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के बाद सारा समय मेघों में प्रचार करने में लगाते थे । आधी रात तक पहाड़ी इलाकों में घूमना , उनहें पढ़ाना , उनके दुःख दर्द में ससममलित होना , बीमारों को दवा देना , यह उनका नितय का काम था ।
जनमालभमानी जन मेघ बालकों का पाठशाला में पढ़ाना बर्दाशत न कर सके , उनहोंने अफसरों को शिकायतें भेजीं । मुसलमानों को उकसाया । वयाखयानों में विरोध किया । एक बार कुछ लोग रामचनद्र जी के मकान पर लाठी लेकर चढ़ आये परनतु पुलिस के पहुंच जाने से दंगा न कर सके । अनत १९२२ की जुलाई में हिनदू बिरादरी ने आर्यसमाजियों का बाईका्ट कर दिया । लगातार चौबीस दिन के बाईका्ट बाद रामचनद्र जी की अनुपससिलत में आयषों ने अफसरों के दबाव पर यह समझौता कर लिया कि हिनदू मुसलमानों की शिकायत को धयान में रखते हुए कि मेघ बच्चों के नगर में पढ़ाने से भ्रष्ट होने का डर है , इसलिए बससतयों से दूर पाठशाला खोली जायेगी । जब रामचनद्र जी अखनूर वापिस आये और यह समाचार सुना तो मानने से इनकार कर दिया । गवर्नर , वजीर , वजारत से बहुत दिनों तक इस समबनध में पत् वयवहार होता रहा । रामचनद्र जी की निःसवाि्व सेवा से मेघ लोग उन पर मोहित हो गये । सबकी जिह्ा पर उनका नाम था । यह भी महाजन होते हुए भी प्रेमवश अपने को मेघ कहते थे ।
इनकी प्रबल इचछा थी कि पाठशाला का अपना निजी मकान बनाया जाये । इसके लिये उनके शद्धावान् भगत मेघपंडित रूपा और माई मौली ने अपनी खेती की जमीन दे दी । इस पर सरकारी कारिनदों ने और हिनदू मुसलमानों ने उन पर बड़ा दबाव डाला । परनतु वे अपनी बात पर अ्टल रहे । इसके बाद खजाञ्ी जी ने इमारत के लिए अपील छापी । १९२२ में बड़े समारोह से वेदमसनदर का प्रवेश संसकार हुआ । सब रुकाव्टों को पार करके अनत में पाठशाला खुल गई । इससे मेघों के हौसले बढ़ गये । एक सफलता दूसरी सफलता के लिए भूमि तैयार कर देती है । वीर रामचनद्र को आस - पास के
गांवों में जमीन के वायदे और पाठ शाला खोलने के निमनत्ण मिलने लग गये । इतने में उनहें जममू में तबदील कर दिया गया । उनहोंने अपने कार्य को पूरा करने के लिए चार मास की अवैतनिक छुट्टी ले ली ।
अखनूर से चार मील दूर ब्टौहड़ा के मेघों ने भी उनहें बुला भेजा । आप १९७६ वि० तदनुसार ३१ दिसमबर १९२२ ई ० को कुछ आयषों और विद्ालि्वयों के साथ ओ३म् का झणडा लिये और गीत गाते ब्टौहड़ा पहुंचे । विरोधी दल उनहें देख भड़क उठा । उसने इनका अपमान किया । गालियां दीं , झणडा छीन लिया , और हवनकुणड
तोड़ दिया । इससे उस दिन का काय्वकम पूरा न हो सका । सारे इलाके में यह समाचार शीघ्र ही फैल गया । रामचनद्र जी इस घ्टना से निराश नहीं हुए । उनहोंने २ माघ ( ४ जनवरी १९२३ ) को पाठशाला खोलने का दिन नियत कर दिया ।
लाहौर से उपदेशक भी बुला लिया उधर मेघोद्धार से तपतहृदय राजपूतों ने रामचनद्र जी को इसका मूलकारण समझ कर उनके वध का षड्यनत् किया । दो माघ के दिन दंगल के बहाने उनहोंने लोगों को बुलाया । नियत दिन जममू से भी रामचनद्र , लाला भगतराम , लाला दीनानाथ , लाला अननतराम , ओमप्रकाश और सतयािटी यह सज्जन ब्टौहड़ा चले । वह दो मील था । रासते में आययोपदेशक सावनमल जी की पार्टी से मिले । उनहोंने सूचना दी कि ससिलत खतरनाक है । राजपूत भड़के हुए हैं , अतः वापिस चलना चाहिये ।
यह विचार करने पर सब लौ्ट चले । राजपूतों को इनकी वापिसी की सूचना मिलते ही एक भकतू नामक वयसकत की कमान में कुछ
मुसलमान गूजर और डेढ़ सौ राजपूतों ने सवार और पैदल दौड़कर पीछे से हलला बोल दिया । सबकी जबान पर ' खजानची को मारो ' का नारा था । शी भगतराम जी उनकी रक्ा के लिये बढ़े तो उन पर भी अनगिनत लाठियां बरसीं । लाठी की वर्षा से शेष भी नहीं बचे । रामचनद्र जी को अनत में वह लोग लोहे के हथियार से जखमी करके बेहोश छोड़ कर भाग गये ।
रामचनद्र जी को उसी रात राजकीय हसपताल में पहुँचाया गया । वहां छः दिन बेहोश रहकर ८ माघ १९७६ वि ० ( २० जनवरी १९२३ ) की रात को ११ बजे यह वीरातमा सवग्व २६ वर्ष की
लाहौर से उपदेशक भी बुला लिया उधर मेघोद्ार से तप्तहृदय राजपूतों ने रामचन्द्र जी को इसका मूलकारण समझ कर उनके वध का षड्यन्त्र किया । दो माघ के दिन दंगल के बहाने उन्ोंने लोगों को बुलाया । नियत दिन जम्ू से भी रामचन्द्र , लाला भगतराम , लाला दीनानाथ , लाला अनन्तराम , ओमप्काश और सत्ाथथी यह सज्जन बटौहड़ा चले ।
आयु को प्रयाण कर गया । आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब ने इनकी स्मृति को सिायी रखने के लिये एक रामचनद्र समारक समारक बनाया है ।
२- उनके लिये निःशुलक शिक्ा का प्रबनध करना ।
१- अछूतों की सामाजिक उन्नति करके उनहें सवणषों के बराबर सिान प्रापत कराना । ३ – उनमें धर्मप्रचार करवाना । ४-- अछूतों के अनदर आतमसममान के भाव
उतपन्न करना ।
रामचनद्र के नाम पर जहाँ यह महाधन हुए थे यह सभा प्रतिवर्ष एक मेला लगाती है । आर्यसमाज के पररशम और महाराजा हरिसिंह जी की उदारता से यह कार्य अब तक जममू में हो रहा है । आरमभ से इसके अधिषठाता शी अननतराम जी हैं । जहाँ इनका समारक लगा है वहां अब कुआं बन गया है । अखन्नूर को जाने वाली पककी सड़क बन गई है । कुछ मकान बन गये हैं सुनदर बगीचा है । यह नहर के किनारे एक मनोहर सिान है । �
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