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वर्ण भेद और जताकत भेद की मतानसिक जड़े बहुत गहरी हैं । उच्च वर्ण के लोग अपनी उच्चतता सुरकक्त करने के लिए ही अंतरजतातीय कररताहों कता विरोध करते हैं । यदि कोई उच्च जताकत कता लडकता , दलित जताकत की लड़की से शतादी कर भी ले , तब भी उस लडके के परररतार के सवर्ण दलित बहू को अपने घर में रहने नहीं देते हैं । वे किसी तरह उस कररताह को तोड़ कर उस दलित लडकी से मुकत होनता चताहते हैं । ऐसी स्थिति में उस दलित लडकी और उसके परररतार रतालों पर भी तरह-तरह के नये अत्याचतार किये जताते हैं । ऐसी कई घटनताएं समताज में खुले आम होती रहती हैं । यथताथ्व में अभी भी इस तरह
अंतरजतातीय कररताह होनता कठिन है । फिर भी उच्च शिक्षा प्रतापत , लड़के और लड़कियतां सताथ में नौकरी करते हुए अपने सतामताकजक जीवन में भी पताट्टनर बनने लगे हैं । परमपरतारतादी संयुकत परररतारों से बताहर निकलने पर ही यह संभव है । आशता है , कुछ बरसों बताद ऐसे कररताह अधिक संख्या में हो सकेंगे ।
प्रश्न – ऐसा माना जाता है कि हिंदरी दलित साहित् में , दलित सरिरी विमर्श का अभाव है । इस बारे में आप क्ा सोचतरी हैं ?
उत्र- हिंदी दलित सताकहतय में सत्री-लेखन
कम हुआ है — इस बतात को मतान सकते हैं । मगर यह सतय है कि जितनता भी सत्री लेखन हुआ है उसमें दलित सत्री विमर्श कता अभतार नहीं है । मेरे सरयं के 5 कवितता संग्ह , 4 कहतानी संग्ह , 3 उपद्यतास 2 नताटक , एवं एक एकतांकी संग्ह की कितताबे प्रकताकशत हो चुकी हैं । इसके सताथ आतमकथता , आलोचनता , समीक्षा , पत्र- लेखन और सताक्षात्कार की कुल पच्चीस कितताबें प्रकताकशत हो चुकी हैं । उन सभी कता केंरिीय भतार दलित विमर्श और सत्री विमर्श है । दलित सत्री जीवन की समस्याएं उनके अधिकतारों कता हनन , उनकता विरोध , आक्रोश और कररिोह , समतता , सम्मान और सरतंत्रतता के लिए उनकता संघर्ष मेरी सभी
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