eMag_March2022_DA | Page 14

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सुखद अनुभूति तो है किनतु अभी जब हम लक््य सदे कोसों दूर हैं तभी अचानक उन बदेवट्यों की शिक्षा पर अचानक कुछ कट्टरपंव््यों का पुन : आक्रमण पीड़ादा्यी लगता है ।
अचानक विरोध क्ों .?
2022 के प्रथम माह में ही कर्नाटक में उडुपपी के एक छोट़े सदे स्कूल में प्रारमभ हुआ अनावश्यक विवाद , जिहावद्यों ्या ्यूं कहें कि कुछ कट्टरपंव््यों की हट के चलतदे कुछ ही दिनों में बागलकोट में पत्रबाजी तक कैसदे बदल ग्या जहां के स्ानी्य प्रशासन को वहाँ धारा 144 तक लगानी पड़ी । राज्य सरकार को अपनदे सभी शिक्षण संस्ान तीन दिन के लिए बंद करनदे पड़़े । कुछ अन्य राज्यों में भी प्रदर्शन होनदे लगदे । दिलली के शाहीन बाग में भी ‘ नारा — ए — तदबीर-अललाहहुअकबर ’ फिर सदे गूँजा । कुछ मंत्रियों के ब्यान आए तो वहीं विपक्षी दल इस मामलदे को संसद तक लदे ग्या । उधर , ददेश में जिहाद , अलगाववाद व इसलावमक कट्टरता की फै्टरी कहलाई जानदे वाली संस्ा पीएफआई की संलिपतता भी जग-जाहिर हो गई । बच्चों के विवाद में सर्वप्रथम राहुल गांधी ककूददे जिसनदे उसको मुकसलम व महिला अधिकारों सदे जोड़नदे की कुचदेष्टा की । उसके बाद मंगलवार को कर्नाटक के प्रददेश कोंग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार नदे एक झूठ़े टिीट के द्ारा हिनदूओं पर आरोप लगा्या कि उनहोंनदे एक कॉलदेज में तिरंगदे को उतारकर भगवा लहरा वद्या जो तिरंगदे का अपमान है । जबकि , उसी दिन शिवमोगा के ही पुलिस अधीक्षक श्ी बीएम लक्मी प्रसाद नदे साफ तौर पर कहा कि पोल पर तिरंगा था ही नहीं । इसमें तिरंगदे का अपमान कहाँ सदे हुआ । वासति में तो कॉंग्रेस की वचढ़ भगवा और भगवा-धारर्यों सदे है । ्यह एक बार पुनः स्ावपत हो ग्या । हिजावब्यों की तरफ सदे न्या्याल्य में कॉनग्रेसी ही तो लड़ रहदे हैं । वरिष्ठ कॉनग्रेसी नदेता व राम द्रोही कपिल सिबबल तो शुक्रवार को इस मामलदे को लदेकर सिवोच्च न्या्याल्य ही पहुँच गए जैसदे कि िदे तीन तलाक व बाबरी के लिए लड़़े । इसके अतिरर्त
इसलावमक जिहावद्यों व कथित सदेकलक्यूलरिसटों की टटूल किट गैंग द्ारा भी पूरदे ददेश में अराजकता का वातावरण निर्मित वक्या जा रहा है ।
निर्धारित गणवेश ( यूनिफॉर्म ) का विरोध
बहाना अब बात करतदे हैं विद्ाल्य व उसके वन्यमों
की । तो हम सभी को पता है कि विद्ाल्य में प्रिदेश सदे पूर्व एक फॉर्म भरवा्या जाता है कि मैं विद्ाल्य के सभी वन्यमों का पूरी निष्ठा सदे पालन करूंगा तथा उसके उललंघन पर दंड का भागी बनूँगा । इन वन्यमों में विद्ाल्य के निर्धारित गििदेश ( ्यूनिफॉर्म ) की बात भी होती है । साथ ही संभवत्या हम सभी नदे कभी- ना-कभी ( चाहदे भूलवश ही सही ) गििदेश के किसी अंग की न्यूनता के लिए दंड भी भुगता होगा । किनतु कभी किसी विद्ा्टी को हिजाब , बुर्का ्या गोल टोपी में नहीं ददेखा होगा । होना भी नहीं चाहिए । विद्ाल्य समता , समानता व एकरूपता के करेंद्र हैं । ना कि जाति , मत-पंथ , भाषा-भूषा ्या खान-पान के आधार पर अलगाववाद के अड्डे । उडुपी की ्यदे छात्ाएं गत
अनदेक िरषों सदे उसी विद्ाल्य में बिना किसी शिका्यत के शांति सदे पढ़ रही थीं । फिर जिस विद्ाल्य में अचानक हिजाब का उद्य हुआ वह तो था ही सिर्फ छात्ाओं का जहां , लड़कों का प्रिदेश ही वर्जित है । तो फिर हिजाबी पर्दा किस सदे और क्यों ? इस पर एक प्रश्न के जवाब में एक विरोध करनदे वाली मुकसलम बदेटी नदे बगलें झाँकतदे हुए कहा कि एकाध शिक्षक तो पुरुष हैं हीं इसलिए हिजाब जरूरी है । सोचिए ! जिस विद्ा्टी की गुरुजनों के प्रति ऐसी दुर्जनों वाली सोच हो तो उसके विद्ा अध्य्यन का क्या अर्थ ? खैर ! ्यदे गलती उस बदेटी की नहीं अपितु , उसदे बहलानदे , फुसलानदे , भड़कानदे व उकसानदे वालदे उस कट्टरपंथी धड़े की है जो कभी चाहता ही नहीं था कि मुकसलम बदेवट्याँ कभी घर की चार दीवारी पार कर अपना जीवन सिच्छंदता सदे जी सकरें । िदे तो उनहें अपनदे पैरों की जूती , मदषों की खदेती व मनोरंजन का साधन सदे अतिरर्त कुछ समझता ही नहीं ।
षड्ंरि के पीछे जिहादी संस्ा पीएफआई इस सारदे षड्ंत् के पीछ़े ददेश की उस कट्टर
14 दलित आं दोलन पत्रिका ekpZ 2022