क्द्या है । उसमें 15 अगसत एक सामात््य , बेरंग क्दन है । उसके बदले पूरे कैलेंडर में अनेक ईसाई क्वभूक्त्यों , त्योहारों और क्मशनरर्यों को सथान क्द्या ग्या । इस कैलेंडर में सवामी श्रद्धानंद तक
को सथान नहीं क्मला , जो दक्लतों के क्लए उतने ही बड़़े कम्योगी थे क्जतने डॉ . आंबेडकर । श्रद्धानंद को भूलकर क्वक्ल्यम कैरी जैसे उग् ईसाई-क्मशनरी की ज्यंती कैलेंडर में मौजूद देक्ख ग्यी । जाक्त-क्वमर्श , दक्लत-ओबीसी क्चिंता को ईसाई-धमरंतरण प्रचिार तथा दक्लतों के ' सशकतीकरण ' ्या ' रक्ा ' के नाम पर अंतरराषट्रीय
करू्टनीक्तक मंचिों को भारत-क्वरोधी बनाने की ऐसी खुली क्नश्चिंतता क्दखाती है क्क भारती्य राजनेता और बुक्द्धजीवी क्कतने गाक्िल ्या दुर्बल हैं । हमारे वामपंथी लेखकों और कुछ जाक्तवादी
परिकारों को सामने मुखौ्ट़े की तरह रखकर ्यह खुला क्हंदू-क्वरोधी , भारत-क्वरोधी घातक खेल चिल रहा है । ्यक्द क्चिंता की बात ्यह नहीं तो और क्या है ? ऐसे मंचि डॉ . आंबेडकर , भगवान बुद्ध ्या भगत क्संह का उप्योग क्सि्फ क्दखावे के क्लए कर रहे हैं । जैसे-जैसे उनकी ताकत बढ़ती जाएगी वे सबको क्कनारे करते जाएंगे ।
्यह सब डॉ . अंबेडकर की उस चिेतावनी को स्टीक क्दखाता है जो उन्होंने 1956 में बौद्ध-दीक्ा लेते हुए कही थी । उनके शबदों में , बौद्ध धर्म भारती्य संस्कृक्त का अक्भन्न अंग है और इसक्लए मेरा धमरंतरण भारती्य संस्कृक्त और इक्तहास को क्षति न पहुंचिाए , इसकी मैंने सावधानी रखी है । ्यह एक अत्यंत गंभीर संदेश था , क्जसमें सपष्ट कहा ग्या क्क ईसाइ्यत ्या इसलाम में धमाांतरण भारती्य संस्कृक्त और इक्तहास को चिो्ट पहुंचिाता है । आज देश-क्वदेश में अनेकानेक साधन-संपन्न और राजनीक्तक रूप से सक्रि्य ईसाई क्मशनरी संगठन दक्लत- क्वमर्श , दक्लत-शोध , दक्लत-एमपावरमें्ट आक्द में जमकर क्नवेश कर रहे हैं । उन्होंने अच्छे- अच्छे लेखकों , प्रवकताओं को अपने साधन- संपन्न अकादक्मक संसथानों से जोड़कर देश- क्वदेश में क्हंदू-क्वरोधी प्रचिार को जबर्दसत गक्त दी है । डॉ . आंबेडकर ने इसी को भारती्य इक्तहास और संस्कृक्त को क्षति पहुंचिाना समझा था । राजीव मलहोरिा की चिक्चि्यत पुसतक ' रिेक्करंग इंक्ड्या ..' में इसके सप्रमाण उदाहरण क्वसतार से क्मलते हैं । दक्लतों , वंक्चितों की पैरोकारी के नाम पर क्हंदू धर्म , समाज और भारत-क्वरोधी करू्टनीक्त खुलकर चिलाई जा रही है । धन , सुक्वधा और पद देकर ईसाई क्मशनरर्यों ने भारत के अनेक वामपंथी और दक्लत लेखकों , वकताओं को क्न्युकत कर क्ल्या है ताक्क उन्हीं के माध्यम से क्हंदू धर्म और भारत को कमजोर क्क्या जा सके ।
अभी सम्य है क्क हम जाक्त-क्वमर्श का सूरि अपने हाथों में लें । झूठ़े और राजनीक्त-प्रेरित प्रचिार का नोक््टस लें । अंतरराषट्रीय मंचिों पर क्मशनरर्यों के अक्भ्यान का मुंहतोड़ उत्र देना जरूरी समझें । अत््यथा श्रद्धानंद की तरह कल स्वयं डॉ आंबेडकर को भी गुम कर क्द्या जाएगा । केवल ' क्वकास ' और क्बजली-पानी सड़क पर केंक्द्रत राजनीक्त और घोषणा परिों का ्यह दुर्भाग्यपूर्ण पक् है क्क भारती्य समाज , संस्कृक्त और धर्म , सब कुछ को क्वदेक्श्यों और सांस्कृक्तक आरिमणकारर्यों के हाथों तोड़ने-मरोड़ने की खुली छू्ट दे दी गई है । �
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