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जो नई खिड़की खोली थी , वह 2022 तक आतदे-आतदे बंद-सी होती दिख रही है ।
गहरी निराशा और बिखराव के रास्ते पर बहुजन
आं दोलन कांशीराम नदे हिंदी पट्टी , खासकर उत्तर प्रददेश ,
में बहुजन आंदोलन के जरर्यदे एक बड़़े सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की जमीन तै्यार की । उनहोंनदे अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति , अन्य पिछड़़े िगषों और मुकसलम समुदा्य को लदेकर एक व्यापक गठबंधन की परिकलपना की और उसदे मूर्तरूप ददेनदे के लिए 1984 में बहुजन समाज पाटटी ( बसपा ) बनाई ।
बहुजन समाज के लोगों को जागरुक और शिक्षित करनदे के लिए आंबदेडकर मदेलों का आ्योजन करना , गीत और नाटकों के मंचन के जरर्यदे जन-चदेतना का प्रसार करना , साइकिलों पर सवार जागमृवत जत्ों की ्यात्ा निकालना , गांव-
गांव में दलित बस्तियों में छोटी-छोटी बैठकरें करना – ्यदे सब उस राजनीतिक , सामाजिक और सांसकृवतक परिवर्तन का हिससा ्दे जिसदे कांशीराम नदे शुरू वक्या था । हालांकि बसपा के निर्माण के पहलदे सदे ही कांशीराम डीएस-4
( दलित शोषित समाज संघर्ष समिति ) और बामसदेफ ( ऑल इंवड्या बै्िडटि एंड माइनॉरिटी कम्युनिटिज एमपलॉइज फेडरदेशन ) के जरर्यदे बहुजन आंदोलन की एक मजबूत नींव रखनदे का काम कर रहदे ्दे । इसमें कोई दो रा्य नहीं है कि बहुजन आंदोलन की उस ्यात्ा में कांशीराम के साथ एक मजबूत राजनीतिक सह्योगी के रूप में मा्यावती नदे कड़ी मदेहनत सदे बसपा के लिए जमीन तै्यार की । जब वह साइकिल सदे एक गांव सदे दूसरदे गांव घूम रही थीं और कांशीराम के बहुजन आंदोलन का संददेश फैला रही थीं , तो वह बहुजन समाज के भीतर एक नई उममीद भी जगा रही थीं । जब वह किसी गांव में पहुंचतीं और पूछती की कि क्या आप इस गांव में ्या आसपास के गांवों में एक भी दलित परिवार का नाम बता सकतदे हैं जो बीतदे चालीस िरषों में कांग्रेस सरकार की विभिन्न कल्याणकारी ्योजनाओं सदे सममृद्ध हुआ है , और आमतौर पर इसका उत्तर नहीं में ही होता था । तो वह पूछतीं कि फिर दलितों का 95 प्रतिशत वोट कांग्रेस को क्यों जाता है । ( इस वाक्यदे का जिक्र पैट्रिक फ्रेंच नदे अपनी किताब ‘ इंवड्या : अ प्रोट्ऱेट ’ में विसतार सदे वक्या है )। एक दौर में ्यह मा्यावती के ही शबद ्दे – किसी के सामनदे एक दलित का सिर झुके , मैं ्यह नहीं होनदे दूंगी । सन् 1989 में जब वह पहली बार लोकसभा का चुनाव
ekpZ 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 47