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इसतेमाल किया गया । इससे समाज में निराशा और असंतुष्टि का भाव ही पैदा हुआ । लेकिन प्रचलित वयवसिा को विकासातमक शासन के नए मंत् से जो चुनौती मिली , उससे राजनीति का प्रयोग विकास के द्ारा , विकास के लिए और विकास के माधयम से सर्वत् कलयाण का नया सिद्धांत भी सामने आया । प्रधानमंत्ी मोदी ने जन-जन के जीवन में सकारातमक बदलाव लाने वाली वाली वयवसिा की नींव रखने के लिए राजनीति के विकास की भूमिका को को नए ढंग से प्रसतुत किया । अर्थशासत् की भाषा में विकास के इस मॉडल के लिए मूलय सतर पर परिवर्तन की अपेक्ा प्रति वयसकत आय में निरंतर व्रलद्ध की आवशयकता है , जिससे अंतिम पंसकत में खड़े समाज के आर्थिक एवं सामाजिक वर्ग तक
विकास का लाभ पहुंच सके । प्रश् यह है कि ऐसे मॉडल को विशव के उन विकसित राषट्ों ने कभी कयों नहीं अपनाया और इस विषय पर धयान देने की आवशयकता कयों नहीं महसूस की ?
पूरे विशव में गरीबी , जातिवाद , नसलवाद को देखा जा सकता है । विशव के विकसित राषट् जो यह दावा करते हैं कि वह दुनिया में सबसे जयादा विकसित राषट् हैं , तो उनके यहां गरीबी और नसलवाद की समसया कयों गंभीर बनी हुई है । वर्तमान समय में सामाजिक विषमता को मानवता के समक् एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है । सामाजिक विषमताओं को समापत करने के समसत प्रयास आशा से अधिक लनषप्रभावी सिद्ध हुए हैंI जातिवाद , प्रजाति एवं
आर्थिक वर्गवाद की विभीषिका में समपूण्व विशव जल रहा है । भारत में जातिवाद उनमूलन के लिए संवैधानिक प्रावधान किये गए । अमेरिका में प्रजातिवाद उनमूलन के लिए प्रजाति आधारित भेदभाव को असंवैधानिक घोषितकर अशवेतों को मताधिकार दिया गया । इसी प्रकार आर्थिक भेदभाव समापत करने के लिए कार्ल माकस्व के कमयुलनजम का सहारा लिया गया । किनतु इन तीनों प्रकार के भेदभाव पर पूर्णरूपेण नियंत्ण का प्रयास आज तक सफल नहीं हो पाया ।
प्रककृलत ने सभी मानवों को एक जैसा ही स्रलजत किया है और सभी को समान जीवन जीने का अधिकार भी दिया है । प्रककृलतजनय अधिकार की ऐसी प्रलकयाओं का अनुपालन वासतव में ठीक से नहीं किया गया । इसी कारण मानव समाज में उच्च-निम्न का जो विचार जनम लिया , उसने मानव-मानव के मधय भेदभाव को बढ़ाने का काम कियाI यूरोप , अमेरिका और अफीका में रंगभेद और आर्थिक भेदभाव ने सामाजिक एकीकरण और सामाजिक चिंतन की प्रलकया को बुरी तरह बाधित किया है और इस क्टु सतय को सवीकार करके विकास की नयी अवधारणाओं को सामने रखकर वाससतवक रूप से कार्य की करने की आवशयकता जी-20 समूह के राषट्ों के सामने यक् प्रश् है , जिस पर भी बैठक में विचार होना ही चाहिए ।
भारत में जातिवाद तो वैसशवक मानव समाज में प्रजातिवाद और धनी-निर्धन के आधार पर होने वाले भेदभाव का कोई वैज्ालनक आधार नहीं हैI यह भेदभाव असामानय ही कहा जाएगा कयोंकि इसके पीछे किसी भी तरह का न तो आधार है और न ही मानव समाज में इसकी मानयता हैI इस समसया से पूर्ण रूप से निप्टने के लिए वैसशवक इतिहास के इधर-उधर लछ्टके तथयों को श्रंखलाबद्ध करने का प्रयास होना चाहिए । वैसशवक इतिहास के प्रषठों पर दर्ज तथयों को मानस में रख यदि मानव समाज के तमाम कालखणडों की ्टू्टी-फू्टी श्रंखला को जोड़ा जाए तो मानव समाज में वयापत अनेकों कुप्रथाओं , कुरीतियों , कुसंसकारों के साथ ही मानव लोक जीवन में गहराई तक सिालपत कुछ
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