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रअसल भारत की सवद्यों पुरानी जाति व्यवस्ा और छुआछटूत जैसी कुप्रथाएँ ददेश में आरक्षण व्यवस्ा की उतपवत्त का प्रमुख कारण हैं । सरल शबदों में आरक्षण का अवभप्रा्य सरकारी नौकरर्यों , शैक्षणिक संस्ानों और विधाव्यकाओं में किसी एक वर्ग विशदेर की पहुँच को आसान बनानदे सदे है । इन िगषों को उनकी जातिगत पहचान के कारण ऐतिहासिक रूप सदे कई अन्या्यों का सामना करना पड़ा है ।
वर्ष 1882 में विवल्यम हंटर और ज्योतिराव फुलदे नदे मूल रूप सदे जाति आधारित आरक्षण प्रणाली की कलपना की थी । आरक्षण की मौजूदा प्रणाली को सही मा्यनदे में वर्ष 1933 में पदेश वक्या ग्या था जब ततकालीन वब्वटश प्रधानमंत्ी रैमसदे मैकडोनालड नदे सांप्रदाव्यक अवधवनिना्य वद्या । विदित है कि इस अवधवननना्यन के तहत मुसलमानों , सिखों , भारती्य ईसाइ्यों , एंगलो- इंवड्यन , ्यूरोपी्य और दलितों के वल्यदे अलग- अलग निर्वाचन क्षदेत्ों का प्रावधान वक्या ग्या । आज़ादी के पशचात् शुरुआती दौर में मात् एससी और एसटी समुदा्य सदे संबंधित लोगों के वल्यदे ही आरक्षण की व्यवस्ा की गई थी , किंतु वर्ष 1991 में मंडल आ्योग की सिफारिशों के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग ( ओबीसी ) को भी आरक्षण की सीमा में शामिल कर वल्या ग्या ।
नवंबर , 1992 को इंदिरा साहनी मामलदे में
आरक्षण का इतिहास विलियम हंटर और ज्ोवतराव फु ले ने 1882 में की आरक्ण की परिकल्पना
ओबीसी आरक्षण पर फैसला ददेतदे हुए सिवोच्च न्या्याल्य नदे पदोन्नति में एससी और एसटी समुदा्य को वद्यदे जा रहदे आरक्षण पर प्रश्नचिह्न लगातदे हुए इसदे पाँच वर्ष के वल्यदे ही लागू रखनदे का आददेश वद्या था । इंदिरा साहनी मामलदे में वनिना्य के बाद सदे ही ्यह मामला विवादों में है । वर्ष 1995 में संसद नदे 77वाँ संविधान संशोधन पारित कर पदोन्नति में आरक्षण को जारी रखा था इस संशोधन में ्यह प्रावधान वक्या ग्या कि करेंद्र सरकार और राज्य सरकारों को ्यह अधिकार है कि वह पदोन्नति में भी आरक्षण ददे सकती हैं ।
इसके बाद ्यह मामला फिर उच्चतम
न्या्याल्य में चला ग्या । तब न्या्याल्य नदे ्यह व्यवस्ा दी कि इस संदर्भ में आरक्षण तो वद्या जा सकता है , लदेवकन वरिष्ठता नहीं मिलदेगी । इसके पशचात् 85वाँ संविधान संशोधन पारित वक्या ग्या और इसके माध्यम सदे परिणामी ज्यदेष्ठता की व्यवस्ा की गई । लदेवकन पदोन्नति में एससी और एसटी की ततकालीन कस्वत नागराज और अन्य बनाम भारत सरकार वाद पर सिवोच्च न्या्याल्य के वर्ष 2006 के वनिना्य के पशचात् पुनः बदल गई ।
नागराज और अन्य बनाम भारत सरकार वाद में संसद द्ारा वक्यदे गए 77वें व 85वें संविधान संशोधनों को सामान्य वर्ग के अभ्यर्ना्यों द्ारा चुनौती दी गई । न्या्याल्य नदे अपनदे वनिना्य में इन संवैधानिक संशोधनों को तो सही ठहरा्या , किंतु पदोन्नति में आरक्षण के वल्यदे तीन मापदंड निर्धारित कर वद्यदे , जिनमें एससी और एसटी समुदा्य को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप सदे पिछड़ा होना चावह्यदे । सार्वजनिक पदों पर एससी और एसटी समुदा्य का प्यानापत प्रतिनिधिति न होना । इस प्रकार की आरक्षण नीति का प्रशासन की समग् दक्षता पर कोई प्रभाव नहीं पड़़ेगा ।
ततपशचात् वर्ष 2018 में जरनैल सिंह बनाम लक्मी नारा्यि गुपता वाद में उच्चतम न्या्याल्य नदे फैसला ददेतदे हुए कहा कि पदोन्नति में आरक्षण के वल्यदे राज्यों को एससी और एसटी के पिछड़़ेपन सदे संबंधित मात्ातमक ड़ेटा एकत् करनदे की आवश्यकता नहीं है । �
30 दलित आं दोलन पत्रिका ekpZ 2022