eMag_March2022_DA | Page 48

fjiksVZ

जीतकर संसद पहुंची , तो उनहोंनदे संसद में दलितों की आवाज को मुखर वक्या । उस सम्य आगरा में दलित महिलाओं के साथ हुई बलातकार की एक घटना पर उनहोंनदे लोकसभा में जबरदसत प्रवतवक्र्या व्य्त की थी । लदेवकन हावल्या कुछ सालों में रीति — नीति और का्यनासंसकृवत पूरी तरह बदल और सिमट चुकी है । दलितों सदे जुड़़े अधिकांश मामलों में बहुत जरूरी होनदे पर ही वह एक-दो औपचारिक ब्यान ददेनदे के अलावा खामोश ही रहीं और पीड़ित परिवार सदे मिलनदे तक नहीं गईं । उनकी उस चुपपी सदे बसपा की राजनीतिक ्यात्ा में किस तरह के बदलाव आए हैं और आज वह किस मोड़ पर है , उसदे आसानी सदे समझा जा सकता है । कहा जाता है कि उनकी राजनीतिक सवक्र्यता में आई कमी का कारण
उन पर लगदे भ्रष्टाचार और आ्य सदे अधिक संपत्ति के आरोप हैं । क्या सिर्फ ्यही कारण है ्या फिर बहुजन आंदोलन के कमजोर पड़नदे के और भी कारण हैं ? बसपा के शुरुआती नारों – ‘ वोट हमारा , राज तुमहारा , नहीं चलदेगा , नहीं चलदेगा ’; ‘ वोट सदे लेंगदे पीएम / सीएम , आरक्षण सदे लेंगदे एसपी / डीएम ’; ‘ तिलक , तराजू और तलवार , इनको मारो जूतदे चार ’; ‘ ठाकुर , ब्ाह्मण , बवन्या छोड़ , बाकी सब हैं डीएस-4 ’ नदे बहुजनों के बीच बसपा की राजनीति के प्रति न्या आकर्षण पैदा वक्या था । जैसदे-जैसदे बसपा की राजनीतिक ्यात्ा बढ़ती गई , तो राजनीतिक समीकरणों के साथ-साथ नारदे भी बदलतदे गए । जैसदे- ‘ बवन्या माफ , ठाकुर हाफ , ब्ावह्मन साफ ’। ‘ हाथी नहीं गिदेश है , ब्ह्मा-विष्णु-महदेश ’
है । फिर , ‘ ब्ाह्मण शंख बजाएगा , हाथी दिलली जाएगा ’। लदेवकन आज न तो ब्ाह्मण बसपा के लिए शंख बजा रहा है और न ही हाथी में दिलली तो क्या लखनऊ जानदे की ही ताकत दिख रही है । सच तो ्यह है कि जिस बहुजन आंदोलन और उसकी राजनीति का कांशीराम नदे सपना ददेखा और उसदे हकीकत में बदला था , वह आज गहरी निराशा और बिखराव के रास्ते पर है ।
कमजोर पड़ती राजनीतिक जमीन
बसपा का राजनीतिक-सामाजिक आधार सिकुड़ रहा है । बसपा नदे उत्तर प्रददेश में 2007 में अपनदे दम पर सरकार बनाई और मा्यावती चौथी बार राज्य की मुख्यमंत्ी बनीं । बसपा नदे
48 दलित आं दोलन पत्रिका ekpZ 2022