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िदेिुगोपाल , अतिरर्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह और कई अन्य वरिष्ठ वकीलों को राज्यों और सरकारी कर्मचारर्यों की ओर सदे बहस की सुनवाई की थी । प्रतिनिधिति की प्यानापतता कैसदे निर्धारित की जानी चाहिए , क्या ्यह विभिन्न जावत्यों की जनसंख्या प्रतिशत के अनुपात में निर्धारित वक्या जाना चाहिए , क्या ए और बी श्रेणि्यों में उच्च पदों पर आरक्षण होना चाहिए , क्या आरक्षित श्रेणी का कोई व्यक्त प्रिदेश सतर में ्योग्यता के आधार पर वन्यु्त वक्या ग्या है , पदोन्नति आदि में आरक्षण का हकदार होगा ्या नहीं , इन मुद्ों को सुनवाई के दौरान उठा्या ग्या था । अटॉनटी जनरल नदे रा्य दी थी कि ्याचिकाओं के मौजूदा बैच में न्या्याल्य के विचार के लिए जो मुद्दे उठ़े ्दे , िदे है प्यानापत प्रतिनिधिति के लिए मात्ातमक ड़ेटा पर पहुंचनदे के लिए अपनाए जानदे वालदे मानदंड , क्या कैडर को एक इकाई के रूप में वल्या जाना चाहिए , प्रशासन की ‘ दक्षता ’ के मानदंड का निर्धारण और क्या न्या्याल्य द्ारा जारी किए गए विभिन्न वनदरेश भावी ्या पूर्वव्यापी रूप सदे संचालित होंगदे । पीठ नदे फैसला सुरक्षित रखतदे हुए साफ कर वद्या था कि वह जरनैल सिंह में 5 जजों की बेंच द्ारा त्य किए गए मसलों को दोबारा नहीं खोलदेगी ।
संविधान में अवसर की समानता का प्ािधान
वरिष्ठ अवधि्ता अमरेन्द्र नाथ सिंह का कहना है कि पदोन्नति में आरक्षण के विर्य में भारती्य संविधान के अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक पदों पर अवसर की समानता सदे संबंधित प्रावधान वक्यदे गए हैं । अनुच्छेद 16 ( 1 ) के अनुसार राज्य के अधीन किसी भी पद पर वन्योजन ्या वन्युक्त सदे संबंधित विर्यों में सभी नागरिकों के वल्यदे अवसर की समानता होगी । अनुच्छेद 16 ( 2 ) के अनुसार , राज्य के अधीन किसी भी पद के संबंध में धर्म , मूलवंश , जाति , लिंग , उद्भव , जनमस्ान , निवास ्या इसमें सदे किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात् होगा और न उससदे विभदेद वक्या जाएगा । हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 16 ( 4 ) और 16 ( 4A ) में सार्वजनिक पदों के संबंध में सकारातमक भदेदभाव ्या सकारातमक का्यनािाही का आधार प्रदान वक्या ग्या है । संविधान के अनुच्छेद 16 ( 4 ) के अनुसार , राज्य सरकारें अपनदे नागरिकों के उन सभी पिछड़़े वर्ग के पक्ष में वन्युक्तियों ्या पदों के आरक्षण हदेतु प्रावधान कर सकती हैं , जिनका राज्य की रा्य में राज्य के अधीन सदेिाओं
में प्यानापत प्रतिनिधिति नहीं है । अनुच्छेद 16 ( 4A ) के अनुसार , राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पक्ष में पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के वल्यदे कोई भी प्रावधान कर सकती हैं ्यवद राज्य की रा्य में राज्य के अधीन सदेिाओं में उनका प्यानापत प्रतिनिधिति नहीं है ।
काफी हद तक दूर हुआ भ्रम
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ट अवधि्ता रामानंद पाण्डे का कहना है कि वर्ष 2006 में एम नागराज बनाम भारत संघ में उच्चतम न्या्याल्य की संविधान पीठ नदे पप्रोन्नति में आरक्षण प्रदान करनदे वालदे 85 वें संवैधानिक संशोधन अवधवन्यम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था । नागराज में उच्चतम न्या्याल्य नदे प्रतिनिधिति की अप्यानापतता पर ड़ेटा का संग्ह , प्रशासन पर दक्षता पर समग् प्रभाव और क्रीमी लदे्यर को हटानदे जैसी शतजें रखी थीं । प्रोमोशन में आरक्षण पर विचार करतदे सम्य 2018 में , जरनैल सिंह में 5-न्या्याधीशों की पीठ नदे एम नागराज बनाम भारत संघ के मामलदे में 2006 के फैसलदे को उस हद तक गलत मानतदे हुए संदर्भ का जवाब वद्या , जिसमें कहा ग्या था कि पदोन्नति में आरक्षण ददेतदे सम्य अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के पिछड़़ेपन को दर्शानदे वाला मात्ातमक ड़ेटा आवश्यक है । इस सपष्टीकरण के साथ , 5-न्या्याधीशों की पीठ नदे नागराज के फैसलदे को 7-न्या्याधीशों की पीठ को सौंपनदे की ्याचिका को ठुकरा वद्या था । उच्चतम न्या्याल्य करेंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्ारा 144 ्याचिकाओं ( जरनैल सिंह बनाम लचछमी नारा्यि गुपता और अन्य व संबंधित मामलदे , एसएलपी ( सी ) नंबर 30621 / 2011 ) का वर्तमान समूह दा्यर वक्या ग्या था जिसमें सुप्रीम कोर्ट सदे पदोन्नति में आरक्षण सदे संबंधित मुद्ों पर ततकाल सुनवाई करनदे का आग्ह वक्या ग्या था क्योंकि पदोन्नति में आरक्षण लागू करनदे के मानदंडों में असपष्टता के कारण कई वन्युक्तियां रोक दी गई हैं । �
ekpZ 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 29