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दलितोद्ार के लिए अपने प्राण न्ोछावर
डॉ क्ववेक आर्य
करने वाले हुतात्ा वीर मेघराज जी oh
र मेघराज जी सवामी दयानंद की उसी शिषय परमपरा के अनमोल रत्न थे जो दलितौद्धार जैसे पलवत् कार्य के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं ह्टे . सवामी दयानंद द्ारा जातिवाद के उनर्मुलन एवं पिछड़े और निर्धन वर्ग के उद्धार के सनदेश को हजारों आयषों ने समपूण्व देश में घर घर पहुचायाँ . अनेक कष्ट सहते हुए भी , अनेक प्रकार के दुखों को सहते हुए भी इस पलवत् यज् में अपने प्राणों की आहुति देने वाले आयषों में वीर मेघराज का नाम विशेष सिान रखता हैं . आपका जनम १८८१ में इंदौर के नारायणगढ़ में एक सवण्व जा्ट परिवार में हुआ था . बचपन से पौराणिक संसकारों में पले बढे मेघराज की जिज्ासु प्रव्रलत थी . एक वर्ष आपके क्ेत् में आर्यसमाज के प्रचारक शी विनायकराव जी का आगमन हुआ . विनायक जी ने अनधलवशवास , सच्चे ईशवर की भसकत , जातिवाद उनर्मुलन आदि का प्रचार किया तो अज्ानी पौरानिकों ने उन पर ई्ट पतिर आदि से वर्षा कर उनहें घायल करने की कोशिश करी . मेघराज का इस अमानवीय वयवहार से ह्रदय परिवर्तन हो गया और वे समाजसेवी और तपसवी विनायक राव को अपने घर ले आए . उनकी सेवा करी , उनसे वार्तालाप किया , शंका समाधान किया . उनसे प्रेरणा पाकर मेघराज जी ने सवामी दयानंद के ग्ंिों का सवाधयाय किया और सैद्धांतिक रूप से अपने को सम्रद्ध कर आप सच्चे आर्य और वैदिक धमटी बन गए .
अब मेघराज जी दीन दुखियों , दलितों और अनाथों की सेवा और रक्ा में सदा ततपर रहने लगे . इस कार्य के लिए आप मपने मित्ों के साथ
कोसों दूर दूर तक प्रचार करते थे . सन १९३८ में इंदौर के महाराज ने अपने राजय के सभी दलितों को मंदिर में प्रवेश देने की साहसिक घोषणा कर दी . इस घोषणा से अज्ानी पौराणिक समाज में खलबली मच गई . पोंगा पंडितों ने घोषणा कर दी की वे किसी भी दलित को किसी भी मंदिर में प्रवेश नहीं करने देंगे . उनके प्रतिरोध से राजकीय घोषणा कागजों तक सिमित रह गई .
वीर मेघराज से यह अनर्थ न देखा गया . करुणासागर दयालु दयानंद का शिषय मेघराज दलितों को समान नागरिक अधिकार दिलवाने के लिए ततपर हो उठा .
उनहोंने दलित बंधुयों में घोषणा कर दी की में आपको आपका अधिकार दिलाने के लिए आगे लगूंगा आप मेरे साथ मंदिर में प्रवेश करना . जो कोई मुझे या आपको रोकने की कोशिश करेगा उसे में इंदौर नरेश के पास ले जाऊँगा . वीरवर की हुंकार से पौराणिक दल में शोर मच गया . वे मेघराज को कष्ट देने के लिए उनके पीछे लग गए .
मेघराज किसी कार्य से जंगल में गए तो उनहें अकेले में घेर लिया और लाठियों से उन
पर वार कर उनहें घायल अचेत अवसिा में छोड़कर भाग गए . जैसे ही यह समाचार उनकी पत्नी और मित्ों को मिला तो वे भागते हुए उनके पास गए . वीर मेघराज को अपनी अवसिा पर तनिक भी दुःख नहीं हुआ . उनहोंने यहीं अंतिम सनदेश दिया की “ भगवान इन भूले भ्टके लोगों की ऑंखें खोलें . यह सुपथगामी हो और आर्य जाति का कलयाण हो ” इतना कहकर सदा सदा के लिए अपनी ऑंखें मूंदकर अमर हो गए .
उन समय आर्य मुसाफिर आदि पत्ों में उनकी पत्नी का यही सनदेश छपा की अपने पति की म्रतयु के पशचात भी वे दलितोद्धार जैसे पलवत् कार्य से पीछे नहीं ह्टेंगी . सरकार ने कुछ लोगों को दंड में जेल भेज दिया . कुछ काल बाद वे आर्यसमाज के साथ मिलकर वीर मेघराज के अधुरें कायषों में लग गए . जिनहें मेघराज जीते जी न बदल सके उनहें उनके बलिदान ने बदल दिया .
वीर मेघराज के बलिदान पर हमे एक ही सनदेश देना चाहते हैं -
आज भी उनकी मुहबबत कौम के सीने में
हैं . मौत ऐसी हो नसीबों में तो कया जीने में हैं ..
28 ekpZ 2023