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राजनीतिक एजेंड़े में आज उतनी ही मुखरता और मजबूती सदे दिखाई ददेतदे हैं जिस तरह एक ि्त में हुआ करतदे ्दे ? दलित बस्तियों में छोटी-छोटी बैठकों का बसपा का जो परंपरागत तरीका था , क्या आज वह उसी मजबूती के साथ दिखाई ददेता है ? क्या पाटटी वंचित समाज तक पहुंच रही है ? सामाजिक और सांसकृवतक संगठनों की कमी कांशीराम नदे आंबदेडकर मदेलों , जन जागमृवत जत्ों , गीतों और नाटकों के जरर्यदे बहुजनों के बीच सांसकृवतक चदेतना निर्मित की थी , लदेवकन उस तरह की सांसकृवतक चदेतना के निर्माण के का्यनाक्रम क्या आज दिखाई ददेतदे हैं ? क्या बहुजन कर्मचारर्यों का एक सश्त संगठन वर्तमान बसपा नदेतमृति की प्राथमिकता में है ? दलित- बहुजन आंदोलन की विरासत को लदेकर चलनदे वाली बसपा नदे क्या कभी खदेत मजदूरों ( जिसमें अधिकांश दलित समुदा्य सदे आतदे हैं ) का कोई
सश्त और व्यापक संगठन खड़ा वक्या ? क्या दलित महिलाओं का संगठन बना्या ? क्या दलित बुद्धिजीवि्यों और लदेखकों का उसनदे कोई सांसकृवतक और वैचारिक संगठन खड़ा वक्या है ? बहुजन समाज के छात्ों का एक मजबूत संगठन भी बसपा के एजेंड़े में दिखाई नहीं ददेता है । महतिपूर्ण ्यह भी है कि बामसदेफ का क्या हुआ ? कांशीराम जब तक राजनीतिक रूप सदे सवक्र्य रहदे तब तक बामसदेफ की भी महतिपूर्ण भूमिका बनी रही । बामसदेफ बहुजनों के पढ़़े-लिखदे तबकों सदे न केवल बहुजन राजनीति को जोड़ता था , बकलक उसकी वैचारिकी का भी एक अहम हिससा था । अपनी तरह सदे वह बहुजन राजनीति के लिए ओपवन्यन मदेकर का काम भी करता था । नैरदेवटि बनानदे में उसकी भी अपनी एक भूमिका होती थी । लदेवकन मा्यिती के दौर में बामसदेफ पूरी तरह सदे नदेपथ्य में चला ग्या । कांशीराम नदे जब हिंदी पट्टी में बहुजन आंदोलन
को साकार वक्या तो वह कोई सामान्य राजनीतिक परिघटना नहीं थी । हालांकि उत्तर भारत में दलित आंदोलन की जमीन 1920 के दशक में तै्यार होनदे शुरू हो गई थी । उसका श्दे्य सिामी अछटूतानंद और उनके आदि हिंदू आंदोलन को जाता है । उस आंदोलन नदे शुरुआती तौर पर एक सांसकृवतक और वैचारिक जमीन तै्यार करनदे का काम वक्या था । उसके बाद बाबा साहदेब डॉ . बी . आर आंबदेडकर के नदेतमृति वाली रिपकबलकन पाटटी ऑफ इंवड्या नदे हिंदी पट्टी में कुछ काम वक्या , लदेवकन उसका प्रभाव कुछ क्षदेत्ों तक ही सीमित रहा । लदेवकन कांशीराम का बहुजन आंदोलन , जिसदे एक ‘ खामोश क्रांति ’ कहा ग्या , उसनदे सामाजिक , सांसकृवतक और राजनीतिक रूप सदे एक व्यापक असर पैदा वक्या । लदेवकन आज उस ‘ खामोश क्रांति ’ का वासति में खामोशी में तबदील होतदे जाना एक असामान्य परिघटना जरूर लगती है । �
50 दलित आं दोलन पत्रिका ekpZ 2022