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जाति विमर्श के बिखरे सूत्र
एस . शंकर
क्या
आप जानते हैं क्क भारत की जाक्त-क्वर्यक समस्या ्या परिघ्टना पर क्कतनी पुसतकें क्लखी जा चिुकी हैं ? एक अमेरिकी भारतक्वद् ने 5000 पुसतकों की सूचिी बनाई थी , जो भारती्य जाक्त्यों से संबंक्धत हैं । ्यह तो सन् 1946 तक की सूचिी है , अर्थात जब पुसतकों का प्रकाशन तकनीकी दृष्टि से एक लंबा , श्रमसाध्य काम होता था । अनुमान क्क्या जा सकता है क्क आज ्यक्द ऐसी सूचिी कोई बनाए तो वह संख्या क्या होगी । लग सकता है क्क हजारों अध्य्यन , अवलोकन , विश्लेषण आक्द के बाद जाक्त पर कहने , क्लखने के क्लए अब क्या बचिा होगा ? क्करंतु बात कुछ उल्टी ही है । न केवल जाक्त संबंधी चिचिा्य ्यथावत रुक्चि का क्वर्य है , बशलक क्दनों-क्दनों उसमें नए-नए लोग , संसथाएं और एजेंक्स्यां जुड़ रही हैं । जैसा पहले था , आज भी इनमें तीन-चिौथाई से अक्धक संख्या क्वदेक्श्यों की है , खासकर अमेरिकी ्यूरोपी्य लेखकों , संसथाओं की । एक नई बात ्यह जुड़ी है क्क अब जाक्त संबंधी लेखन और वाचिन बौक्द्धक , अकादक्मक का ्य के साथ-साथ सक्रि्य एशक्टक्वजम और करू्टनीक्त से भी जुड़ ग्या है । दक्लत ' एडवोकेसी ' और दक्लत ' मानवाक्धकार ' आज एक बड़़े अंतरराषट्रीय कारोबार के रूप में स्थापित हो चिुका है । ्यह दूसरी बात है क्क इस गंभीर अंतरराषट्रीय गक्तक्वक्ध में स्वयं भारती्य दक्लत लेखक और परिकार क्पछली पंक्तियों में ही कहीं पर हैं ।
वेंडी डोनीगर ने अपनी क्ववाक्दत पुसतक ' द क्हंदूज : एन अल्टरनेक््टव हिस्ट्ी ' और आमतौर पर अपनी पूरी इंडोलॉजी के संबंध में पूरी ठसक से कहा था क्क उनके क्लए भारती्य लेखक , क्वद्ान ्या आम लोग केवल ' नेक््टव इनफॉर्मर ' भर हो सकते हैं । उन तथ्यों की व्याख्या और क्नषकर्ष क्नकालने का अक्धकार क्हंदुओं का नहीं ,
बशलक वेंडी जैसे क्वदेक्श्यों का है । ठीक वही स्थिति अंतरराषट्रीय दक्लत-क्वमर्श और एशक्टक्वचम में भारती्य दक्लतों की है । उन्हें पद , सुक्वधाएं , क्वदेश-्यारिा और भाषण देने के क्नमंरिण आक्द खूब क्मलते हैं , लेक्कन इस घोक्रत-अघोक्रत शर्त पर क्क उन्हें एक दी गई ' लाइन ' को ही दुहराना है अथवा उसकी पुष्टि में ही सब कुछ कहना है । इस स्थिति को बड़ी आसानी से उन तमाम वेबसाइ्टों पर स्वयं देखा
डॉ . आंबेडकर के अधिकांश अनुयायी ही नहीं , बल्कि मायावती जैसे सभी प्मुख दलित नेता ईसाइयत से जोड़कर अपना कल्ाण नहीं देखते हैं । महाराष्ट्र में नव-बौद्ध अंबेडकरवादिययों में विपाश्शना जैसी बौद्ध-शिक्ा का आकर्षण बढा है । भारत में दलितयों और जाति-संबंधयों की व्याख्ा करने का काम किनके हाथयों में है , यह जानना भी कठिन नहीं ।
जा सकता है जो ' दक्लत-मुशकत ' के क्लए समक्प्यत हैं । डॉ . आंबेडकर के अक्धकांश अनु्या्यी ही नहीं , बशलक मा्यावती जैसे सभी प्रमुख दक्लत नेता ईसाइ्यत से जोड़कर अपना कल्याण नहीं देखते हैं । महाराषट् में नव-बौद्ध अंबेडकरवाक्द्यों में क्वपा्शना जैसी बौद्ध-क्शक्ा का आकर्षण बढ़ा है । भारत में दक्लतों और जाक्त-संबंधों की व्याख्या करने का काम क्कनके हाथों में है , ्यह
जानना भी कक्ठन नहीं ।
उदाहरण के क्लए 2014 में एक प्रमुख ' बहुजन-दक्लत-ओबीसी ' क्वमर्श पत्रिका ने नए साल का अपना कैलेंडर प्रकाक्शत क्क्या । इसमें सरसवतीपूजा , रामनवमी , ककृषणाष्टमी , दुर्गापूजा तथा दीपावली ही नहीं , देश के गणतंरि क्दवस और सवतंरिता-क्दवस तक को क्नष्कासित कर
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