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अवसरवादी राजनीति और सत्य इतिहास
डॉ क्ववेक
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मा कोरेगांव की घ्टना को कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी लोग दलित और आदिवासियों पर हुए अतयाचार के विरुद्ध संघर्ष के रूप में दर्शाने का प्रयास कर रहे है । सतय यह है कि हमारे देश की कुछ विभाजन कारी मानसिकता को बढ़ावा देने वाली ताकतें अपना राजनीतिक भविषय बनाने के चककर में देशवासियों को भड़काने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं । इसके लिए चाहे उनहें कोरेगांव की घ्टना का सहारा लेना पड़े । चाहे मनुस्मृति और ब्ाहणवाद का जुमला उछालना पड़े । उनके इस दुषप्रचार से कुछ दलित और आदिवासी ( वनवासी ) क्ेत्ों में रहने वाले युवा भ्रमित हो जाते हैं । भ्रमित युवाओं को न सतय का ज्ान होता है , न ही उनहें इसे जानने का अवसर प्रापत होता हैं । कोरेगांव युद्ध में बलिदान हुए महार समाज के कुछ सिपाहियों की वीरता में अंग्ेजों ने स्मृति सतमभ बनवा दिया था । इस युद्ध में अगर अंग्ेजों की ओर से अंग्ेज सिपाही , महार सिपाही , राजपूत और ब्ाहण तक लड़े थे । तो मराठा पेशवा की ओर से मराठा , राजपूत , मुससलम , गोसाईं , महार , मतंग और मंग जैसी दलित जातियों के लोग भी लड़े थे । अंग्ेजों की सेना में अगर महार अलग्म ्टुकड़ी में थे तो मराठा सेना की अलग्म पंसकत में मुससलम सिपाही सबसे अधिक थे । तो कया कोई इसे दलित-मुससलम युद्ध कहेगा ? नहीं । कभी नहीं । फिर यह दुषप्रचार कयों कि कोरेगांव की घ्टना दलित महारों की ब्ाहण पेशवाओं पर जीत थी । यह युद्ध तो अंग्ेजों और भारतीयों के मधय हुआ युद्ध था । ब्रिटिश काल में ऐसे अनेक युद्ध और संघर्ष हुए जिसमें अंग्ेजों ने भारतीयों का बड़े पैमाने पर दमन किया था । हम
इस लेख में इतिहास में आदिवासी क्ेत् में हुए तीन संघर्ष गाथाओं के माधयम से यह सनदेश देना चाहेंगे कि अंग्ेजों का दमन की घ्टनाओं को जो लोग भुलाकर भारतीय समाज को सवर्ण और दलित / आदिवासी के रूप में लचलत्त करने का प्रयास कर रहे हैं । उनका यह षड़यंत् असफल हो जाये । कयूंलक उनकी सोच केवल विघ्टनकारी है । सतय इतिहास पर आधारित नहीं है ।
1 . बिरसा मु ंडा का बलिदान
बिरसा मुंडा 19वीं सदी के एक प्रमुख आदिवासी जननायक थे । उनके नेत्रत्व में मु ंडा आदिवासियों ने 19वीं सदी के आखिरी वषषों में मुंडाओं के महान आनदोलन उलगुलान को अंजाम दिया । बिरसा को मुंडा समाज के लोग भगवान के रूप में पूजते हैं । सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत् बिरसा मुंडा का जनम 15 नवमबर 1875
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