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मनुस्मृति और वेद में शूद्र

डॉ क्ववेकआर्य

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रत में प्राय : लोग सोशल मीडिया का प्रयोग सार्थक संवाद के सिान पर बरगलाने के लिए प्रयोग करते है । ऐसा ही एक वीडियो इन दिनों सोशल मिडिया में वायरल हुआ है । इसमें एक युवती को मनुस्मृति जलाकर उससे सिगरे्ट पीते हुए दिखाया गया है । वेद और मनुस्मृति के नाम पर बरगलाने वालों ने न कभी इनहें पढ़ा , न चिंतन किया । बस मकखी पर मकखी मार रहे हैं । वेदों में शूद्र को कहीं भी अपमानजनक रूप में प्रयोग नहीं किया गया हैं । न ही ब्ाहण-शूद्र आदि वणषों को जनम से माना गया हैं । अपितु गुण-कर्म और सवाभाव से किसी भी मनुषय के वर्ण का चयन होने का विधान बताया गया हैं । ब्ाहण वो है जो शिक्ा प्रासपत के पशचात ज्ानवान बने जबकि शूद्र वो है जो सिखाने पर भी सिखने में असफल रहे । पूरे संसार में विद्ा पूर्ण होने के पशचात ही डिग्ी प्रदान की जाती हैं । ऐसे ही वर्ण का चयन भी शिक्ा प्रासपत के पशचात ही होता हैं । जो लोग कहते है कि वर्ण वयवसिा को समापत कर दो । वे यह नहीं देख पाते कि समाज
वेदों में ब्ाह्मण और शूद्र विषयक विचार
वेदों में ‘ शूद्र ’ शबद लगभग बीस बार आया है । कही भी उसका अपमानजनक अिषों में प्रयोग नहीं हुआ है और वेदों में किसी भी सिान पर शूद्र के जनम से अछूत होने , उनहें वेदाधययन से
वंचित रखने , अनय वणषों से उनका दर्जा कम होने या उनहें यज्ालद से अलग रखने का उललेख नहीं है ।
-हे मनुषयों ! जैसे मैं परमातमा सबका कलयाण करने वाली ऋगवेद आदि रूप वाणी का सब जनों के लिए उपदेश कर रहा हूँ , जैसे मैं इस वाणी का ब्ाहण और क्लत्यों के लिए उपदेश कर रहा हूँ , शूद्रों और वैशयों के लिए जैसे मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिनहें तुम अपना आतमीय समझते हो , उन सबके लिए इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिसे ‘ अरण ’ अर्थात पराया समझते हो , उसके लिए भी मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ , वैसे ही तुम भी आगे आगे सब लोगों के लिए इस वाणी के उपदेश का कम चलते रहो । [ यजुवजेद 26 / 2 ]।
-प्रार्थना है की हे परमातमा ! आप मुझे ब्ाहण का , क्लत्यों का , शूद्रों का और वैशयों का पयारा बना दें [ अथर्ववेद 19 / 62 / 1 ]। इस मंत् का भावार्थ ये है कि हे परमातमा आप मेरा सवाभाव और आचरण ऐसा बन जाये जिसके कारण ब्ाहण , क्लत्य , शुद्र और वैशय सभी मुझे पयार करें ।
-हे परमातमन आप हमारी रुचि ब्ाहणों के प्रति उतपन्न कीजिये , क्लत्यों के प्रति उतपन्न कीजिये , विषयों के प्रति उतपन्न कीजिये और शूद्रों के प्रति उतपन्न कीजिये । [ यजुवजेद 18 / 46 ]। मंत् का भाव यह है कि हे परमातमन ! आपकी ककृपा से हमारा सवाभाव और मन ऐसा हो जाये की ब्ाहण , क्लत्य , वैशय और शुद्र सभी वणषों
के लोगों के प्रति हमारी रूचि हो । सभी वणषों के लोग हमें अचछे लगें , सभी वणषों के लोगों के प्रति हमारा बर्ताव सदा प्रेम और प्रीति का रहे ।
-हे शत्ु विदारक परमेशवर मुझको ब्ाहण और क्लत्य के लिए , वैशय के लिए , शुद्र के लिए और जिसके लिए हम चाह सकते हैं और प्रतयेक विविध प्रकार देखने वाले पुरुष के लिए प्रिय करे । [ अथर्ववेद 19 / 32 / 8 ]।
-पुरुष सूकत जातिवाद का नहीं अपितु वर्ण वयसिा के आधारभूत मंत् हैं जिसमे “ ब्ाहणोसय मुखमासीत ” ऋगवेद 10 / 90 में ब्ाहण , क्लत्य , वैशय और शुद्र को शरीर के मुख , भुजा , मधय
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