सवाल ्यह है क्क पागल के हाथ माक्चिस क्कसने दी ? ब्रायन और महुआ की हां में हां क्मलाने का काम तथाकक्थत बुक्द्धजीवी और क्लबरल परिकार भी उतसाह से कर रहे हैं । एक ने तो ट्वीट भी कर क्द्या , जैसी करनी वैसी भरनी । जब लानत- मलानत हुई तो सफाई दी क्क इतने बजे मेरा एकाउं्ट हैक हो ग्या था । ्यह कोई नई-अनोखी
बंगाल के मीक्ड्या को तो इस तरह की क्हंसा को नजरअंदाज करने में महारत हाक्सल है । ्याद करें क्क जब मालदा , बशीरहा्ट , आसनसोल की क्हंसा का देश भर का
बात नहीं । इस तरह के लोग होते हैं और आगे भी रहेंगे । उन्हें और खासकर लेफ्ट-क्लबरल ततवों को क्वपरीत क्वचिार वालों का दमन आनंक्दत करता है । वे अंध समर्थन ्या अंध क्वरोध में अपनी ही क्वचिारधारा के बंधक होते हैं और कहीं कोई क्कतना भी गलत काम हो , उसे सीधे-सीधे ्या क्िर क्कत्तु-परंतु के साथ जा्यज ठहराते हैं । क्वडंबना ्यह क्क ऐसे बुक्द्धजीक्व्यों , परिकारों से लोग अपेक्ा कर रहे हैं क्क वे बंगाल की क्हंसा पर कुछ बोलते क्यों नहीं ? भला वे क्यों बोलेंगे ? वे तो ऐसा ही कुछ होते हुए देखना चिाहते थे ।
इसकी भी अनदेखी न करें क्क मीक्ड्या के एक क्हससे को बंगाल में राजनीक्तक और सांप्रदाक््यक क्हंसा कभी नजर ही नहीं आती ।
मीक्ड्या संज्ञान ले रहा था , तब बंगाल का मीक्ड्या मौन था । बंगाल का परंपरागत मीक्ड्या एक अससे से इस पर बहस कर रहा है क्क हमें क्हंसा और खासकर राजनीक्तक- सांप्रदाक््यक क्हंसा की खबरें देनी चिाक्हए ्या नहीं ? वह बार-बार इसी नतीजे पर पहुंचिता है क्क नहीं , ऐसा नहीं करना चिाक्हए । ्यही कारण है क्क कोलकाता के बगल में भ्यानक क्हंसा होती है , लेक्कन कोलकाता के ही बड़़े अखबारों में उसके बारे में एक पंशकत का समाचिार नहीं होता ।
इसमें संदेह है क्क बंगाल की राजनीक्तक क्हंसा थमेगी , क्योंक्क एक तो तृणमूल को वह क्दख ही नहीं रही और दूसरे , उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्क क्जन दलों के का ्यकर्ता मारे-पी्ट़े जा रहे हैं उनका राषट्रीय नेतृतव क्या कह रहा है ? तृणमूल कांग्ेस की समझ से क्वरोधी दलों के नेता अपनी हार के बाद बंगाल को बदनाम करने का काम कर रहे हैं । हालांक्क
कांग्ररेसी का ्यकर्ता भी तृणमूल की क्हंसक भीड़ का क्शकार बन रहे हैं , लेक्कन उनकी हालत इसक्लए सबसे द्यनी्य है , क्योंक्क राहुल गांधी इससे खुश हैं क्क ममता ने भाजपा को हरा क्द्या । राहुल गांधी , शक्श थरूर जैसे कांग्ेसी नेताओं के साथ-साथ लेफ्ट-क्लबरल क्बरादरी के क्लए ममता की जीत ही लोकतंरि की सच्ी जीत है । ्यह क्बरादरी बंगाल में ममता की जीत के साथ ही उन्हें राषट्रीय राजनीक्त के क्लए उप्युकत चिेहरा बताने में जु्ट गई है । हो सकता है क्क ममता वाकई राषट्रीय राजनीक्त में सक्रि्य होने की कोक्शश करें , लेक्कन बंगाल को तबाह होने से कोई नहीं रोका सकता-शा्यद सुप्रीम को्ट्ड भी नहीं ।
्यक्द सुप्रीम को्ट्ड अपने सतर पर बंगाल की क्हंसा का संज्ञान लेता भी है तो लेफ्ट-क्लबरल क्बरादरी उस पर वैसे ही ्टू्ट पड़़ेगी , जैसे तृणमूल का ्यकर्ता अपने क्वरोक्ध्यों पर ्टू्ट पड़़े हैं । क्न : संदेह ममता चिुनाव बाद की क्हंसा को रोक सकती थीं , लेक्कन तब , जब इसमें उनकी कोई क्दलचिसपी होती । अगर उनकी क्दलचिसपी होती तो बंगाल में खेला होबे के बाद इतना खुलकर खून-खराबा नहीं होता और न ही रकतरंक्जत बंगाल कलंक्कत हो रहा होता ।
( साभार ) ebZ 2021 Qd » f ° f AfaQû » f ³ f ´ fdÂfIYf 23