहुत व्यापक रूप में पूरे देश में चिला्या । उत्रप्रदेश में भी आमबेडकर के आंदोलन का बहुत गहरा प्रभाव और प्रसार हुआ । शुरुआत में दक्लत आंदोलन और दक्लत साक्हत्य का ओबीसी के ना्यकों ने क्वकास क्क्या । इसे अगर देश के सतर पर देखें तो जोक्तबा फुले ओबीसी थे । साहूजी महाराज ओबीसी थे । पेरर्यार ओबीसी थे और उत्र भारत में ललईक्संह ्यादव , रामसवरूप वर्मा और सभी लोग दक्लत आंदोलन के मजबूत पक्धर थे । इन लोगों ने आंदोलन चिला्या और उसको आगे बढ़ाया । इन्होंने दक्लतों की समस्याओं और समाज में उनकी स्थिति को लेकर ना्टक क्लखे । आ्चि ्य की बात है क्क दक्लत इनके महतव को मानते हैं , लेक्कन ओबीसी के लोग जानते ही नहीं क्क रामसवरूप वर्मा ्या ललईक्संह ्यादव की क्कताब क्या है ? इन लोगों ने दक्लतों के ना्यकों पर ना्टक क्लखे । ललई क्संह ्यादव ने पांचि ना्टक क्लखे , क्जनमें शमबूक वध और एकलव्य काफी प्रक्सद्ध हैं । इस तरह वचि्यसववादी व्यवसथा के क्खलाफ लंबा आंदोलन चिला है , बाद में लालू प्रसाद ्यादव , मुला्यम और मा्यावती ने इसका क्वकास क्क्या , लेक्कन बाद में ्ये लोग सत्ा की राजनीक्त करने लगे । ्यानी राजनेता से इतर ्ये लोग क्पछड़ों-दक्लतों के बीचि सामाक्जक परिवर्तनकारी राजनीक्त नहीं कर सके । इनकी राजनीक्त कुसजी तक सीक्मत हो गई ।
क्वरमता को क्म्टाने के क्लए जोक्तबा फुले और सावित्रीबाई फुले का ्योगदान अक्वसमरणी्य है । जोक्तबा फुले ने इन क्वरमताओं को लेकर एक क्कताब ‘ गुलामक्गरी ’ क्लखी , क्जसका अंग्ेजी में भी अनुवाद हो चिुका है । इस क्कताब में उन्होंने रिाह्मणवाद के क्खलाफ संघर्ष , सरिी क्शक्ा ,
क्कसानों और खेक्तहर मजदूरों , दक्मतों-दक्लतों , शोक्रतों को आवाज देने का काम क्क्या । फुले दंपत्ति के क्शक्ा खासकर सरिी क्शक्ा के क्लए ्योगदान को इसी से समझा जा सकता है क्क
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