eMag_March2022_DA | Page 49

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उस चुनाव में 403 में 206 सीटें जीतीं और 30.43 प्रतिशत वोट हासिल किए । 2012 के विधानसभा चुनाव में वह 80 सीटों पर आ गई और उसका वोट प्रतिशत गिरगर 25.91 हो ग्या । सन् 2017 में उसदे मात् 19 सीटें मिलीं और वोट प्रतिशत गिरकर 22.2 प्रतिशत हो ग्या । एक हावल्या सिरे बताता है कि बसपा का वोट प्रतिशत इस सम्य 15 फीसद के आसपास रह ग्या है । वर्तमान में बसपा नदेतमृति की कस्वत और उपरो्त आंकड़़े साफ इंगित करतदे हैं कि बसपा का राजनीतिक-सामाजिक आधार तदेजी सदे खिसक रहा है । उसके बहुजन आधार का एक हिससा भारती्य जनता पाटटी की तरफ खिसक ग्या है । भाजपा की पूरी नजर इस सम्य दलित मतदाताओं को अपनदे पालदे में करनदे
पर है । वहीं , समाजवादी पाटटी पिछड़ी जावत्यों के साथ-साथ अति पिछड़ी जावत्यों के बीच अपना एक न्या राजनीतिक आधार मजबूत करती हुई दिख रही है ।
शीर्ष नेतृत्व पर सवाल !
कांशीराम नदे दलित जावत्यों , अति पिछड़़े िगषों , पिछड़़े िगषों की कुछ जावत्यों का एक सफल बहुजन गठबंधन बना्या था । उसमें मुकसलम भी शामिल ्दे । लदेवकन बाद के दौर में अति पिछड़ी जावत्यों और कुछ पिछड़ी जावत्यों के ताकतवर नदेता जो बहुजन आंदोलन का हिससा ्दे बाद में उसदे छोड़ गए । मा्यिाती के नदेतमृति में बसपा बहुजन जावत्यों के बीच संतुलन और उनहें एक साथ जोड़़े रखनदे में असफल रहीं ।
बसपा धीरदे-धीरदे दलितों में एक जाति विशदेर ्यानी जाटवों की पाटटी बनकर रह गई । मा्यावती नदे बसपा में दूसरी और तीसरी पंक्त के नदेताओं की जमीन तै्यार ही नहीं की । आज कांशीराम का शुरू वक्या दलित-बहुजन आंदोलन एक व्यक्त करेंवद्रत , एक परिवार करेंवद्रत और दलितों में भी सिर्फ एक जाति विशदेर तक करेंवद्रत होकर रह ग्या है । मा्यावती अगर कहती हैं कि उनकी पाटटी पूंजीपवत्यों और धन्नासदेठों की पाटटी नहीं है , तो आज चुनाव जिस हद तक बड़ी पूंजी का खदेल हो ग्या है उसमें उनकी ्यह बात समझ में आती है , लदेवकन बसपा का सामाजिक आधार कभी बड़ी पूंजी और मीवड्या के सहारदे नहीं बढ़ा है , तो ्यह बात भी समझनी होगी । बहुजन समाज के सश्तीकरण के मुद्दे क्या बसपा के
ekpZ 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 49