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दलितों के मुद्े हाशिए पर दलितों के भगवान जीवंत , नेतृत्व मृत ? दलित समाज के राजनैतिक नेतृत्व सवालों में

कार्तिकेय शर्मा

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त्तर प्रददेश की चुनावी मंथन सदे एक चीज़ साफ होती है कि भारत में दलित राजनीति बौद्धिक सतर पर सिमट कर रह ग्यी है । दलित राजनीति आज टीवी स्टूवड्यो , कक्षाओं , किताबों और एनजीओ सेक्टर तक सीमित है । उत्तर प्रददेश विधान सभा चुनाव में राजनीति हिंदुति की पिच सदे निकल कर पिछड़ी जावत्यों की पिच पर पहुंच ग्यी है लदेवकन इसमें दलित नदेतमृति गा्यब है । बात पिछड़ों की है लदेवकन दलित चदेहरदे नहीं है । घदेराबंदी अतिपिछड़ों को लदेकर है लदेवकन फैसलदे की ट़ेबल पर ्यदे ्या तो दिखतदे नहीं और होतदे हैं तो महज़ स्टेम की तरह । मा्यावती तथाकथित दलित नदेता हैं लदेवकन उनका प्रदर्शन पिछलदे 2 चुनावों में बहुत खराब रहा है । दलित मुद्ों पर उनहें कम ही बोलतदे सुना जाता है । उसके ऊपर कई पार्टि्यों का आरोप भी है कि वो जिस तरह सदे पकशचम उत्तर प्रददेश में विधान सभा के टिकट बांट रही हैं वो केवल बीजदेपी को फा्यदा पहुंचानदे के लिए वक्या जा रहा है ।
डॉ आं बेडकर की बौशधिक आलोचना बिना विवाद के
असंभव आज महातमा गांधी और जवाहरलाल नदेहरू
की आलोचना करना आसान है लदेवकन डॉ आंबदेडकर की बौद्धिक आलोचना बिना किसी
विवाद का हिससा बनदे नहीं हो सकता है । उनकी मूवतना्यां भारत के हर गांव में हैं लदेवकन उस गांव में दलित नदेतमृति नहीं होगा । सावरकर के ब्यानों को लदेकर भरी भरकम बहस हो जाती है लदेवकन डॉ आंबदेडकर के विचार पर कोई विवाद नहीं होता है । बीजदेपी भी अंबदेडकर के सामनदे नतमसतक है जबकि उनके विचार हिनदू धर्म पर आरएसएस और बीजदेपी सदे अलहदा ्दे । आज उत्तर प्रददेश में चंद्रशदेखर ्यानी रावण बहन मा्यावती के बाद दूसरदे दलित नदेता मानदे जातदे हैं लदेवकन उनकी पहली कोशिश समाजवादी पाटटी सदे गठबंधन की थी और दूसरी बीजदेपी को हरानदे की । लदेवकन उनकी ्योजना साकार नहीं हो सकी । पंजाब में चन्नी को कांग्रेस नदे दलित मासटरकार्ड की तरह सदे पदेश वक्या था लदेवकन उनकी खुद की राजनीति मुख्यमंत्ी बननदे सदे पहलदे दलित राजनीति सदे अलग थी । बीजदेपी , कांग्रेस , सपा , आरजदेडी , एलजदेपी में दलित नदेता हैं लदेवकन इनमें सदे कोई खुद को पूरदे उत्तर भारत का दलित नदेता नहीं कह सकता है । महाराष्ट्र में दलित राजनीति लदेफट पॉवलवट्स सदे जुड़ कर सीमित हो ग्यी है और बची खुची राजनीति को बीजदेपी नदे माओवाद का इलज़ाम लगा कर तिरसकृत कर वद्या है । आज़ादी के बाद डॉ आंबदेडकर को अपनदे राजनैतिक जीवन को ज़िंदा रखनदे के लिए काफी जद्ोजहद करनी पढ़ी थी । वो लोक सभा का चुनाव भी हार गए ्दे और बाद में बौद्ध धर्म अपना वल्या था । लदेवकन इस दौरान संविधान तै्यार करनदे के अलावा उनहोंनदे दलित राजनीति की वैचारिक और राजनैतिक पमृष्ठभूमि तै्यार की थी । लदेवकन डॉ आंबदेडकर के बाद इस पमृष्टभूमि पर काम कांशीराम नदे वक्या लदेवकन उसपर बौद्धिक तसदीक़ नहीं होती है । दलित समाज के पास आज़ादी के बाद सबसदे बड़ा
आइकॉन था । ओबीसी समुदा्य के पास साथ के दशक में चौधरी चरण सिंह , जैसदे बड़़े नदेता और राम मनोहर लोवह्या जैसदे विचारक मिलदे जिसके कारण उत्तर के राज्यों में न्या नदेतमृति पैदा हो पा्या ।
दलितों के नेतृत्व में ऊं ची जातियां आगे रहीं
लदेवकन दलित समाज में ऐसा नहीं हुआ । उनकी राजनीति बड़ी पार्टि्यों के भीतर सीमित रही । बीएसपी एक अपवाद है । कांग्रेस के बाद राष्ट्री्य सतर पर दलित वोट बीजदेपी में शिफट हुआ । 1980 तक कांग्रेस को दलितों का वोट ऊंची जावत्यों के साथ जाता रहा । दलितों के नदेतमृति में ऊंची जावत्यां आगदे रहीं । दलित राजनीति ददेश में आदिवावस्यों की तरह नदेतमृति में राजनैतिक विकलप नहीं बन पा्यी । विकलप के रूप में ओबीसी उभर आएं । पहलदे ओबीसी में डोमिनेंट ओबीसी नदे मलाई खाई जिसको लदेकर अब खासा बवाल मचा है । लदेवकन विकलप इनके हाथ सदे बाहर नहीं निकला क्योंकि अब राजनैतिक नदेतमृति की लड़ाई ओबीसी में साइज में छोटी और बड़ी जावत्यों के बीच ही हैं । ्यही कारण है कि ऊंची जावत्यों के दबदबदे के बाद अब भारत की राजनीति में ओबीसी का दबदबा है । 2022 में उत्तर प्रददेश के चुनाव में भी दलित नदेतमृति गा्यब है । बिहार विधानसभा चुनावों में भी दलित नदेतमृति गा्यब था । ्यही हाल ददेश के लगभग सभी राज्यों में हैं जहा दलित नदेतमृति के नाम पर केवल दलित मंत्ी हैं । चन्नी के चदेहरदे को दलित मुख्यमंत्ी के नाम पर बदेचा जा रहा है लदेवकन कांग्रेस नदे पंजाब में पांच साल के का्यनाकाल में दलित समाज के हित को ध्यान में रखकर क्या और कितना काम वक्या इसके बारदे में चुपपी है , खामोशी है । �
ekpZ 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 31